ओलंपिक से लेकर क्रिकेट तक सारे मैदान सूने
१५ मई २०२०ओलंपिक खेलों का आयोजन 2021 में जुलाई-अगस्त महीने में किया जाएगा. अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिताएं जैसे यूरो 2020 या फीफा द्वारा आयोजित भारत में होने वाली फीफा अंडर-17 विमेन्स वर्ल्ड कप फुटबॉल का आयोजन इस साल नहीं हो पाएगा. इतना ही नहीं क्रिकेट के सभी ईवेंट भी मुल्तवी कर दिए गए हैं, जिसमें आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) जैसी लोकप्रिय क्रिकेट लीग भी शामिल है. ओलंपिक खेलों की तैयारी कर रहे भारतीय खिलाड़ी इस चुनौती से जूझने की कोशिशों में लगे हैं. ऐसे ही भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर के एथलीट हैं नीरज चोपड़ा. जेवलिन थ्रो (भाला फेंक) में एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीत चुके नीरज ने जनवरी 2020 में ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया था. लेकिन उनकी तैयारियों पर गहरा असर पड़ा है. इन दिनों पटियाला की एनआईएस में लॉकडाऊन का समय बिता रहे नीरज बताते हैं, "प्राब्लम हो रही है ओलंपिक की तैयारियों में, जब से लॉकडाऊन हुआ है ग्राउंड और ट्रेनिंग बंद है. थोड़ी बहुत जगह है होस्टल के बाहर है वहां थोड़ी फिटनेस का अभ्यास करते हैं और अपने कमरे में ही स्ट्रेचिंग और थोड़ी एक्सरसाईज जो कर सकते हैं वो करते हैं, लेकिन जैवलिन थ्रोईंग और वेट ट्रेनिंग बिल्कुल बंद है."
22 वर्ष के नीरज ने इस साल जनवरी में दक्षिण अफ्रीका में हुई कॉम्पीटिशन में 87.86 मीटर दूरी तक भाला फेंक ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया था. पिछले कुछ समय से चोट से जूझ रहे नीरज को साल 2019 में अपनी कोहनी की सर्जरी करवानी पड़ी थी जिसकी वजह से वो दोहा वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2019 सहित कई अंतरराष्ट्रीय ईवेंट में हिस्सा नहीं ले पाए थे. "ओलंपिक्स से पहले काम्पिटिशन मिलना बहुत जरूरी है, ताकि पता लग सके कि कैसी तैयारी है, क्योंकि मेरे तो दो-ढाई साल हो जाएंगे काम्पिटिशन खेले हुए." पिछले कुछ वर्षों से दुनिया के जाने-माने खिलाड़ी और कोच जर्मनी के ऊवे होन से कोचिंग हासिल कर रहे नीरज ने अब अपना कोच बदल लिया है. अब वो जर्मनी के ही विशेषज्ञ क्लाऊस ब्रोतनिस के साथ जुड़ गए हैं लेकिन इन दिनों अपने ट्रेनिंग सेशन मिस कर रहे हैं. "अभी हम जो ट्रेनिंग कर रहे थे तो मैं डॉ. क्लाऊस ब्रोतनिस के साथ था वो भी जर्मनी से ही हैं. काफी अच्छी ट्रेनिंग चल रही थी उनके साथ, टेक्निकल भी काफी अच्छे से देखते हैं, सब अच्छा चल रहा था, अभी काफी मिस कर रहे हैं उस चीज को. लेकिन उम्मीद है कि दोबारा से ट्रेनिंग स्टार्ट हो जाएगी तो काफी अच्छा रहेगा.”
