और मुश्किल होगा विदेशी छात्रों का ब्रिटेन जाना
३ फ़रवरी २०११फिलहाल ब्रिटेन में नियम इस तरह के हैं कि यूरोपीय संघ के बाहर के छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दो साल तक काम कर सकते हैं. लेकिन इमिग्रेशन मंत्री डेमयन ग्रीन मानते हैं इस मुद्दे पर विचार किया जा रहा है, जिसका मतलब है कि काम करने की सीमा कम हो सकती है.
ग्रीन का गुणा भाग
पढ़ाई के लिए आने वाले विदेशी छात्रों से ब्रिटेन की अर्थव्यस्था को पांच अरब पाउंड की कमाई होती है. लेकिन ग्रीन का मानना है कि स्टूडेंट वीजा का बहुत गलत इस्तेमाल होता है. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में बेरोजगारी बढ़ रही है और यूरोपीय संघ के बाहर से आने वाले छात्रों को वहां काम करने की खुली छूट नहीं दी जा सकती.
ग्रीन ने कहा, "पढ़ाई के बाद काम करने देने की इजाजत देने का मकसद पढ़ाई और काम की कुशलता के बीच अंतर को कम करना था. इसलिए विदेशी छात्रों को दो साल तक ब्रिटेन में रहकर काम करने की इजाजत दी जाती है. ज्यादातर छात्र बिक्री, कस्टमर सेवा या फिर कैटरिंग में जाते हैं. लेकिन, अब जबकि बेरोजगारी 17 सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर है तो हमें लक्ष्य बनाकर काम करना होगा."
वीजा का गलत इस्तेमाल
ग्रीन ने साफ कहा कि विदेशी छात्रों को दो साल तक काम करने की इजाजत देना अपने छात्रों पर दबाव बढ़ाना है. इमिग्रेशन मंत्री दो साल की इस समयसीमा को खत्म करने की तैयारी कर रहे हैं. अपनी बात को मजबूत करने के लिए उन्होंने छात्र वीजा के गलत इस्तेमाल के बारे में भी विस्तार से बात की. उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के कॉलेजों के पास जरूरी सुविधाएं नहीं हैं लेकिन वे कोर्स में दाखिला दे देते हैं और फिर उस वीजा का गैरवाजिब इस्तेमाल होता है. ग्रीन ने इसकी एक मिसाल भी दी. उन्होंने बताया, "एक कॉलेज में क्लासरूम में तो पढ़ाई हो ही नहीं रही थी. इसके उलट छात्रों को प्लेसमेंट के नाम पर काम करने के लिए भेजा जा रहा था. कुछ मामलों में तो छात्र 280 मील दूर तक प्लेसमेंट पा गए, जबकि उन्हें नियमित तौर पर पढ़ाई में शामिल होना चाहिए."
ग्रीन ने भारत का जिक्र खासतौर पर किया. उन्होंने कहा कि पिछले साल जून में नई दिल्ली में वीजा के लिए जो अर्जियां आईं, उनमें से 35 फीसदी में जाली दस्तावेज लगाए गए थे.
विरोध के सुर
इन सब तर्कों का सहारा लेकर ग्रीन अपने देश में विदेशी छात्रों की आवाजाही कम करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन शिक्षा क्षेत्र में उनके विरोधी सुर सुनाई दे रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट आंगलिया के कुलपति प्रोफेसर एडवर्ड एक्टन कहते हैं कि सरकार की ये योजनाएं सही नहीं हैं. लंदन के इंपीरियल कॉलेज के प्रोफेसर डेविड वार्क भी कहते हैं कि पढ़ाई और काम के बीच कड़ी को तोड़ना खतरनाक फैसला होगा. उन्होंने कहा, "अगर हमें तैयार फसल में से सबसे अच्छों को चुनना है तो हम ऐसे फैसले नहीं कर सकते."
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटियों के संगठन के अध्यक्ष प्रोफेसर स्टीव स्मिथ ने कहा कि सरकार की ऐसी योजनाएं ब्रिटेन की साख को और यूनिवर्सिटी सेक्टर को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार