आम का दिल्ली दरबार
२ जुलाई २०१३आम की इस हैसियत को सही साबित करने के लिए किसी ने माकूल ही लिखा है कि 'फिरदौस में गनदुम के एवज मे आम जो खाते, आदम कभी जन्नत से निकाले नहीं जाते'.
आम के चाहने वालों के लिए बीते दो दिन दिल्ली आकर्षण का केंद्र रही. दिल्ली पिछले 25 सालों से आम की लम्बी चौड़ी रियासत से लोगों को रूबरू करा रही है. हर साल मानसून की दस्तक के साथ ही दिल्ली सरकार अंतरराष्ट्रीय आम महोत्सव का आयोजन करती है. इसके जरिये आम की विरासत और रियासत में साल दर साल हो रहे इजाफे की तस्वीर दुनिया के सामने रखी जाती है.
आम क्यों है खास
भारत सहित दुनिया भर में लोगों की जुबान पर आम क्यों क्यूं सर चढ़ कर बोलता है, इसका जवाब कुछ आंकड़ों से खुद मिल जाता है. दुनिया भर में आम का जो उत्पादन होता है उसमें 54 प्रतिशत आम की किस्में भारत से जुड़ी होती है. इतना ही नहीं पूरे विश्व का 46 प्रतिशत आम भारत में पैदा होता है. भारत में सिर्फ मरूस्थल और समुद्रतल से 1000 मीटर की ऊंचार्इ वाले इलाकों को छोड़कर पूरे देश में आम की पैदावार होती है. विश्व में आम की 1365 से भी ज्यादा किस्में पार्इ जाती है, जिसमें से लगभग 1000 किस्में भारत में ही पार्इ जाती है. भारत में 1.23 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर आम की खेती होती है, जिसमें 11 मिलियन टन की पैदावार होती है.
आम महोत्सव की खासियत
दिल्ली सरकार का पर्यटन विभाग बीते 25 सालों से आम महोत्सव में हर साल इस फल की न सिर्फ पारंपरिक किस्में बल्कि इसकी विकसित की जा रही किस्मों को भी पेश करता है. आम के चाहने वालों के लिए यह खासा कौतुहल का विषय होता है. इस बार 28 से 30 जून तक चले 25 वें आम उत्सव में अंगूर के आकार से लेकर कटहल के आकार तक के आमों को प्रदर्शित किया गया. इनमें आमों की दुर्लभ किस्में भी मौजूद होती है. इन दुर्लभ किस्मों में सीकरी, स्वर्ण, जहांगीर, नीलेश्वर, रायल एसपी, रेडी पसंद, हिमसागर, अनारस, लक्ष्मणभोग, रानीपसंद, किंगस्टन, आम्रपाली, मल्लिका नीलम, फजली, बैगनपल्ली जैसे नाम जो अब किताबों में ही मिलते है, इनका मजा आंखे और जीभ आम उत्सव में ले सकती हैं.
इसके अलावा आम की लोकप्रिय किस्में जैसे दशहरी, लंगड़ा, अल्फांसो, सफेदा, केसर, तोतापरी, वनराज जैसे आम भी यहां मौजूद रहती हैं. इतने पर भी अगर कौतुहल शांत न हो तो विज्ञान की मदद से विकसित की गयी आम की कुछ विशेष किस्म जैसे अब्दुल्ला, हुस्नआरा, जर्दालू, रामकेला, ऐश्वर्या, मुम्बर्इ ग्रीन को भी चख कर देखा जा सकता है.
आम का अखाडा
आम की इस महफिल को रोचक बनाने के लिए तरह तरह की प्रतियोगिताएं भी होती है. इनमें आम खाने के अलावा आम के किसानों के बीच इसकी पैदावार को लेकर नूरा कुश्ती चलती है. इस दौरान दशहरी, लंगड़ा, मल्लिका, रटौल, चौसा, हुस्नआरा, केसर, आम्रपाली, फजरी और रामकेला जैसी पारंपरिक किस्मों की पैदावार को लेकर प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. इसमें आम से जुडी तमाम संस्थाएं और किसान हिस्सा लेते हैं.
आम का इतिहास -
लगभग 4000 साल से ज्यादा की ऐतिहासिक विरासत को अपने बागों में समेटे आम भारतीय उपमहाद्वीप का प्रमुख फल है.यह भारतीय संस्कृति व धर्म का भी एक अभिन्न अंग है. अपने विशिष्ट गुणों के कारण ही इसे फलों का राजा कहा जाता है. प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक हर समय आम का महत्व रहा है. चरक संहिता में आम के पेड़ एवं फल का चिकित्सकीय रूप में भी वर्णन मिलता है. प्रसिद्ध सूफी संत एवं शायर अमीर खुसरो ने भी आम के महत्व को अपने साहित्य में उकेरा है. अभिज्ञान शकुन्तलम में कालीदास ने बसंत ऋतु में आम्र कुन्जों का वर्ण अत्यन्त श्रृंगारिक रूप से किया हैं. बौद्ध स्तूपों और प्राचीन मूर्तियों में भी आम को दर्शाया तथा परिभाषित किया गया है. मुगल बादशाह अकबर ने बिहार के दरभंगा के पास आम के एक लाख पेड़ लगाए थें, जिसे लक्खी बाग के नाम से आज भी जाना जाता है.
25 साल का सफर
दिल्ली सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 1988 में कृषि संस्थान और सहारनपुर के फल उद्यान की मदद से तमाम किस्मों के आमों की प्रदर्शनी जनता के सामने आम उत्सव के रूप में की. दिल्ली पर्यटन ने इस सफर में लगभग 100 देसी व विदेशी पर्यटको के साथ सहारनपुर में इस उत्सव में भाग लिया. जिसको देखकर लोगों का इस आम उत्सव के प्रति उत्साह बढ़ा. सहारनपुर से शुरू हुआ यह सफर लोगों की भारी मांग पर 1991 में दिल्ली आया. दिल्ली पर्यटन विभाग ने तालकटोरा स्टेडियम में पहली बार आम उत्सव की मेजबानी की.
कवायद का मकसद
दिल्ली पर्यटन विभाग के चेयरमैन मनीष चतरथ का कहना है कि महानगर की आपाधापी भरी जिन्दगी में आम जैसी खास चीजें कहीं पीछे न छूट जाएं, इससे बचने के लिए इस तरह के आयोजन किये जा रहे हैं. इसके अलावा छोटे बड़े आम उत्पादकों और निर्यातको को एक मंच पर लाना भी इसका मकसद है जिससे विदेशी मुद्रा की आय को बढ़ावा मिले और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके. यह उत्सव भारत की आम उत्पादकता को एक नया आयाम देने के लिए एक मील का पत्थर साबित हो रहा है. आम में रूचि रखने वाले देश विदेश से इसमें शिरकत करते है जो इसकी कामयाबी का सबूत माना जा सकता है.
ब्लॉगः निर्मल यादव, दिल्ली
संपादनः निखिल रंजन