महिलाओं की 100 मीटर फर्राटा रेस में भारत की उम्मीदों का भार उड़ीसा की दुती चंद के कंधों पर है हालांकि उन्होंने अभी तक ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं किया है लेकिन रियो ओलंपिक और वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं का अनुभव और जकार्ता एशियन गेम्स 2018 का रजत पदक जीतने के बाद वो फर्राटा रेस में देश की सबसे कामयाब धाविका बन चुकी हैं. 11.22 सेकंड के अपने सर्वश्रेष्ठ समय में 100 मीटर की दूरी तय करने वाली दुती को पूरी उम्मीद थी कि वो अगस्त 2020 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई कर लेती लेकिन कोरोना वाइरस की वजह से सारी तैयारियों पर पानी फिर गया. "अब ओलंपिक के लिए फिर से तैयारी करनी पड़ेगी क्योंकि हम तो जुलाई 2020 को टारगेट रखते हुए तैयारी कर रहे थे, जो भी ट्रेनिंग कर रहे थे सारी मिट्टी में मिल गई."
फिलहाल भुवनेश्वर में रह रहीं दुती अपने घर में ही रहकर एक्सरसाइज कर रही हैं लेकिन अपने कोच से लगातार ऑनलाईन जुड़ी हुई हैं. दुती कहती हैं, "कोच मुझे ऑनलाईन ट्रेनिंग दे रहे हैं और मैं ऑनलाइन ट्रेनिंग को ही फॉलो कर रही हूं." दुती बताती हैं कि जब लॉकडाऊन खुलेगा तब पता चलेगा कि अभी कितनी तैयारी की जरूरत है क्योंकि महिलाओं की 100 मीटर रेस में ओलंपिक के लिए क्वालिफाईंग समय 11.15 सेकंड का है. लेकिन रंज उन्हें इस बात का भी है कि अगर ओलंपिक खेल अपने तय समय पर होते तो ज्यादा फायदा होता है. उनके मुताबिक, "अगर कोरोना वायरस नहीं होता तो इसी साल ओलंपिक होता और बहुत अच्छा बेनेफिट होता क्योंकि मैंने बहुत प्लानिंग के साथ ट्रेनिंग किया था. इसमें बहुत नुकसान हुआ है. अब अगले साल ओलंपिक में उतना फायदा मिल पाएगा कुछ गारंटी नहीं है." अक्टूबर 2019 से ही ओलंपिक खेलों की ट्रेनिंग कर रही दुती को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा है. "कोरोना की वजह से ना सिर्फ मेहनत बल्कि 30 लाख रूपए जो तैयारियों पर खर्च किए हैं वो भी बेकार गए." उन्हें उम्मीद है कि अब सरकार उनकी ट्रेनिंग करने में और ज्यादा मदद देगी.
निशानेबाजी की महिलाओं की 25 मीटर पिस्टल प्रतियोगिता भारत का नाम रोशन कर चुकी राही सरनोबत का मानना कुछ अलग है. जकार्ता एशियन गेम्स 2018 में स्वर्ण पदक जीतने वाली कोल्हापुर की राही ओलंपिक गेम्स को आगे बढ़ाए जाने को अच्छा मानती हैं. राही कहती हैं, "ओलंपिक खेल आगे बढ़ गए हैं लेकिन मैंने इसे सकारात्मक रुप से लिया है क्योंकि अब मेरे पास पूरा समय है और अपने खेल के बारीक से बारीक पहलू पर ध्यान देकर इत्मिनान से तैयारी कर सकूंगी और टोक्यो के लिए खुद को अच्छी तरह से तैयार कर लूंगी." राही ने वर्ष 2019 में जर्मनी के म्यूनिख शहर में आयोजित हुए शूटिंग वर्ल्ड कप में स्वर्ण पदक जीत कर ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया था. राही बताती हैं कि ओलंपिक खेलों के एक वर्ष आगे बढ़ने से अब एक अच्छे स्वस्थ माहौल और अच्छे वातावारण में हमें प्रदर्शन करने का मौका मिलेगा. उनके मुताबिक, "ओलंपिक खेलों का आगे बढ़ना अच्छा है क्योंकि अगर ओलंपिक गेम्स समय पर होते तो हम वहां जाने में उतने सहज नहीं होते क्योंकि हमारी सेहत ही सबसे महत्वपूर्ण होती है और बिना अच्छी सेहत के वहां प्रदर्शन करना संभव नहीं हो पाता."
