"कलम से दें कलम का जवाब"
१२ जनवरी २०१५पूरे फ्रांस में इमामों ने जुम्मे की नमाज से पहले अपने भाषण में शार्ली एब्दॉ पर हुए हमले की निंदा करते हुए अहिंसा पर जोर दिया. पेरिस की पांच मस्जिदों के इमाम खबर तैयब ने हमलावरों के बारे में कहा कि वे "अपराधी हैं मुसलमान नहीं." बांग्लादेश में भी एक बड़ी नमाज में पेरिस के हमलावरों की निंदा की गई. तैयब ने कहा कि हमलों का नतीजा यह है कि मुसलमानों से डर बढ़ रहा है "और मुसलमान भी डर में जी रहे हैं." उन्होंने इस्लाम को सौम्य बताते हुए कहा कि मुसलमानों को हिंसा का इस्तेमाल करने की कोई वजह नहीं है.
पेरिस के ओबर मस्जिद के इमाम अब्देल कादर ने कहा कि हमलावर मुसलमानों के नाम पर नहीं बोल सकते. उन्होंने कहा पैगंबर मोहम्मद ने गैर मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का उपदेश नहीं दिया था. इमाम ने कहा कि शार्ली एब्दॉ के कार्टूनिस्टों ने मुसलमानों पर कलम से हमला किया था, "उसका जवाब भी कलम से ही दिया जाना चाहिए." दक्षिण फ्रांसीसी मोंपेलिए की मस्जिद के इमाम मुस्तफा रियाद ने कहा, "हम कार्टून का जवाब कार्टून से देते हैं, स्केच का जवाब स्केच से और प्रेस आर्टिकल का जवाब प्रेस आर्टिकल से, इंटरव्यू का जवाब इंटरव्यू से."
इस्लामी मौलवियों ने अपील की है कि इस्लाम विरोधी प्रदर्शनों या हमलों का जवाब हिंसा से नहीं दिया जाना चाहिए. बुधवार को व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दॉ पर हुए हमले के बाद मुस्लिम संस्थानों पर भी कई हमले हुए हैं. पश्चिमी फ्रांस के नाँत शहर में इमाम बेल्गाचेम बेन सइद ने कहा, "ऐसी हिंसा का जवाब हम शांतिपूर्ण विरोध के साथ देंगे."
बांग्लादेश में तोंगी में हुए एक अंतरराष्ट्रीय समारोह में भाग लेने वाले मुसलमानों ने हमलावरों की निंदा करते हुए कहा, "इस्लाम हत्याओं का समर्थन नहीं करता." मौलवी मोहम्मद फैयाज ने कहा, "हमला करने वालों को पता नहीं है कि इसलाम का मकसद क्या है." ढाका के मौलवी मोहम्मद जकारिया ने पेरिस के हमलावरों को आतंकवादी बताया. तोंगी में हर साल तीस लाख मुसलमान जमा होते हैं. मक्का में हज के बाद यह मुसलमानों का सबसे बड़ा जलसा है.
जर्मनी में नई कंजरवेटिव पार्टी एएफडी के प्रमुख बैर्न्ड लुके ने कहा है कि जर्मनी की मस्जिदों में इमामों को संविधान की शपथ लेनी चाहिए. उन्होंने कहा, "मैं इस पक्ष में हूं कि मुस्लिम समुदायों में प्रवचन देने वाले सभी लोगों को संविधान और उसके मूल्यों की शपथ लेनी चाहिए." लुके ने कहा कि उसमें हिंसा का परित्याग, महिलाओं को बराबरी का हक और दूसरे धार्मिक समुदायों का आदर शामिल है.
एमजे/आईबी (डीपीए)