भारत में कम हो रही आजादी पर उठे सवाल
४ मार्च २०२१'फ्रीडम हाउस' एक अमेरिकी शोध संस्थान है जो हर साल 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड' रिपोर्ट निकालता है. इस रिपोर्ट में दुनिया के अलग अलग देशों में राजनीतिक आजादी और नागरिक अधिकारों के स्तर की समीक्षा की जाती है. ताजा रिपोर्ट में संस्था ने भारत में अधिकारों और आजादी में आई कमी को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है.
इसके लिए संस्था ने विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की आलोचना की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश में राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में कमी आई है. संस्था का आंकलन है कि भारत में मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ा है, विद्वानों और पत्रकारों को डराने का चलन बढ़ा है और विशेष रूप से मुसलमानों को निशाना बना कर कई हमले किए गए हैं.
राजद्रोह लगाने का बढ़ता चलन
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस पतन की रफ्तार 2019 में मोदी के दोबारा चुने जाने के बाद और तेज हो गई. संस्था देशों को 25 मानकों पर अंक देती है, जिनमें आजादी और अधिकारों से जुड़े कई सवाल शामिल हैं. आम लोगों द्वारा स्वतंत्रता से और बिना किसी डर के अपने विचार व्यक्त करने के सवाल पर में हाल के वर्षों में कई लोगों के खिलाफ राजद्रोह जैसे आरोप लगाने के चलन में आई बढ़ोतरी की वजह से भारत के अंक गिर गए हैं.
गैर सरकारी संगठनों को काम करने की स्वतंत्रता के सवाल पर भी विदेश से पैसे लेने के कानून में बदलाव और एमनेस्टी के दफ्तर भारत में बंद हो जाने की वजह से रिपोर्ट में भारत के अंक गिर गए हैं. अदालतों के स्वतंत्र होने के सवाल पर भी भारत के अंक गिरे हैं. इसके पीछे देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्य सभा का सदस्य बनाना, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार के पक्ष में कई फैसले देने का पैटर्न और सरकार के खिलाफ फैसला देने वाले एक जज के ट्रांसफर जैसी घटनाओं को गिनाया गया है.
तानाशाही की तरफ
नागरिकों को एक जगह से दूसरी जगह जाने की स्वतंत्रता के सवाल पर तालाबंदी के दौरान हुए प्रवासी श्रमिक संकट और पुलिस और 'विजिलांते' लोगों द्वारा हिंसक और भेद-भावपूर्ण बर्ताव की वजह से देश के अंक गिर गए हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सत्ता पर काबिज 'हिंदू राष्ट्रवादी ताकतों' ने मुसलमानों को बलि का बकरा बनाए जाने को बढ़ावा दिया, उन्हें अनुपातहीन रूप से कोरोना वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार बताया गया जिसकी वजह से उन पर भीड़ द्वारा हमले हुए.
इन उदाहरणों को देकर रिपोर्ट में कहा गया है कि "लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रबल समर्थक और चीन जैसे तानाशाही देशों के खिलाफ खड़ा होने वाला देश बनाने की जगह, मोदी और उनकी पार्टी भारत को तानाशाशी की तरफ ले जा रहे हैं." रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह और ज्यादा चिंताजनक इसलिए हैं क्योंकि भारत के "आंशिक रूप से स्वतंत्र" श्रेणी में आने के बाद अब दुनिया की 20 प्रतिशत से भी कम आबादी स्वतंत्रत देशों में बची है. यह 1995 के बाद अभी तक का सबसे कम अनुपात है.
रिपोर्ट पर भारत सरकार ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
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