'करगिल से बातचीत को मजबूर हुआ भारत'
२५ जुलाई २००९अब जब 26 जुलाई को करगिल युद्ध के दस साल पूरे होने वाले हैं, पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपने बयान से विस्फोट कर दिया है. मुशर्रफ़ इसे पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ी कामयाबी मानते हैं. उनका कहना है, "जी हां, बेशक़. यह बहुत बड़ी कामयाबी रही क्योंकि इसका असर भारत की तरफ़ भी पड़ा. हम कश्मीर विवाद पर बातचीत कैसे शुरू कर पाए. यह कैसे हो पाया कि भारत इस बात के लिए तैयार हुआ कि हम कश्मीर पर बात करेंगे और बातचीत से इस समस्या का समाधान करेंगे. इससे पहले इस तरह की कोई बात नहीं थी."
करगिल संघर्ष को एकदम से सही और कामयाब कार्रवाई साबित करते हुए मुशर्रफ़ ने कहा, "कश्मीर पर बात ही नहीं होती थी. संयुक्त राष्ट्र में भी हमारे नेता कश्मीर मुद्दे को नहीं छूते थे. यह भारतीय पक्ष था. तो फिर कश्मीर पर बातचीत के लिए भारत कैसे तैयार हुआ." मुशर्रफ़ ने ये बातें वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में कहीं.
मुशर्रफ़ से जब यह पूछा गया कि क्या आप करगिल जैसी कार्रवाई फिर करना चाहेंगे, तो मुशर्रफ़ ने कहा कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.
दस साल पहले 1999 में पाकिस्तान ने करगिल की कुछ पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे बाद में भारतीय फ़ौजों ने छुड़ा लिया. उस वक्त परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तान फ़ौज के कमांडर थे.
मुशर्रफ़ ने इस बात को भी क़बूल किया कि करगिल में पाकिस्तान की फ़ौजें लड़ रही थीं. उन्होंने कहा कि इस कार्रवाई में रावलपिंडी कोर और उत्तरी क्षेत्र के फ़ौजियों ने हिस्सा लिया. हालांकि पाकिस्तान पहले कहता आया है कि करगिल संघर्ष में उसके जवान नहीं थे और यह 'स्वतंत्रता सेनानी' कहे जाने वाले लोगों की कार्रवाई थी. मुशर्रफ़ ने अपनी किताब 'इन द लाइन ऑफ़ फ़ायर' में इन्हें दूसरी पंक्ति की सेना बताया था और अब कहते हैं कि इन्हें निर्देश रावलपिंडी कोर और उत्तरी कमान से ही मिल रहे थे. मुशर्रफ़ ने कहा, "जो मैंने लिख दिया है, वही आख़िरी बात है. मैं इनके विस्तार में नहीं जाना चाहता."
पाकिस्तान के सैनिक कमांडर और राष्ट्रपति रह चुके परवेज़ मुशर्रफ़ ने दावा किया कि करगिल युद्ध से पाकिस्तानी फ़ौज की स्थिति बेहद अच्छी हो गई क्योंकि इस वजह से भारत ने अपनी सारी सेना करगिल की तरफ़ लगा दी और उसके दूसरे हिस्से कमज़ोर पड़ गए. उन्होंने कहा, "हमें पता था कि भारतीय सेना की क्षमता क्या है, हमें अपनी फ़ौजों की क़ाबिलियत भी पता थी. करगिल में, कश्मीर में और पूरी सरहद पर स्थिति हमारे पक्ष में थी. हम भारत की किसी भी कार्रवाई का जवाब देने में सक्षम थे."
जब उसने यह पूछा गया कि युद्धविराम का फ़ैसला उन्होंने नवाज़ शरीफ़ पर क्यों छोड़ दिया, तो मुशर्रफ़ ने कहा कि एक तो ज़मीनी हक़ीक़त होती है और दूसरा अंतरराष्ट्रीय पक्ष. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और दूसरे देश सरकार पर इसे ख़त्म करने का दबाव डाल रहे थे.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा घरेलू स्थितियां भी थीं. "घरेलू राजनीतिक दबाव थे. हमें देखना था कि राजनीतिक स्थिति कितनी ठीक थी. इसलिए मैंने फ़ैसला किया कि मैं सिर्फ़ सेना और सैनिक कार्रवाई की ही बात करूंगा."
मुशर्रफ़ ने दो साल पहले पाकिस्तान के चीफ़ जस्टिस को बर्ख़ास्त करने के अपने फ़ैसले को भी सही ठहराया और कहा कि उनका फ़ैसला संविधान के अनुकूल ही था लेकिन इसके बाद की परिस्थितियां बिगड़ गईं.
उन्होंने इस बात को भी पहली बार क़बूल किया कि 2007 में उनका बेनज़ीर भुट्टो के साथ एक 'गुप्त समझौता' हुआ था. चुनाव से पहले जब बेनज़ीर पाकिस्तान लौटीं तो ऐसी ख़बरें थीं कि उस वक्त के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ और बेनज़ीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के बीच समझौता हुआ था. मुशर्रफ़ ने दावा किया कि अगर बेनज़ीर ज़िन्दा होतीं और देश की प्रधानमंत्री बनतीं, तो वह अब भी राष्ट्रपति होते. मुशर्रफ़ ने कहा, "हमारे बीच समझौता हुआ था. मैंने उनसे एक बार नहीं, दो बार बात की थी. लेकिन उन्हें चुनाव से पहले पाकिस्तान नहीं आना था."
पाकिस्तान के राजनीतिक हालात पर मुशर्रफ़ ने माना कि वहां की स्थिति अब ज़्यादा उलझ कर गई है. उन्होंने कहा कि आसिफ़ अली ज़रदारी की सरकार बहुत कमज़ोर है.
रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल
संपादनः राम यादव