एक हफ्ते के अंदर कश्मीर पर लागू पाबंदियों की समीक्षा का आदेश
१० जनवरी २०२०भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि इंटरनेट का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात कश्मीर में 5 अगस्त से लागू प्रतिबंधों के खिलाफ दायर कई याचिकाओं पर फैसला देते हुए कही. केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए अदालत ने ये भी कहा कि इंटरनेट को अनिश्चितकाल तक बंद रखना शक्ति का दुरूपयोग है. अदालत ने कश्मीर के प्रशासन को आदेश दिया कि वह एक हफ्ते के अंदर सारे प्रतिबंधों की समीक्षा करे.
तीन जजों की पीठ ने यह आदेश भी दिया कि लागू किये गए सभी प्रतिबंधों के बारे में जानकारी सार्वजनिक की जाए ताकि अगर कोई उनके खिलाफ अदालत के दरवाजे खटखटाना चाहे तो उसे सारी जानकारी उपलब्ध हो. इसके अलावा जजों की पीठ ने धारा 144 के बार बार लागू किये जाने की भी आलोचना की और कहा कि धारा का इस्तेमाल मतभेद को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता.
इस फैसले को भारत में नागरिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक अहम फैसले के रूप में देखा जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं में से एक अनुराधा भसीन ने डॉयचे वेले से कहा कि फैसला एक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक सिद्धांत के तौर पर स्थापित हो गया है कि इंटरनेट संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत एक मूलभूत अधिकार है. लेकिन भसीन ने इस फैसले के प्रति थोड़ी निराशा भी व्यक्त की. उन्होंने कहा, "बहुत ज्यादा देर हो चुकी है. पांच महीने लग चुके हैं कोई निर्णय लेने में. इन पांच महीनों में कश्मीर में मीडिया को इतना नुकसान हुआ है और हमें कोई भी तात्कालिक राहत नहीं दी गई है."
तकनीकी मामलों की वकील मिशी चौधरी ने ट्विटर पर लिखा कि समय के अनुरूप ढलने वाली एक अदालत से इसी तरह के फैसले की उम्मीद की जाती है.
भसीन की ही तरह कई और लोग भी इस फैसले से असंतुष्ट हैं. वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त ने ट्वीट किया कि उन्हें ये फैसला वास्तविक से ज्यादा अकादमिक लगा.
वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर ने डॉयचे वेले से कहा कि इस फैसले से कश्मीर की यथा स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा. उन्होंने कहा, "ये सिर्फ एक धर्मनिष्ठ मंशा की अभिव्यक्ति है जिसका कश्मीरियों के लिए और देश के अलग अलग हिस्सों में विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के लिए कोई मतलब नहीं है."
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