डिजिटल खाई है ऑनलाइन पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा
५ जून २०२०"मेरी बेटी के स्कूल में ऑनलाइन पढ़ाई तो शुरू हो गई है, लेकिन वह आखिर पढ़ाई कैसे करे? घर में न इंटरनेट है और न ही कंप्यूटर. स्मार्टफोन पर इंटरनेट की स्पीड भी काम लायक नहीं है. ऊपर से अम्फान तूफान की वजह से दो सप्ताह तक हमारी कालोनी में बिजली ही नहीं थी. ऑनलाइन पढ़ाई पैसे वालों के लिए है, हमारे जैसे निम्न मध्यवर्ग के लोगों के बच्चों के लिए नहीं.” पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना जिले के विराटी स्थित एक बस्ती में रहने वाली सुनीता मंडल की यह टिप्पणी भारत जैसे देश में ऑनलाइन पढ़ाई की राह में आने वाली दिक्कतों की तस्वीर बयां करती है.
अब सवाल उठने लगा है कि आखिर कितने छात्रों के पास ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा है? केरल की एक छात्रा ने तो यह सुविधा नहीं होने की वजह से ही कथित रूप से आत्महत्या कर ली. इसके बाद इस मुद्दे पर बहस तेज होने लगी है. सितंबर, 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत इंटरनेट की स्पीड के मामले में विश्व में 128वें स्थान पर है. ग्रामीण इलाकों में तो हालत और भी बुरी है. शहरों और ग्रामीण इलाकों के छात्रों के बीच यह खाई ऑनलाइन पढ़ाई की राह में सबसे बड़ी बाधा बन गई है.
अमीर और गरीब बच्चों के स्कूल
इस तस्वीर का दूसरा पहलू एकदम भिन्न है. मिसाल के तौर पर कोलकाता के प्रतिष्ठित साउथ प्वायंट स्कूल की ओर से हर सप्ताह आयोजित होने वाले 12 सौ वर्चुअल कक्षाओं में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए रोजाना औसतन दस हजार छात्र दो घंटे पढ़ाई करते हैं. इस स्कूल ने बीते सप्ताह ही नौवीं और ग्यारहवीं के छात्रों की ऑनलाइन परीक्षा भी आयोजित की है. स्कूल की प्रिंसिपल रूपा सान्याल भट्टाचार्य कहती हैं, "हमारे लिए तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन देश में आखिर कितने स्कूलों के पास ऐसी सुविधा है? खासकर ग्रामीण इलाकों में तो कंप्यूटर और इंटरनेट के साथ ही बिजली भी एक समस्या है. आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के छात्रों तक ऑनलाइन पहुंचना बेहद गंभीर समस्या है.”
कोलकाता के ही ढाकुरिया रामचंद्र स्कूल में पढ़ने वाले लगभग आधे छात्रों के पास ऐसी सुविधा नहीं है. स्कूल के एक शिक्षक समीरन दास कहते हैं, "हमारे ज्यादातर छात्र गरीब परिवारों से हैं और दूर-दूर से आते हैं. उनके घरों पर बिजली की नियमित सप्लाई ही समस्या है, इंटरनेट औऱ कंप्यूटर तो दूर की बात है.” वह कहते हैं कि बिना किसी तैयारी के ही ऑनलाइन पढ़ाई शुरू करने का फरमान जारी कर दिया गया है. इससे पहले इस बात का ध्यान नहीं रखा गया है कि आखिर कितने घरों में इसके लिए जरूरी आधारभूत सुविधाएं मौजूद हैं.
राजधानी दिल्ली भी अलग नहीं
देश की राजधानी दिल्ली की हालत भी अलग नहीं है. वहां सरकारी और नगरपालिका के स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 16 लाख बच्चे मोबाइल, इंटरनेट और कंप्यूटर के अभाव की वजह से ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. वहां नगरपालिका की ओर से संचालित लगभग सोलह सौ स्कूलों में आठ लाख बच्चे पढ़ते हैं जबकि दिल्ली सरकार की ओर से संचालित 1028 स्कूलों में छात्रों की तादाद 15.15 लाख है. इनमें से ज्यादातर स्कूलों के पास न तो अभिभावकों का संपर्क नंबर है और न ही उनका कोई आंकड़ा. ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई तो सपने जैसा ही है.
