ईसाइयों के लिए सबसे खराब रहा वर्ष 2015
१९ जनवरी २०१६कैथोलिक सेक्यूलर फोरम (सीएसएफ) दशकों से ईसाई तबके के लोगों पर बढ़ते हमलों और उत्पीड़न के मामलों को सूचीबद्ध करता रहा है. इसके मुताबिक, वर्ष 2014 के मुकाबले ऐसे मामलों में 20 फीसदी वृद्धि हुई है. फोरम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2015 के दौरान अपनी विचाराधारा और धर्म के पालन व प्रचार-प्रसार के आरोप में ईसाई तबके के लोगों व संस्थाओं पर हमले की कम से कम 365 घटनाएं हुई हैं. यानी रोजाना औसतन एक. सीएसएफ के महासचिव जोसेफ डायस का दावा है कि बीते एक साल के दौरान इन हमलों में तीनगुनी वृद्धि हो गई है.
इस रिपोर्ट के तैयार करने में फोरम की सहायता करने वाले कनार्टक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज एमएफ सल्दान्हा कहते हैं कि विदेशी मानवाधिकार संगठनों ने भी इन मामलों का संज्ञान लिया है. वह कहते हैं, "ऐसे मामलों पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ओपेन डोर्स की ओर से तैयार वैश्विक ईसाई उत्पीड़न सूचकांक में तेजी से ऊपर चढ़ते हुए भारत 17वें स्थान पर पहुंच गया है." वर्ष 2015 के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में कट्टरपंथी तत्वों के हमलों में कम से कम आठ ईसाइयों की मौत हो गई और आठ हजार से ज्यादा लोग घायल या उत्पीड़न के शिकार हुए. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन आठ हजार लोगों को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा उनमें चार हजार महिलाएं और दो हजार बच्चे शामिल थे.
मध्यप्रदेश सबसे ऊपर
ईसाई तबके के लोगों पर उत्पीड़न व हमलों के मामले में मध्यप्रदेश का नाम सबसे ऊपर है. उसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ का स्थान है. जोसेफ कहते हैं, "इन राज्यों में पहले से ही ईसाइयों पर उत्पीड़न होता रहा है. लेकिन बीते चार वर्षों के दौरान ऐसे मामले तेजी से बढ़ गए हैं." सीएसएफ की रिपोर्ट में इसके लिए हिंदुत्ववादी गुटों को जिम्मेदार ठहराया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, "केंद्र व कई राज्यों में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकारों के सत्ता में आने के बाद अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाओं में तेजी आई है." रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादातर घटनाओं की रिपोर्ट पुलिस में नहीं दर्ज कराई जाती.
सीएसएफ ने इस मामले में राजनेताओं और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाया है. जोसेफ कहते हैं, "उत्पीड़न के कई गंभीर मामलों में पुलिस व स्थानीय नेताओं के दबाव की वजह से पीड़ितों को हमलावरों के साथ समझौता करने पर मजबूर होना पड़ता है और ऐसे मामले दर्ज नहीं किए जाते." पीड़ित लोग हमलावरों से डरे रहते हैं और उनको लगता है कि शिकायत करने पर उनको दोबारा उत्पीड़न का शिकार होना पड़ सकता है. रिपोर्ट में सिर्फ उन मामलों को ही सूचीबद्ध किया गया है जो पुलिस तक पहुंचे हैं.
हिंदुत्व की राजधानी
सीएसएफ की रिपोर्ट में महाराष्ट्र को हिंदुत्व की राजधानी करार देते हुए कहा गया है कि दिल्ली भी ऐसे मामलों में देश की दस शीर्ष राज्यों में शामिल है. यहां कैथोलिक चर्चों पर हमले की पांच घटनाएं दर्ज की गईं. इसके अलावा ईसाई तबके के आम लोगों व पादरियों पर भी हमले हुए. महासचिव जोसेफ कहते हैं, "उत्पीड़न के असली मामलों की तादाद कहीं ज्यादा है. पुलिस बल भी सांप्रदायिकता के रंग में रंगा है. इसी वजह से कई लोग ऐसे मामलों में पुलिस के पास नहीं जाते. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभुत्व वाले इलाकों में हमलों व उत्पीड़न के बाद पीड़ितों को पुलिस के पास नहीं जाने की धमकियां दी जाती हैं."
जोसेफ का आरोप है कि कुछ मामलों में मीडिया भी पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाती है. वह कहते हैं, "हमलावरों के मुकाबले तादाद कम होने की वजह से ईसाई लोग अपना बचाव करने या जवाबी हमले करने में सक्षम नहीं हैं." इससे पहले वर्ष 2013 में जारी सीएसएफ की रिपोर्ट में भारत में ईसाइयों पर हमले के चार हजार मामले दर्ज किए गए थे. कैलिफोर्निया में भारतीय ईसाई समूहों ने भारत-अमेरिका वार्ता में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा शामिल कराने के लिए उस रिपोर्ट का इस्तेमाल किया था. ऐसे कई मानवाधिकार संगठनों ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और मानवाधिकार सुनिश्चित करने संबंधी प्रस्ताव भी पारित किए थे.