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आखिरी बार नीली जर्सी में दिखेंगे द्रविड़

१६ सितम्बर २०११

राहुल द्रविड, तकनीकी रूप से दुनिया का सबसे धनी यह बल्लेबाज आज आखिरी बार वनडे खेलने मैदान पर उतरेगा. भारतीय टीम चाहेगी कि इंग्लैंड दौरे की कड़वी यादों को भुलाकर वह अपने नायक को शानदार मनोहारी विदाई दे.

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तस्वीर: ap

1996 में वनडे करियर का आगाज करने वाले राहुल द्रविड़ के कदम आज जब मैदान से लौटेंगे तो वापस नहीं आएंगे. 16 सितंबर 2011 के बाद दुनिया का एक बेहतरीन बल्लेबाज नीले रंग की जर्सी में डटकर खेलता नहीं दिखाई पड़ेगा. तीन साल बाद वनडे में वापसी करने वाले द्रविड़ खुद भी एक शानदार पारी खेल कर विदा होना चाहते हैं. यही वजह है कि गुरुवार को वह बाकी खिलाड़ियों से आधा घंटा पहले अभ्यास करने मैदान पर चल दिए. उन्होंने सबसे ज्यादा अभ्यास किया.

2008 के बाद अब जाकर वनडे खेल रहे द्रविड़ संन्यास को लेकर भावुक नहीं है. कहते हैं, "मैं बहुत भावुक नहीं हूं. मैं ऐसा महसूस ही नहीं कर रहा हूं. एक तरह से मैं संन्यास ले रहा हूं या पारी खत्म कर रहा हूं लेकिन मैं टेस्ट क्रिकेट खेलता रहूंगा. जाहिर मैं वनडे नहीं खेलूंगा, ऐसा दो साल पहले से हो रहा है."

15 साल के वनडे करियर को निहारते हुए 38 साल के बल्लेबाज ने कहा, "दोनों तरह के खेल में मैंने ऊंचाइयां और खराब पल देखे हैं. यही जिंदगी है, क्रिकेट है, इन बातों ने व्यक्तिगत रूप से मुझे काफी कुछ सिखाया कि कैसे बहुत सारी चीजों को हल करना चाहिए. मेरे दिल में कोई कसक बाकी नहीं है. वनडे से रिटायर होने के बाद मेरे जीवन में ऐसा कोई बदलाव नहीं आएगा जो बीते ढाई साल से अलग होगा. निश्चित रूप से जब मैं टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लूंगा तब मुझे काफी चीजों के बारे में सोचना होगा."

Rahul Dravid Cricket Spieler Indien
तस्वीर: AP

1996 में जब श्रीलंकाई टीम अपनी पूरी रवानगी में थी तो राहुल द्रविड़ को वनडे करियर शुरू करने का मौका मिला. पहले मैच में वह सिर्फ तीन रन बना सके. भारतीय टीम 199 रन पर सिमट गई लेकिन इसके बावजूद जीत भारत को मिली. जीत के साथ आगाज करने वाले द्रविड़ चाहते हैं कि वनडे करियर का अंत भी जीत के जायके से हो.

द्रविड़ ने क्रिकेट को बदलते हुए भी देखा है. 2003 के वर्ल्ड कप में भारत को फाइनल तक पहुंचाने में द्रविड़ की खास भूमिका रही. उन्होंने मध्यक्रम को बांध कर रखा और शानदार विकेटकीपिंग भी की. वर्ल्ड कप के बाद टीम में क्रांतिकारी बदलाव हुए. सौरव गांगुली से कप्तानी छीन ली गई और द्रविड़ को कप्तान बनाया गया. 2005 से 2007 तक उन्होंने भारत का नेतृत्व किया. इस दौरान भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट मैच जीतकर सबको दंग किया. लेकिन 2007 वर्ल्ड कप में टीम के खराब प्रदर्शन ने द्रविड़ से कप्तानी छीन ली.

कप्तानी छिनते के साल भर के भीतर वह वनडे टीम से बाहर हो गए. वनडे में होती अंधाधुंध बल्लेबाजी में द्रविड़ का क्लासिकल खेल ढक सा गया. 'चाहे कैसा ही शॉट मारो, लेकिन रन बनाओ' वाले खेल में राहुल पिछड़ गए. वह टेस्ट क्रिकेटर बना दिए गए लेकिन वहां भी द्रविड़ ने फिर साबित किया कि टेस्ट क्रिकेट में उनसे बेहतरीन कोई बल्लेबाज नहीं हुआ है. वह दीवार बने रहे, फर्क इतना रहा कि दीवार को टेस्ट क्रिकेट के सफेद रंग से रंग दिया गया.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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