लॉकडाउन में बंद पड़े स्कूलों के चलते शुरू की गई ऑनलाइन पढ़ाई में छात्र ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं ले रहे हैं. यही वजह है कि इन कक्षाओं से करीब आधे छात्र ही जुड़ पाए हैं. इसके अलावा कहीं इंटररनेट की रफ्तार तो कहीं संसाधनों की कमी ऑनलाइन पढ़ाई को प्रभावित कर रही है. कोलकाता के एक स्कूल में 11वीं के छात्र निताई मालाकार बताते हैं, "ऑनलाइन कक्षाएं बेहतर तो हैं. लेकिन जो पाठ्य सामग्री भेजी जा रही है, उससे बेहतर सामग्री कई बार यू-ट्यूब पर उपलब्ध रहती है. लंबे समय तक मोबाइल में देखने रहने से आंखों की समस्या होने लगी है.”
दुनिया भर के छात्र प्रभावित
यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल साइंटीफिक एंड कल्चरल आर्गनाइजेशन (यूनेस्को) ने कहा है कि कोरोना की वजह से स्कूलों के बंद होने के कारण पूरी दुनिया में 154 करोड़ छात्र प्रभावित हुए हैं. उसने इस समस्या पर काबू पाने के लिए डिजिटल खाई को पाटने समेत छह-सूत्री उपाय सुझाए हैं. लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के लिए इन सुझावों पर अमल करना टेढ़ी खीर ही है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का दावा है कि स्कूली शिक्षा के लिए दीक्षा और ई-पाठशाला जैसे ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफार्म हैं. लेकिन अगर किसी बच्चे के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है तो उनके लिए स्वयंप्रभा के 32 चैनलों के जरिए शिक्षा पहुंचाई जा रही है. वह कहते हैं, "सरकार सबसे गरीब तबके के उन बच्चों की भी चिंता कर रही है जिनके पास इंटरनेट और स्मार्टफोन नहीं हैं. उनके हिसाब से पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा और जरूरत पड़ी तो रेडियो की सहायता ली जाएगी.”
गरीब छात्रों पर हो रहा है असर
शिक्षाविद डॉ. निर्मल कर्मकार कहते हैं, "जिस देश में स्कूली शिक्षा के लिए शिक्षक और भवन जैसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हों, वहां ऑनलाइन शिक्षा की बात बचकानी ही लगती है.” ऑनलाइन कक्षा में शामिल नहीं हो पाने की वजह से बीते सप्ताह केरल में 14 साल की एक छात्रा ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी. वह छात्रा केरल के मालापुरम जिले के एक सरकारी स्कूल की छात्रा थी. उसने दलित कालोनी के अपने घर के पास ही कथित तौर पर खुद को आग लगा लिया. उसके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से उनके घर में टीवी नहीं था और वह स्मार्ट फोन का भी जुगाड़ नहीं कर पाए थे. केरल में लगभग ढाई लाख छात्र-छात्राएं हैं जिनके पास टीवी या कंप्यूटर नहीं है.
बहुत से शिक्षाविदों ने देश में डिजिटल खाई पर गहरी चिंता जताई है. उनका कहना है कि मिशन अंत्योदय के तहत 20 फीसदी ग्रामीण परिवारों को 8 घंटे से भी कम बिजली मिलती है और 47 फीसदी को 12 घंटे से कुछ ज्यादा. इसके अलावा 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक सिर्फ 24 फीसदी लोगों के पास स्मार्टफोन है. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच देश में सिर्फ 10.7 फीसदी परिवारों के पास ही कंप्यूटर था. मीता सेनगुप्ता कहती हैं, "धनी और गरीब तबके में कोविड-19 संकट के दौरान डिजिटल खाई चिंता का विषय है. ऑनलाइन पढ़ाई भारत के लिए नई चीज है. लेकिन इसके लिए गरीबी और इंटरनेट की पहुंच जैसी कई बाधाओं को दूर करना जरूरी है.”
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