ईयू को भारत चीन से पिछड़ने का डर
११ मार्च २०१०ब्रिटेन की कैथरीन ऐशटन को यूरोपीय संघ की पहली विदेश मंत्री का पद संभाले 100 दिन पूरे हो गए हैं. जब उन्होंने यह पद ग्रहण किया तो कहा गया कि वह बहुत ही कम अनुभवी है और अपनी बात मनवा नहीं पाएंगी. अब ऐशटन ने आने वाले 5 साल के लिए अपना एजेंडा पेश किया है और इसमें उन्होंने यूरोपीय संघ के देशों से एकजुटता की अपील की है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि यूरोप अपनी नींद से नहीं जगा तो भारत और चीन जैसे देश जल्द ही उसे पीछे छोड़ देंगे.
ऐशटन ने कहा है कि दुनिया में यूरोप का प्रभाव कम होता जा रहा है. ऐसे में यदि यूरोप के देश मिलकर नहीं चलेंगे, तब उन्हें भारत और चीन जैसी उभरती हुई ताक़तें जल्द ही पीछे छोड़ देंगी. ऐशटन ने यह भी कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि यूरोप विश्व शक्ति के रूप में कमज़ोर होता जा रहा. इसके कई कारण है. एक तो यूरोप की आबादी कम होती जा रही है. उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि विश्व अर्थव्यवस्था में यूरोप की हिस्सेदारी 28 फ़ीसदी से घटकर 21 फ़ीसदी रह गई है. दूसरी तरफ़ ऐशटन के मुताबिक़ भारत और चीन जैसे देशों में हर साल औसतन 10 फ़ीसदी की दर से आर्थिक वृद्धि हो रही है और इसीलिए वे राजनितिक रूप से भी शक्तिशाली होते जा रहे हैं.
53 साल की ऐश्टन ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि दुनिया में जो भी बड़े संगठन हैं या जो भी बड़े सम्मेलन हो रहे हैं, उनमें एक ही बात देखी जा सकती है. यदि यूरोपीय देश मिलकर काम करेंगे, तभी यूरोप एक समूह के तौर पर महत्वपूर्ण बनेगा. यदि ऐसा नहीं हो पाता है, तब ऐशटन के मुताबिक़ दूसरी शक्तियां यूरोप के लिए निर्णय लेंगी.
यूरोप को और मज़बूत बनाने के लिए ऐशटन ने अपने भाषण में कुछ सुझाव भी दिए. उन्होंने कहा कि यूरोप को अमेरिका के साथ संबंध अच्छे रखने ही हैं. लेकिन साथ ही उन पड़ोसी देशों से भी रिश्ते बेहतर होने चाहिए जो यूरोपीय संघ की सीमाओं पर बसे हैं. 50 करोड़ लोगों और 27 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले यूरोपीय संघ को अंतरराष्ट्रीय नैटो जैसे संगठनों के साथ भी अपने संबंध और मज़बूत बनाने चाहिए. इसके अलावा कई देश यूरोपीय संघ की मदद चाहते हैं, इनमें बहुत से अफ़्रीकी देश शामिल हैं. ऐश्टन ने कहा कि संघ इस बारे में ध्यान ही नहीं देता. कुल मिलाकर ऐशटन चाहती हैं कि यूरोप को स्मार्ट और महात्वकांक्षी बनना चाहिए.
रिपोर्टः एजेंसियां/प्रिया एसेलबोर्न
संपादनः ए कुमार