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राजनीतिविश्व

ऑस्ट्रेलिया-चीन संबंधों में बढ़ती कड़वाहट

राहुल मिश्र
१ अगस्त २०२०

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया धमकियों से डरने वाला देश नहीं है और वह शांति और सौहार्द के लिए अपने मूल्यों से समझौता नहीं कर सकता.

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China Peking Australische Flagge
तस्वीर: Getty Images/F. Li

बक्श देता तो बात कुछ भी न थी, लेकिन चीन ने ऐसा नहीं किया. कोविड-19 महामारी की शुरुआत कैसे हुई और इसका संक्रमण कैसे फैला, ऑस्ट्रेलिया ने सिर्फ इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की थी. ऑस्ट्रेलिया ये मांग डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) असेम्बली में पेश करने वाले देशों में अग्रणी था. ऑस्ट्रेलिया की मीडिया और राजनीतिक हलकों में चीन को इस महामारी के लिए कुछ लोगों ने जिम्मेदार भी माना. चीन ऑस्ट्रेलिया की इसी हरकत से इतना नाराज हो गया कि आज ऑस्ट्रेलिया–चीन संबंध पिछले कई वर्षों की तुलना में सबसे खराब दौर में पहुंच गए हैं. संबंधों में खटास पिछले कुछ महीनों में लगातार बेरोकटोक बढ़ती चली गयी है.

देखा जाए तो बात कुछ भी नहीं थी. खास तौर पर अगर हम मान लें कि चीन का इस महामारी के दुनिया भर में फैल जाने में कोई हाथ नहीं रहा है, और चीन भी यही कहता रहा है. लेकिन फिर भी उसे अंतरराष्ट्रीय जांच की बात नागवार लगी, खास तौर पर यह कि ऑस्ट्रेलिया जैसे देश उसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. चीनी मीडिया और उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी ऑस्ट्रेलिया को पिछले कुछ महीनों में न सिर्फ छोटी-बड़ी कई नसीहतें और चेतावनियां दीं बल्कि उसे अपनी हैसियत के हिसाब से बर्ताव करने की नसीहत भी दे डाली.

ऑस्ट्रेलिया का सख्त रवैया

बढ़ते बढ़ते बात अब इतनी बढ़ गई है कि ऑस्ट्रेलिया ने भी चीन की हाल में हुई तमाम गतिविधियों पर तीखा रुख अख्तियार कर लिया है. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया धमकियों से डरने वाला देश नहीं है और वह शांति और सौहार्द के लिए अपने मूल्यों से समझौता नहीं कर सकता. इन तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों और छींटाकशी के बीच आस्ट्रेलिया और चीन के संबंधों में दूरियां बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही हैं.

कोविड-19 की जांच की मांग से उपजी कड़वाहट के बाद कई बार चीन ने आस्ट्रेलिया को इस बात की चेतावनी दी कि ऑस्ट्रेलिया चीन पर व्यापार के लिए इतना निर्भर है कि एक झटके से ही चीन उसकी अर्थव्यवस्था की चूलें हिला देगा. इसके बाद एक के बाद एक लिए फैसलों में चीन ने इस दावे को मूर्त रूप देने की कोशिश भी की है. गौरतलब बात है कि चीन ऑस्ट्रेलिया के लगभग एक तिहाई निर्यात का स्रोत है.

चीन के कारोबारी दांवपेंच

चीन ने पिछले महीनों में ऑस्ट्रेलिया से आयात किए जाने वाले जौ पर 80 प्रतिशत टैरिफ लागू कर दिया. यह कितना बड़ा कदम है और इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रिपोर्टों के अनुसार पिछले साल आस्ट्रेलिया ने 80 लाख टन जौ का उत्पादन किया और इसमें से आधे से ज्यादा जौ का निर्यात चीन को किया गया. अगर आस्ट्रेलिया सरकार ने इसका कोई समाधान नहीं ढूंढा तो 80 प्रतिशत टैरिफ से उत्पादकों की कमर टूट जाएगी. ऑस्ट्रेलिया के कृषि उत्पादकों और निर्यातकों के लिए यह बुरी खबर की सिर्फ शुरुआत थी. इसके बाद चीन ने ऑस्ट्रेलिया के बीफ और पोर्क पर भी बड़ी रुकावटें खड़ी कर दीं. इन्हीं घटनाओं में चीन का वह निर्णय भी शामिल था जिसमें एक ऑस्ट्रेलियन नागरिक को मादक पदार्थों की तस्करी के आरोप में फांसी  दे दी गयी.

