ऑपरेशन मोटापे का, दूर हुआ मधुमेह भी
१६ मार्च २०१०शरीर की चयापचय क्रिया में गड़बड़ी से होने वाले मधुमेह रोग की मुख्य पहचान है रक्त में शक्कर की मात्रा बढ़ जाना और पेशाब के साथ शक्कर जाना.
इस शक्कर को नियंत्रण में रखने के लिए इंसुलिन नाम के जिस हार्मोन का इंजेक्शन लेना पड़ता है, उसकी खोज करने वाले कैनडा और स्कॉटलैंड के दो वैज्ञानिकों को 86 वर्ष पूर्व नोबेल पुरस्कार भी मिला था. इसी खोज का फल है कि असाध्य रोग होते हुए भी मघुमेह से पीड़ित लोग लंबी आयु प्राप्त कर सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं.
इंसुलिन की इस खोज के 86 वर्ष बाद डॉक्टर अनजाने में ही एक नयी खोज कर बैठे हैं. वे अवाक हैं कि बहुत अधिक मोटापे को दूर करने के लिए पेट में एक बाइपास ऑपरेशन करने से टाइप दो कहलाने वाला मधुमेह मोटापे से पहले छूमंतर हो जाता है.
कुछ ही दिनों में मधुमेह ग़ायब
शल्यचिकित्सक यह ऑपरशेन फ़िलहाल केवल तभी करते हैं, जब मोटापा अपने आप में एक बीमारी बन गया हो और बाइपास ऑपरेशन के सिवाय और कोई चारा न बचा हो. ऐसे किसी रोगी को यदि मधुमेह की भी शिकायत है, तो 80 से 90 प्रतिशत मामलों में वह ऑपरेशन के कुछ ही दिन बाद ग़ायब हो जाती है.
जर्मनी में हाइडेलबेर्ग के विश्वविद्यालय से जुड़े अस्पताल के शल्यचिकित्सा निदेशक प्रो. मार्कुस ब्युइश्लर बताते हैं:"आजकल यह ऑपरेशन एन्डोस्कोपिक तरीके से होता है, यानी पेट पर बहुत छोटा चीरा लगा कर और एक मिनी कैमरे-जैसा लपैरोस्कोप पेट में उतार कर. अन्ननली जहां आमाशय यानी जठर से मिलती है, उस के पास उसे काट कर अलग कर दिया जाता है और छोटी आंत के ऊपरी हिस्से से इस तरह जोड़ दिया जाता है कि अन्न आमाशय से हो कर जाने के बदले सीधे ही छोटी आंत में पहुंच जाता है".
मधुमेह विशेषज्ञ हैरान
मधुमेह विशेषज्ञ हैरान हैं कि इस बाइपास ऑपरेशन के तुरंत बाद सभी रोगियों में रक्त-शर्करा की मात्रा बिल्कुल सामान्य कैसे हो जाती है? अब तक का सिद्धांत यही है कि मधुमेह होने में मोटापे का बहुत बड़ा हाथ है, हालांकि यह भी देखने में आता है कि मोटापे से पीड़ित हर व्यक्ति को मधुमेह नहीं होता.
दूसरी ओर, मधुमेह के दस प्रतिशत रोगी दुबले-पतले होते हैं. यानी, मधुमेह के पीछे शरीर के वज़न के अलावा कुछ और भी बड़े कारण होने चाहिये. प्रो. ब्युश्लर कहते हैं:"विज्ञान की दृष्टि से और भी दिलचस्प बात यह है कि बाइपास ऑपरेशन के बाद वज़न तेज़ी से घटने में तो एक से दो साल लग जाते हैं, जबकि मधुमेह कुछेक दिनों में ही ग़ायब हो जाता है. अब यही शोध का विषय है कि यह कैसे होता है. इसी में मधुमेह के इलाज़ की सबसे अधिक संभावनाएं छिपी हैं".
व्याख्या की तलाश
हो सकता है कि यह रहस्य जान लेने के बाद ऐसी दवाइयां भी बन सकें कि पेट में बाइपास ऑपरेशन की ज़रूरत ही न पड़ेः "इस समय की एक थिअरी यह है कि पेट मे कुछ ऐसे हार्मोन होते हैं, जो मधुमेह होने में हाथ बंटाते हैं. पेट को अन्न मार्ग से अलग कर देने पर वे अन्न के साथ मिल नहीं पाते. दूसरी थिअरी यह है कि जब अन्न सीधे छोटी आंत में पहुंचता है, तब शायद कुछ ऐसे हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं, जो अन्यथा सक्रिय नहीं हो पाते. इससे इंसुलिन का कहीं बेहतर स्राव होता है".
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि बाइपास ऑपरेशन के कुछ ही दिन बाद न केवल लगभग सभी रोगी मधुमेह से मुक्त हो जाते हैं, उन्हें पांच वर्ष बाद भी न तो इंसुलिन का इंजेक्शन लेना पड़ा और न कोई दूसरी दवा. खानपान में भी किसी परहेज़ की ज़रूरत नहीं रही.
ऑपरेशन ख़तरे से ख़ाली नहीं
ऑपरेशन के लिए रोगी को पूरी तरह बेहोश करना पड़ता है और वह ख़तरे से ख़ाली भी नहीं है. अमेरिका के आंकड़े दिखाते हैं कि हर दो सौ से पांच सौ रोगियों में से एक की मृत्यु भी हो जाती है, हालांकि ये आंकड़े बहुत अधिक वज़न वाले रोगियों के बारे में हैं. प्रो. ब्युइश्लर कहते हैं:"अभी तक हम इस हालत में नहीं है कि डायबिटिज टाइप दो का कोई भी रोगी हमारे पास आये और कहे कि मेरा ऑपरेशन करो तो हम ऑपरेशन कर दें. अभी तो सब कुछ अध्ययन की अवस्था में है. इसी अध्ययन के तहत यहां हाइडेलबेर्ग में हम ने कम मोटापे वाले मधुमेह रोगियों का भी ऑपरेशन करना शुरू किया है".
कहने की आवश्यकता नहीं कि मोटापा घटाने के बाइपास ऑपरेशन से मधुमेह अपने आप दूर हो जाने का रहस्य यदि मालूम हो गया, तो यह एक पत्थर से दो शिकार करने जैसी बड़ी सफलता होगी.
रिपोर्ट- राम यादव
संपादन - महेश झा