आलोचना को दबाती सरकारें
इंटरनेट ने समाज को लोकतांत्रिक बनाने का काम किया है और ब्लॉगरों ने लोकतांत्रिक बहस को नई दिशा दी है. लेकिन आलोचना सरकारों को रास नहीं आ रही है और ब्लॉगरों को हर कहीं दमन का शिकार बनाया जा रहा है.
सउदी ब्लॉगर रइफ बदावी को इस्लाम के कथित अपमान के लिए सुनाई गई 1,000 कोड़ों की सजा जनता में शासन का डर बनाए रखने का एक क्रूर तरीका है. मई 2014 में सुनाई गई सजा को बरकरार रखते हुए सउदी कोर्ट ने बदावी को हर हफ्ते सार्वजनिक रूप से 50 कोड़े मारे जाने के अलावा 10 साल की जेल की सजा भी सुनाई है.
पहली बार जनवरी 2015 में बदावी को जेद्दाह में सार्वजनिक रूप से 50 कोड़े मारे गए. इसके विरोध में नीदरलैंड्स के द हेग में प्रदर्शन हुए. दुनिया भर में सजा का विरोध हुआ. अब इस सजा के खिलाफ किसी कोर्ट में अपील करना संभव नहीं है. अब केवल सउदी किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज ही 31 साल के बदावी को क्षमादान दे सकते हैं.
ब्लॉगर रइफ बदावी 2012 से सउदी अरब में कैद हैं. उनकी वेबसाइट को बंद कर दिया गया है. बदावी पर धर्मनिरपेक्षता की तारीफ करने का आरोप है.
बदावी की सजा के खिलाफ मॉन्ट्रियल में हुए प्रदर्शन में उनकी पत्नी इंसाफ हैदर ने भी भाग लिया. उन्होंने कोड़ों की सजा की तुलना मुस्लिम आतंकवादियों के हमलों से की.
बदावी अपने इंटरनेट पेज पर सउदी अरब में वहाबी इस्लाम का कड़ाई का पालन करवाने के लिए धार्मिक पुलिस की नियमित रूप से आलोचना करते थे. एमनेस्टी इंटरनेशनल सजा के खिलाफ अभियान चला रहा है.
ईरान के सोहैल अराबी को फेसबुक पर टिप्पणियों के लिए इमामों के अपमान का आरोप लगाकर सजा दी गई है. वे अभी भी जेल में हैं.
बांग्लादेश के रसेल परवेज ने भौतिकी की पढ़ाई कर देश में धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देने की कोशिश की. ईशनिंदा के आरोप में उन्हें जेल की सजा मिली.
मिस्र के प्रमुख ब्लॉगर अला अब्देल फतह पिछले साल एक मुकदमे के दौरान अदालत के पिंजड़े में. उन पर देश के विरोध प्रदर्शन कानून को तोड़ने के लिए मुकदमा चलाया गया.
ब्लॉगरों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा बर्ताव सिर्फ इस्लामी देशों में ही नहीं होता. पुतिन विरोधी अलेक्सी नवाल्नी को भी सरकार की ताकत का दंश झेलना पड़ा है.