आजाद मुठभेड़ मामले पर जाएंगे सुप्रीम कोर्टः स्वामी अग्निवेश
२२ सितम्बर २०१०बातचीत के लिए सूत्रधार बनने जा रहे माओवादी प्रवक्ता आजाद की ऐन वक्त पर मौत से आहत स्वामी अग्निवेश ने डॉयचे वेले के साथ इंटरव्यू में अपनी चिंता को बयान किया. पेश है पिछले दिनों जर्मन शहर बॉन आए स्वामी अग्निवेश के साथ खास बातचीतः
नक्सलवाद से निपटने के लिए सरकार ने मध्यस्थ के तौर पर आपको ही क्यों चुना, जबकि आपका इस समस्या से दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है ?
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के हाथों सीआरपीएफ के 72 जवानों की हत्या के बाद मैंने शांति की अपील के साथ रायपुर से दंतेवाड़ तक की पैदल यात्रा की. यह दुस्साहस करने वाला मैं पहला व्यक्ति था. शायद इस यात्रा से प्रभावित होकर ही गृह मंत्री चिदंबरम जी ने मुझे मध्यस्थता के लिए चुना हो. हां, यह सही है कि यात्रा के बाद मैंने उनसे मुलाकात कर यह जानने की कोशिश की थी कि वह नक्सलवाद को कानून व्यवस्था की समस्या मानते हैं या सामाजिक आर्थिक समस्या. इस पर उन्होंने कहा कि इसे मैं सामाजिक आर्थिक समस्या तो मानता ही हूं, साथ ही यह मेरे लिए नैतिकता से भी जुड़ा हुआ सवाल है. यह सुनकर मैं प्रसन्न भी हुआ और अचंभित भी, कि मंत्री जी इस विषय पर उदारता से सोच रहे हैं. मुझे उसी समय हल की उम्मीद नजर आई. इसके साथ ही उन्होंने इस शर्त के साथ माओवादियों से बातचीत की भी इच्छा जताई कि पहले माओवादियों को कम से कम 72 घंटे तक स्वयं को हिंसा नहीं करनी होगी और ना ही सुरक्षा बल इस अवधि में उनके खिलाफ कोई कारर्वाई करेंगे. इसके कुछ समय बाद ही 11 मई को मुझे मध्यस्थ की भूमिका के प्रस्ताव वाला चिदंबरम जी का एक गोपनीय़ पत्र मिला. मैंने सरकार की इस मंशा की 19 मई को सार्वजनिक घोषणा कर दी. इसके बाद 31 मई को ही माओवादियो के प्रवक्ता आजाद की ओर से मुझे सकारात्मक जवाब के साथ एक पत्र मिला. एक महीने से भी कम समय में हुई इस प्रगति से मैं बेहद उत्साहित था.
जुलाई में संघर्षविराम की तीन तारीखें भी मिलने के बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि बातचीत की मुख्य कड़ी के रूप में उभरे आजाद की ही एक विवादित मुठभेड़ में मौत हो गई ? क्या यह राज्य और केंद्र सरकार के बीच तालमेल के अभाव का नतीजा था ?
केंद्र और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है. ऐसे में तालमेल के अभाव की बात मैं नहीं मान सकता. लेकिन आजाद की बर्बर मौत मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का है. इसे मैं सरकार का विश्वासघात मानता हूं. इस मुठभेड़ के फर्जी होने के जो सबूत मिले उनके आधार पर ही मैंने गृह मंत्री से जांच की मांग की. लेकिन जब उन्होंने मना कर दिया, तब फिर मैंने 20 जुलाई को प्रधानमंत्री से मिलकर यह मांग की. उन्होंने स्पष्ट कहा कि जांच होगी लेकिन स्वामी जी मुझे 4-5 दिन का समय दें, मैं कोई रास्ता निकालता हूं.
इतना समय बीतने के बाद जांच को लेकर आप अब भी आशान्वित हैं ?
मेरे लिए यही सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि दो महीने बीत गए और जांच की अब तक कोई घोषणा भी नहीं की गई.
इससे यह समझा जाए कि सरकार अब बातचीत के मूड में नहीं है ?
पहली बात तो यह है कि सरकार आजाद की मौत की जांच नहीं कराएगी क्योंकि मुझे लग रहा है कि उसे यह अहसास हो गया है कि मुठभेड़ फर्जी थी. साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट से लेकर फॉरेंसिक रिपोर्ट तक में फर्जी मुठभेड़ के साफ सबूत हैं.
अब भविष्य को लेकर कितनी सकारात्मक उम्मीद है आपको ?
मुझे सरकार से तो बिल्कुल उम्मीद नहीं है. सरकार का जो चेहरा दिख रहा है वह माओवादी हिंसा से भी ज्यादा हिंसक है. मैं माओवादी हिंसा की भी उतनी ही निंदा करता हूं. लेकिन देश में प्रतिदिन भूख से मरते हजारों बच्चों और फर्जी मुठभेड़ों के लिए सरकार जिम्मेदार है. यह ढांचागत हिंसा है और सबसे लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस को इसके लिए माफी मांगनी चाहिए.
अब आप कितना समय और देंगे सरकार को ?
जांच की मांग को तो हम छोड़ेंगे नहीं. हम मानवाधिकार आयोग में जाएंगे और सुप्रीम कोर्ट में भी. सरकार को बहुत समय दे दिया. अब तो यहां बॉन से दिल्ली पंहुचने पर हमारा पहला काम जांच के लिए दोनों जगह याचिका दायर करना होगा. हमारे मित्र वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इसकी तैयारी भी पूरी कर ली है. माओवादियों से मुझे बातचीत में शामिल होने का पूरा भरोसा मिला हुआ है सिर्फ सरकार का रवैया ठीक करना है.
आपने इसके लिए भविष्य की क्या रणनीति बनाई है ?
देश को हर तरह की हिंसा, चाहे वह माओवादियों की विद्रोही हिंसा हो या सरकार की ढांचागत हिंसा, इससे मुक्त कराने के लिए गांधी और जेपी की बताई अहिंसक क्रांति जरूरी है. मैं 21 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस के दिन दिल्ली में सेंट स्टीफन कॉलेज से अपने हजारों कार्यकर्ताओं के साथ इस क्रांति का आह्वान करूंगा. इसके बाद बापू के जन्मदिन 2 अक्तूबर को अहिंसक संपूर्ण क्रांति का आंदोलन देश भर में शुरू कर दिया जाएगा. हर तरह के संसाधनों की कार्पोरेट लूटखसोट को सरकार ने विकास का नाम दिया है. यह विकास नहीं विनाश है और रोकने के लिए यह आंदोलन हमारी एक विनम्र पहल होगी.
हाल ही मैं आपने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ कश्मीर के हिंसाग्रस्त इलाकों का भी दौरा किया था. क्या सरकार ने इस मसले पर भी अलगाववादियों को बातचीत के लिए राज़ी करने की आपसे पहल की है ?
हमने दौरे के बाद इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, जिसमें कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून हटाने, सेना को वापस बुलाने, अर्धसैनिक बलों की मामूली तैनाती और हिंसा की घटनाओं की जांच कराने की मांग की थी. बातचीत की पहल की बात तो दूर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री और राहुल गांधी से मिलने का समय मांगने के बावजूद अब तक हमें मिलने का समय नहीं मिल सका.
इंटरव्यूः निर्मल यादव
संपादनः ए कुमार