क्यों ब्रिटेन की सांसद को भारत ने हवाई अड्डे से वापस भेजा
१८ फ़रवरी २०२०ब्रिटेन की सांसद डेबी अब्राहम्स को दिल्ली हवाई अड्डे से वापस भेज देने की घटना का सच धीरे धीरे साफ होता जा रहा है. अब्राहम्स ने दावा किया था कि वे 17 फरवरी को दिल्ली पहुंची थीं लेकिन उनके पास मान्य वीजा होने के बावजूद उन्हें हवाई अड्डे से निकलने नहीं दिया गया और डिपोर्ट कर दिया गया.
लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग ने ट्विटर पर कहा कि भारतीय इमीग्रेशन अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि डेबी अब्राहम्स के पास मान्य वीजा नहीं था. इसके अलावा, आयोग ने यह भी कहा कि चूंकि भारत में ब्रिटेन के नागरिकों के लिए आगमन पर वीजा का प्रावधान नहीं है, इसलिए उन्हें लौट जाने के लिए 'अनुरोध' किया गया.
अब्राहम्स के बयान इससे बिलकुल अलग है. उन्होंने ट्विटर पर अपने इलेक्ट्रॉनिक वीजा की तस्वीर लगाई है जिस में साफ दिख रहा है कि उनका वीजा पांच अक्टूबर 2020 तक मान्य है. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि हवाई अड्डे पर अधिकारी ने उनके साथ बहुत रूखा व्यवहार किया.
18 फरवरी को भारतीय मीडिया की कई खबरों में सरकारी सूत्रों के हवाले से दावा किया गया कि उनका वीजा 14 फरवरी को रद्द कर दिया गया था क्योंकि उन्हें भारत के हितों के खिलाफ गतिविधियों में संलिप्त पाया गया था.
कौन हैं डेबी अब्राहम्स?
अब्राहम्स ब्रिटेन की संसद में ओल्डहैम ईस्ट और सैडलवर्थ निर्वाचन क्षेत्र से लेबर पार्टी की सदस्य हैं. वे ब्रिटेन की संसद में कश्मीर पर सर्वदलीय समूह की अध्यक्ष हैं और एनडीए सरकार के कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटा दिए जाने की आलोचना करती रही हैं.
अब्राहम्स ने खुद ट्विट्टर पर पूछा कि क्या इसी वजह से उन्हें भारत में प्रवेश नहीं करने दिया गया?
इन सवालों पर भारत सरकार ने कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है लेकिन सूत्रों के हवाले से मीडिया में आई खबरों से साफ हो गया है कि आखिर उनका वीजा रद्द क्यों किया गया.
दिलचस्प बात यह है कि 18 फरवरी को विपक्षी पार्टी कांग्रेस के एक बड़े नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सरकार के कदम का समर्थन किया. उन्होंने ट्विटर पर कहा कि अब्राहम्स सिर्फ सांसद नहीं बल्कि एक पाकिस्तानी प्रॉक्सी हैं और पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई से करीबी के लिए जानी जाती हैं.
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए को निरस्त किया था. इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था और दो अलग अलग केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना की थी. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं. इन प्रतिबंधों की वजह से से वहां आम जीवन अस्त-व्यस्त है जिसे लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अकसर भारत सरकार की आलोचना होती रहती है.
लेकिन केंद्र सरकार ने इस समय कश्मीर को लेकर एक कड़ा रुख अपनाया हुआ है, जिसका प्रदर्शन वो लगातार सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी कर रही है. हाल ही में जर्मनी के म्युनिख में एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर कश्मीर के मुद्दे पर एक वरिष्ठ अमेरिकी सीनेटर से उलझ गए. अमेरिका में सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर लिंडसे ग्रैहम ने जब कहा कि उन्हें उम्मीद है कि "दो लोकतांत्रिक देश" मिलकर कश्मीर विवाद को सुलझा लेंगे, तो जयशंकर ने तपाक से उन्हें मंच पर से ही जवाब दे दिया, "आप चिंता ना करें सीनेटर. एक लोकतांत्रिक देश इसे सुलझा लेगा और आप जानते हैं कि वो कौन सा देश है".
इसके ठीक एक दिन बाद भारत संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश से भी कश्मीर के मुद्दे पर उलझ गया. गुटेरेश ने पाकिस्तान में एक भाषण में कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान राजी हों तो वे कश्मीर के विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच मध्यस्थ करने को तैयार हैं. अगले दिन उनके सन्देश का जवाब देते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि कश्मीर पर किसी "तीसरे पक्ष द्वारा मध्यस्थता की कोई गुंजाइश नहीं है" और "हम उम्मीद करते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव इस बात पर जोर देंगे कि कि पाकिस्तान को भारत के खिलाफ होने वाले आतंकवाद को खत्म करने के लिए मजबूत कदम उठाने की जरूरत है."
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