चुन-चुन कर वार करने की चीन की रणनीति की अगली चाल तब सामने आई जब उसने बड़े ही कड़वे अंदाज में अपने नागरिकों को सलाह और चेतावनी दी कि वह आस्ट्रेलिया ना जाएं और अगर जाना पड़े तो संभल कर जाएं क्योंकि ऑस्ट्रेलिया में एशियाई मूल के लोगों से नस्ल-भेद होता है और चीनी लोगों पर पिछले महीनों में कोविड-19 महामारी के दौरान नस्ली हमले बढ़े हैं. इस वक्तव्य ने दोनों देशों में बड़ी हलचल पैदा कर दी. पर्यटन और उच्चशिक्षा ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था के लिए धनार्जन के बड़े स्रोत हैं. चीन ने इस पर भी कुठाराघात करने की कोशिश की. ऑस्ट्रेलिया में नस्लभेद किसी से छुपा नहीं है लेकिन यह इतना भी व्यापक नहीं है जैसा चीन के विदेश मंत्रालय ने अपने वक्तव्यों में कहा है. जो भी हो, इससे ना सिर्फ ऑस्ट्रेलिया के व्यापार और पर्यटन पर बुरा असर पड़ने की आशंका है बल्कि एशिया के अन्य देशों में उसकी छवि भी धूमिल हुई है. एक दशक पहले ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों पर भी कई हमले हुए थे जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में तेजी से कमी आयी थी.

ऑस्ट्रेलिया का पलटवार

स्पष्ट है, इन अप्रत्याशित हमलों से ऑस्ट्रेलिया तिलमिला गया और उसने जवाबी कार्रवाई में कई कदम उठाए हैं. ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश नीति निर्धारकों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों में इस बात पर बहस अभी भी छिड़ी हुई है और इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया को व्यापार और निवेश के लिए चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने और दूसरे देशों से व्यापार संबंध मजबूत करने की तुरंत जरूरत है. स्कॉट मॉरिसन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई वर्चुअल शिखर वार्ता पर भी इसका व्यापक असर दिखा. कहीं न कहीं ऑस्ट्रेलिया को यह आशंका है कि अमेरिका की तर्ज पर  चीन उसके साथ भी व्यापार युद्ध कर सकता है. वैसे ऐसी आशंका ऑस्ट्रेलिया को ही नहीं भारत, कनाडा, न्यूजीलैंड, और दक्षिण कोरिया को भी है.

साथ ही, रणनीतिक और सामरिक मामलों पर ऑस्ट्रेलिया ने ना सिर्फ अमेरिका से नजदीकियां और बढ़ाना शुरू कर दिया है बल्कि अपने रूख में भी सख्ती बरती है. दक्षिण चीन सागर विवाद पर चीन की हाल में बढ़ी आक्रामक गतिविधियों पर इंडोनेशिया, वियतनाम, और फिलिपींस जैसे कई देशों ने नाराजगी दिखाई है. इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री प्रबोवो की भारत यात्रा इसी सहमति की परिचायक है.

अमेरिका का समर्थन

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पेयो के इस बयान के बाद कि चीन का नाइन डैश लाइन का दावा बेमानी है और उसके कब्जे उपनिवेशवादी और गैरकानूनी हैं, अन्य देशों की हिम्मत और हौसला बढ़ा है. पॉम्पेयो के बयान के बाद सामने आई अमेरिका की दक्षिण चीन सागर नीति कई मामलों में नई है जिसमें सबसे प्रमुख है उसका संयुक्त राष्ट्र के समुद्री कानून संधि पर जोर, फिलिपींस की चीन पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में दक्षिण चीन सागर विवाद पर हुई जीत का समर्थन, और चीन की नाइन डैश लाइन को गैरकानूनी करार देना. अमेरिका के कदम पर चलते हुए ऑस्ट्रेलिया ने भी ऐसे ही वक्तव्य जारी किए हैं और इन्हीं वक्तव्यों की गूंज ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय और भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बेरी-ओ-फेरेल के ट्विटर संदेशों में भी दिखी है. चीन की इस पर नाराजगी बढ़नी स्वाभाविक है.

इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया ने देश में 5G नेटवर्क स्थापित करने के मामले में चीनी कंपनी हुआवे पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. जहां तक मानवाधिकारों का सवाल है तो ब्रिटेन का साथ देते हुए और उसकी तर्ज पर ऑस्ट्रेलिया ने भी हांगकांग के शरणार्थियों को अपने देश आने का निमंत्रण दिया है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया ने शिनचियांग में उईगुर मुसलमानों के मानवाधिकार हनन पर भी आपत्ति जताई है. आज से लगभग एक दशक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया कभी नहीं चाहेगा कि उसे चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनना पड़े. दुर्भाग्य से वह स्थिति तो आ रही है लेकिन इसका जिम्मेदार सिर्फ ऑस्ट्रेलिया नहीं है.

भारत के साथ रिश्ते

फिलहाल ऑस्ट्रेलिया के लिए भारत की चतुर्देशीय मालाबार युद्धाभ्यास का हिस्सा बनना इस समय एक तुरुप का पत्ता साबित हो सकता है. एक तरफ इससे वह चीन को यह दिखा सकता है कि चीन के खिलाफ वह अकेला नहीं है, और दूसरा अमेरिका, जापान, और भारत जैसी बड़ी शक्तियों के साथ वह ना सिर्फ बराबरी में खड़ा है बल्कि इन देशों की दोस्ती में वह एक साझेदार भी है. इन चारों देशों के बीच क्वाड्रिलैटरल सहयोग को भी इससे एक बड़ी मजबूती मिलेगी. इस सब के बावजूद, चीन से अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता कम करना और चीन के लगातार हो रहे कूटनीतिक हमलों को झेलना फिलहाल ऑस्ट्रेलिया के लिए एक संघर्षपूर्ण चुनौती ही है.

राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.

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