आखिर सत्ता त्यागने पर रजामंद हुए यमन के राष्ट्रपति
२३ नवम्बर २०११देश में लंबे समय से अशांति है और लोकतंत्र समर्थक लोग अली अब्दुल सालेह के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. खाड़ी योजना पर विपक्ष अपनी सहमति की मुहर पहले ही लगा चुका है. संयुक्त राष्ट्र के दूत जमाल बेनोमार ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "दस्तखत करने की औपचारिकता रियाद में आज पूरी की जाएगी." इस दस्तखत का मतलब है कि राष्ट्रपति खुद अपने अधिकारों से खुद को मुक्त कर लेंगे.
संयुक्त राष्ट्र के जरिए यमन के लिए बनाए गए रोडमैप में खाड़ी योजना को लागू करने की प्रक्रिया है. इसके अंतर्गत सालेह सत्ता अपने मातहतों को सौंप देंगे. इसके बदले में उन्हें सुरक्षा मिलेगी और सजा से बचाया जाएगा. कूटनीतिक सूत्रों से जानकारी मिली है कि समझौते के मुताबिक सालेह खाड़ी योजना पर दस्तखत करने के तुरंत बाद "सारे जरूरी संवैधानिक अधिकारों को अपने मातहत अब्द्राबुह मंसूर हदी को सौंप देंगे. यमन के टीवी चैनलों ने खबर दी है कि राष्ट्रपति दस्तखत करने की रस्म अदायगी के लिए पहले ही रियाद पहुंच चुके हैं. सउदी अरब की राजधानी रियाद में वे सउदी नेताओं के निमंत्रण पर गए हैं. खाड़ी योजना यमन को संकट से बाहर निकालने के लिए तैयार की गई है. दस्तखत होते वक्त यूरोप और अमेरिका के विशेष दूत भी वहां मौजूद रहेंगे. इस खाड़ी योजना के बारे में अमेरिका की सहमति होने की बात पहले से ही कही जा रही है.
सालेह पहले तो इस योजना को बार बार खारिज करते रहे जिसकी वजह से देश में एक तरह से राजनीतिक गतिरोध आ गया. नतीजतन देश की सरकार अव्यवस्था में घिर गई और अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई. राजनीतिक तनाव ने देश की सड़कों को भी अपनी जद में ले लिया, जब हजारों लोग सरकार विरोधी प्रदर्शन करने के लिए घर से निकल पड़े. सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जान गई और हजारों लोग घायल हुए.
देश में कानून व्यवस्था की हालत पिछले कुछ महीनों से काफी बुरी स्थिति में है. खासतौर से दक्षिणी इलाकों में तो हालात और बुरे हैं. यहां पर अल कायदा के आतंकवादियों की भी मौजूदगी है. माना जाता है कि यह शाखा दुनिया भर में अल कायदा की सबसे ज्यादा सक्रिय है. इन आतंकियों ने यहां चल रहे उपद्रव का फायदा उठा कर पूरे शहर पर ही एक तरह से अपना नियंत्रण हासिल कर लिया है. निहत्थे प्रदर्शनकारियों की जबर्दस्त भीड़ ने सना और यमन के दूसरे शहरों में सालेह के शासन के खिलाफ पक्की जमीन तैयार कर ली है. शासन तंत्र में सुधार की मांग के लिए पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. सरकार ने इन प्रदर्शनों को हिंसा के बल पर दबाने की कोशिश की लेकिन उसके नतीजे और बुरे हुए. प्रदर्शनों की आंच ठंढी पड़ने की बजाए और तेज होती चली गई.
8 महीने से ज्यादा हो गए हैं इन विरोध प्रदर्शनों को लेकिन अली अब्दुल सालेह सत्ता न छोड़ने की अपनी जिद पर अड़े रहे. यहां तक कि उन पर इस दौरान हमला भी हुआ जिसमें वो बुरी तरह जल गए और फिर तीन महीने से ज्यादा सउदी अरब के अस्पताल में उनका इलाज चला.
इस तरह के विरोध प्रदर्शनों ने मिस्र और ट्यूनीशिया में तो वहां की सरकारों को उखाड़ फेंका लेकिन यमन में हाल कुछ दूसरे हुए. इन आंदोलनों को देश की दो पारंपरिक ताकतों ने अपने हक के लिए इस्तेमाल कर लिया. ये दो ताकतें हैं यहां के कबीले और सेना. नतीजा यह हुआ कि देश की हालत औऱ बिगड़ती चली गई. सेना से टूट कर अलग हुए गुट औऱ कबायली लड़ाके सालेह की वफादार सेना से सना और दूसरे इलाकों में लड़ रहे हैं और पिछले कई महीनों से यही हाल है.
करीब ढाई करोड़ की आबादी वाले इस गरीब मुल्क यमन की खाड़ी के अरब देशों और अमेरिका के लिए रणनीतिक अहमियत है. खासतौर से सउदी अरब के लिए. यमन खाड़ी के प्रमुख तेल कुओं के बेहद करीब है. इसके साथ ही लाल और अरब सागर से माल की ढुलाई का रास्ता यमन से हो कर गुजरता है. खाड़ी योजना खाड़ी सहयोग परिषद के छह सदस्य देशों ने मिल कर बनाई है जो सालेह की 33 साल पुरानी सत्ता के खत्म होने के साथ ही अस्तित्व में आ जाएगा.
रिपोर्ट: एएफपी/एन रंजन
संपादन: महेश झा