कतर संकट पर क्यों सतर्क ईरान
१५ जून २०१७ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने हाल में दिये एक भाषण में कहा कि खाड़ी क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर कयास लगाना आसान नहीं है और अधिक तनाव भयानक साबित हो सकता है. ईरानी मीडिया भी कतर संकट पर बेहद ही सावधानी से रिपोर्टिंग कर रही है. हाल में सऊदी अरब के नेतृत्व में बहरीन और मिस्र समेत कुछ अन्य देशों ने कतर के साथ संबंध खत्म करने की घोषणा की थी. सऊदी खेमे का आरोप है कि कतर, आतंकवादी समूहों को वित्तीय मदद देता है.
कतर के इस संकट में ईरान पहले उसके साथ नजर आ रहा था. ईरान के कारोबारी समूहों ने 12 घंटे के भीतर ही मदद का आश्वासन दिया था. हालांकि आश्वासन के मुताबिक कतर को मदद नहीं दी जा सकी और संकट शुरू होने के लगभग एक हफ्ते बाद ईरान ने कतर को भोजन भेजा. ईरान मामले के विशेषज्ञ अली सद्रजादे के मुताबिक यह एक अनिश्चित सी स्थिति है और कतर को दी गई ये पहली मदद भी प्रतीकात्मक अधिक है क्योंकि ईरान में काबिज सुधारवादी सरकार भी इस मामले में बेहद सावधानी से काम कर रही है.
ईरान के साथ दोस्ती ही संकट का कारण
शिया बहुल ईरान सुन्नी राज्यों के साथ फिलहाल किसी लड़ाई में उलझना नहीं चाहता है. ऐसे भी कयास है कि कतर के सरकारी चैनल में चली किसी फर्जी रिपोर्ट ने ही संकट को खड़ा किया है. इस तथाकथित फेक रिपोर्ट के मुताबिक कतर के नेता तामिम बिन हमद अल थानी ने ईरान को इस्लामी शक्ति बताते हुये कहा था कि ईरान के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों का कोई मतलब नहीं है. जानकारों के मुताबिक यही बात सऊदी अरब को रास नहीं आई और उसने इतना बड़ा कदम उठाया.
इस खबर को बेशक फर्जी माना जा सकता है लेकिन ये भी सच है कि ईरान के राष्ट्रपति हसन रोहानी को राष्ट्रपति चुनाव में मिली जीत के बाद कतर के नेता ने उन्हें फोन किया था. इस फोन कॉल ने भी कतर को अपने अन्य सहयोगियों से अलग-थलग कर दिया है और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सहयोग के बाद सऊदी अरब ने ईरान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ईरानी नेता के साथ बातचीत में कतर ने कहा था कि मौजूदा समस्याओं को सिर्फ बातचीत और समझौतों के जरिये ही सुलझाया जा सकता है. कतर का ये नरम रुख भी उसके लिये भारी पड़ा. शिया बहुल ईरान और सुन्नी बहुल सऊदी अरब एक दूसरे के विरोधी हैं.
तनाव के बावजूद सामंजस्य कायम
ईरान इस पूरे मामले में बहुत सावधानी बरत रहा है लेकिन अब भी कतर और ईरान के बीच भरोसा बरकरार है. ये दोनों देश 250 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा साझा करते हैं. इसके साथ ये दोनों देश दुनिया के सबसे बड़े प्राकृतिक गैस भंडार भी साझा करते हैं. उल्लेखनीय है कि जब ईरान अपने परमाणु कार्यक्रमों के चलते प्रतिबंधों के दौर से गुजर रहा था और एक निर्यातक की भूमिका में खुद को स्थापित नहीं कर पा रहा था, उस दौरान कतर को ही इस क्षेत्र का फायदा मिल रहा था.
सहयोग और साथ की इस लंबी विरासत के बावजूद मौजूदा कतर संकट में ईरान का रुख विरोधाभासी है और इसलिये दोहा को इस संकट से तेहरान के सहयोग बिना ही पार पाना होगा. तेहरान विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्री सादेह जिबाकलाम के मुताबिक ये दोनों ही देश सऊदी अरब को और नहीं उकसाना चाहते इसलिये कतर की कोशिश होगी कि वह इस हाक्यों कतर के साथ खड़ा है तुर्की?लात से निपटने के लिये तुर्की और पाकिस्तान की मदद ले. वहीं ईरानी नेतृत्व भी घरेलू मुद्दों के चलते इस पूरे संकट से दूर रहना बेहतर समझेगा.
शबनम फॉन हाइन/एए