एक स्मार्ट शहर जो सुनने के लिए कान लगा रहा है
२१ नवम्बर २०१८शहर पर नजर रखने का आसान जरिया हैं सीसीटीवी कैमरे, लेकिन स्पेन के शहर सैनटैंडर को कैमरे वाली आंख की बजाए कान दिए जा रहे हैं. यह शहर आवाजों के जरिए ट्रैफिक से लेकर पार्किंग और अपराध की घटना से लेकर बीमारों को अस्पताल तक पहुंचाने में मदद करने को तैयार हो रहा है. शहरों में आवाजों के लिए वजह ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती, हर तरफ शोर सुनाई देता है. गाड़ियों और उनके सायरन का शोर इसमें सबसे प्रमुख है जिससे बचने का कोई तरीका अब तक नहीं मिला है. रिसर्चरों ने इस शोर का इस्तेमाल शहर की व्यवस्था को दुरूस्त करने की सोची है.
अब शोर का इस्तेमाल करना है तो उसके लिए उन्हें सुनने वाले कान की भी जरूरत होगी. इंसान के कान से काम नहीं चल सकता इसलिए मशीनी कान बनाए गए हैं. ये कान दरअसल अकूस्टिक डिवाइस (श्रवण यंत्र) हैं जो ध्वनि की तरंगों को पहचान कर उनका मतलब समझ जाते हैं. जैसे कि अगर एंबुलेंस के सायरन की आवाज आ रही है तो उसके लिए ट्रैफिक लाइट को हरा कर देना होगा. इन यंत्रों को ट्रैफिक लाइट से जोड़ कर यह काम किया जा सकता है और प्रयोग के नतीजे अब तक उत्साह बढ़ाने वाले हैं. पेद्रो मालो इस रिसर्च प्रोजेक्ट के कॉर्डिनेटर हैं. वो बताते हैं, "हम एक तकनीकी समाधान सुझा रहे हैं, ऐसा अकूस्टिक डिवाइस जो ट्रैफिक लाइट में बदलाव कर एंबुलेंस को जल्दी अस्पताल पहुंचाने में मदद करे."
इस डिवाइस में अकूस्टिक सेंसर लगा होता है यानी ध्वनि तरंगों की पहचान करने वाला सेंसर. यह इतना स्मार्ट है कि तुरंत जान जाता है कि एंबुलेंस कहां से आ रही है और फिर उसके बाद यह सिर्फ उसी रास्ते पर ट्रैफिक की बत्तियों में बदलाव करता है. रिसर्चर डॉर्जी नेजी बताते हैं, "इन सेंसरों से हमें कई तरह के फायदे मिल सकते हैं. ये किफायती हैं और इन्हें कई जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है. अकूस्टिक सेंसर को कुछ देखने की जरूरत नहीं पड़ती. बिना देखे ही आवाज से एंबुलेंस को पहचान सकते हैं."
यूरोप के कई शहरों में उन्हें स्मार्ट सिटी बनाने के लिए इस तरह के प्रयोग किए और अपनाए जा रहे हैं. स्पेन का सैनटैंडर भी इन्हीं में से एक है जो यूरोप का बेहतरीन स्मार्ट सिटी माना जाता है. सैनटेंडर शहर के इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क को इन सेंसरों की मदद से बेहतर बनाया जा रहा है. रिसर्चर लुइस मुनोज के मुताबिक इस तरह के सिस्टम शहर को अच्छा बना सकते हैं. उन्होंने कहा, "स्मार्ट सिटी से हमारा मतलब है एक ऐसा शहर जो अलग अलग तरह का डाटा जमा करता हो. इससे ट्रैफिक को संभालने में, ऊर्जा की खपत में और पर्यावरण से जुड़े अलग अलग पहलुओं में मदद मिल सकती है. इस तरह के सिस्टम शहरी जीवन को ज्यादा आसान और टिकाऊ बनाते हैं."
इसी तरह का एक और सिस्टम है पार्किंग की जगहों पर लगा इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सेंसर. यह पता लगाता है कि कितनी कारों के लिए अभी पार्किंग की जगह खाली है. इस सेंसर की मदद से लोगों को उनके स्मार्टफोन पर ही जानकारी मिल जाती है. इस वजह से उन्हें जगह ढूंढने के लिए इधर उधर भटकना नहीं पड़ता. हालांकि इतनी जानकारी देने के बाद एक चिंता यह उठती है कि कहीं इससे आपकी निजी जानकारी तो दूसरों तक नहीं पहुंच रही क्योंकि किसी और को भी पता चल सकता है कि कोई कार कहां खड़ी है. इसके अलावा इन कानों का इस्तेमाल कुछ और सुनने के लिए भी हो सकता है.
इस आशंका पर रिसर्चरों का कहना है कि यह सच है कि शहर को कान मिल गए हैं लेकिन वह सिर्फ जरूरत के वक्त ही सुनता है. यह उस जानकारी को अपने पास जमा नहीं करता इसलिए प्राइवेसी को वैसा खतरा नहीं है. रिसर्चर अनिका सेल्स्ट्रॉम ने बताया, "लोग नहीं चाहते कि उनकी बात सुनी जाए लेकिन जब बात सुरक्षा की आती है, तो उन्हें ऑडियो रिकॉर्डिंग से कोई आपत्ति नहीं होती. हमने अपनी रिसर्च में पाया है कि वे सुरक्षा के लिए अपनी प्राइवेसी को थोड़ा बहुत त्यागने के लिए तैयार हैं. तो अगर उन्हें एक ज्यादा सुरक्षित शहर का आश्वासन दिया जाए, तो वो अपनी प्राइवेसी में थोड़ी छूट दे देंगे."
इस स्मार्ट नेटवर्क को एक कमरे से नियंत्रित किया जाता है. ये कंट्रोल रूम शहर की एक प्रयोगशाला जैसा है, जहां रिसर्चर भविष्य का शहर तैयार करने में लगे हैं. रिसर्चरों का कहना है कि इस अकूस्टिम सिस्टम को कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है. मसलन सड़क पर शोर को सुन कर यह समझा जा सकता है कि वहां कितना ट्रैफिक होगा या फिर आपात स्थिति के बारे में भी जानकारी मिल सकती है. अगर कहीं कोई हादसा हुआ हो या फिर गोली चलने जैसी वारदात, तो आवाजों के जरिए अधिकारियों तक फौरन सूचना पहुंचाई जा सकती है.
समय के साथ साथ संसाधन की बचत तो होगी ही, मानवीय गलतियों की आशंका भी कम होगी और लोग अपना वक्त किसी और अच्छे और मनपसंद काम में इस्तेमाल कर सकेंगे.