एक ठुल्ले की जिंदगी
४ जुलाई २०१६आम लोग जहां रोज हर 8-10 घंटे काम करते हैं और फिर दो दिन की छुट्टी लेते हैं, वहीं पुलिस का एक सिपाही कम से कम 14 घंटे की ड्यूटी करता है. छुट्टी मिलना सिफारिश या ड्यूटी चार्ट बनाने वाले पर निर्भर होता है. कभी वह रात की ड्यूटी करेगा. सुबह घर लौटेगा. दोपहर बाद फिर ट्रैफिक ड्यूटी में जाएगा ताकि आप समय से घर पहुंचे, इसके लिए वह धुएं में डंडा हिलाता रहेगा. देर शाम घर लौटेगा और फिर दो तीन घंटे के आराम के बाद फिर नाइट शिफ्ट पर चला जाएगा.
गर्मियों में आप एयरकंडीशनर, कूलर या पंखे के नीचे काम करते हैं. लेकिन उससे आप उम्मीद करते हैं कि वह पेड़ की छांव में भी न बैठे. इस दौरान अगर वह पैसा देकर भी पानी पियेगा तो भी आप कहेंगे कि ठुल्ला मुफ्त का माल गटक रहा है.
14 से 16 घंटा काम करने के बाद भी अगर घर लौटते समय रास्ते में उसकी आंखों के सामने कुछ हो जाए, तो लोग अपनी जिम्मेदारी भूलकर सारी उम्मीदें उसी पर टिका देते हैं. थकान से भरा पुलिसकर्मी अगर घटना को नजरअंदाज कर दे तो सबको पता है कि जनता क्या कहेगी.
दिन, रात, गर्मी, जाड़ा, बरसात कुछ भी हो, गाड़ी नहीं है तो पुलिसकर्मी अपनी मोटरसाइकिल से मौके पर पहुंचेगा. विभाग कौ़ड़ियों के भाव तेल का पैसा देगा, वो भी दो-तीन महीने बाद. मोबाइल फोन का पैसा तो उसे अपनी जेब से भरना होगा.
(इस वीडियो में बेहद अभद्र भाषा इस्तेमाल की गई है. लेकिन यह दिखाता है आए दिन पुलिसकर्मियों के कैसे पैसे और रसूख में डूबे लोगों का सामना करना पड़ता है.)
आरोपियों और कैदियों को पेशी में ले जाते वक्त भी पूरा टिकट वह अपनी जेब से देगा. एक रस्सी और लाठी के सहारे उसे आरोपी को कोर्ट तक ले जाना है, उसके खाने पीने का इंतजाम भी करना है. अगर आरोपी को कुछ हो गया तो पुलिसवालों को पता है कि नौकरी खतरे में पड़ जाएगी. लिहाजा आरोपी को प्यार से अपने नियंत्रण में भी रखना पड़ता है. शाम जब वह पेशी से वापस लौटेगा तो उसे सारे कागज संभालने होंगे. दो से तीन या कहीं कहीं छह महीने बाद उसे इसका भत्ता मिलेगा. अगर वह रिटायर भी हो जाए तो भी कई केसों की तारीख लगेने पर उसे अदालत का नोटिस मिलेगा. अपने जेब के पैसे लगाकर उसे कोर्ट की तारीख पर जाना होगा, नहीं तो उसके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी हो सकता है.
इसके बावजूद हर साल पुलिस में भर्ती होने वाले हजारों युवा समाज भी जोश में समाज को बदलने की बात करते हैं. उनमें से कुछ पुलिसकर्मी ऐसा करते भी हैं लेकिन तभी साहब का या नेताजी का फोन आता है. कुछ को सस्पेंड कर दिया जाता है या फिर बहुत ही दूर ट्रांसफर कर दिया जाता है. सलमान खान के हिट एंड रन वाले मामले पुलिस कॉन्स्टेबल रवींद्र पाटिल याद हैं ना?
यह सब झेलने के लिए एक आम पुलिसकर्मी 17,000 से 22,000 रुपये की तनख्वाह मिलती है. इसमें उसे किराया भी देना, बीवी बच्चों को पालना भी है. छुट्टियां लेने के लिए बार बार साहब से रिक्वेस्ट भी करनी है. बुरा मत मानिये, लेकिन सच यही है कि अगर पुलिसकर्मी पूरी ईमानदारी से काम करेगा तो वह अपना परिवार नहीं पाल सकेगा. पुलिस को कोसने के बजाए इस सच्चाई को स्वीकार कीजिए. अपने वेतन और अधिकारों में वृद्धि की मांग के बीच उस पुलिसकर्मी के लिए भी सरकार से कुछ मांगिये. पुलिस नियमावली उसे खुलकर विरोध करने से रोकती है, लिहाजा कम से कम आप तो उसके लिए आवाज उठाइये. अगर पुलिस सेहतमंद होगी, तो समाज भी स्वस्थ होगा. वरना बीमार ढांचा दूसरे की क्या मदद करेगा.
ओंकार सिंह जनौटी