ना केवल ओलंपिक खेल बल्कि क्रिकेट की दुनिया में सूनापन छाया हुआ है. हर वर्ष अप्रैल-मई माह में क्रिकेट की सबसे लोकप्रिय लीग आईपीएल का बुखार क्रिकेट प्रेमियों के सिर चढ़ कर बोलता है. सभी खिलाड़ी दो महीने तक आईपीएल में ही व्यस्त रहते हैं लेकिन इस साल नजारा कुछ अलग है. पूर्व टेस्ट क्रिकेटर, टीवी कमेंटेटर और इंडियन क्रिकेटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक मल्होत्रा कहते हैं, "मौजूदा क्रिकेटर कभी दो-ढाई महीने क्रिकेट से दूर नहीं रहे हैं. पिछले 8-10 साल से साल में 365 दिन ही क्रिकेट हो रही थी. चाहे खिलाड़ी कितना ही अभ्यास कर लें, मैच की सिचुएशन अलग होती है इसलिए 10-15 दिन लगेंगे वापसी करने में और खुद को हालात के मुताबिक ढालने में." वहीं भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान और क्रिकेट कमेंटेटर अंजुम चोपड़ा का मानना है कि "खिलाड़ी अपनी तैयारी कर रहा होगा, विज़ुअलाइजेशन कर रहा होगा, कई लोग प्रैक्टिस भी कर रहे होंगे, बेसिक फिटनेस की तैयारी लगातार करते रहना जरूरी होता है क्योंकि जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट शुरु होगा तो खिलाड़ी तैयार रहेंगे."
हालांकि जब क्रिकेट के मैदान में खिलाड़ियों की वापसी होगी तो खेल बदला-बदला सा नजर आएगा. खाली स्टेडियम, शोर-गुल का अभाव और शायद तब तक गेंद को चमकाने के लिए लार या सलाईवा का इस्तेमाल करने पर भी रोक लग चुकी हो. अशोक मल्होत्रा कहते हैं, "रणजी ट्राफी खाली स्टेडियम में ही खेलते हैं और जितने भी खिलाड़ी हैं रणजी ट्राफी खेलकर ही आए हैं. घरेलू क्रिकेट में मैदान पर दर्शक नहीं आते हैं. लेकिन अब खिलाड़ियों को आदत डालनी होगी." मैदान पर शारीरिक दूरी बनाए रखना खिलाडियों के लिए मुश्किल हो सकता है क्योंकि हर विकेट गिरने पर, मैच की शुरुआत में रणनीति बनाते वक्त और टीम मीटिंग के दौरान शारीरिक दूरी रखना एक नई चुनौती होगी. इस सबके बीच इस महामारी के कुछ सकारात्मक पहलू भी निकलकर सामने आए हैं. अंजुम के मुताबिक, "इतना बड़ा ब्रेक बहुत कम मिल पाता है तो ये खिलाड़ियों के लिए अच्छा है. कई खिलाड़ी जिन्हें ब्रेक की दरकार थी उनके लिए अच्छा रहा."
चाहे क्रिकेट हो या ओलंपिक गेम्स, फुटबॉल हो या टेनिस, एथलेटिक्स या फिर कोई भी खेल, अब बस खिलाड़ी और खेल प्रेमियों को इसी बात का इंतजार है कि वही मैदान पर खिलाड़ियों का हुनर, जोश, जुनून और भावनाओं का रेला एक बार फिर देखने को मिले और स्टेडियम में तो नहीं लेकिन टेलीविजन और मोबाईल फोन पर लाईव खेलों का लुत्फ उठाने का मौका मिले.
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