करियर और बच्चों की दुहाई देती कंपनियां
१७ अक्टूबर २०१४पहली नजर में यह तरकीब काफी तार्किक लगती है, बल्कि शालीन भी. जब कोई महिला गर्भवती होती है, तो कंपनी एक ऐसी कर्मचारी खो देती है जिसमें उसने बड़ा निवेश किया होता है. जब बच्चा हो जाता है, तो वह उस ओवरटाइम, उन बिजनेस ट्रिप और कॉकटेल पार्टियों की जगह ले लेता है, जिनमें बिजनेस आइडिया और विजिटिंग कार्ड की अदला बदली की जाती है. करियर में बाधा आ जाती है, कई बार तो वह खत्म ही हो जाता है और अगर ना भी हो, तो धीमा तो पड़ ही जाता है. कंपनी अपनी कर्मचारी की योग्यता को पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाती.
इसीलिए अमेरिकी कंपनियां अब युवा और प्रतिभाशाली महिलाओं की मदद करना चाहती हैं, करियर को नहीं, बल्कि बच्चे की ख्वाहिश को कुछ वक्त के लिए टाल कर. फेसबुक तैयारियों में लगा है और एप्पल भी अगले साल इसमें शामिल हो जाना चाहता है. ये कंपनियां अपने यहां काम करने वाली महिला कर्मचारियों को अंडाणु फ्रीज करने के लिए पैसे देंगी. अमेरिकी न्यूज चैनल एनबीसी की रिपोर्टों के अनुसार ये दोनों ही कंपनियां 20,000 डॉलर तक का खर्च उठाने के लिए तैयार हैं. इस तरकीब का मतलब यह हुआ कि महिलाएं करियर की सीढ़ी पर चढ़ते हुए जब इतना ऊपर पहुंच चुकी हों कि उनके पास एक अच्छा और सुरक्षित ओहदा हो, तब वे गर्भ धारण करने के बारे में सोचें.
ये वाकई एक अच्छी योजना है या फिर आंखों में धूल झोंकी जा रही है? क्या क्लाइंट्स और कॉन्टैक्ट बढ़ाने के लिए आगे चल कर बिजनेस ट्रिप, ओवरटाइम और शाम की मीटिंग और भी ज्यादा नहीं हो जाती? क्या एग फ्रीज करने से असली समस्या सुलझ जाएगी या फिर सिर्फ टलेगी? समस्या यह है कि महिलाएं बच्चों को साथ ले कर कैसे चलें ताकि एक के लिए दूसरे को ना छोड़ना पड़े.
एप्पल और फेसबुक के पास कर्मचारियों के बच्चों के लिए दफ्तर में ही किंडरगार्टन की सुविधा है. साथ ही वे बच्चा होने के बाद चार महीने का अवकाश भी देती हैं. ऐसे में वे खुशियों के किसी स्वर्गिक लोक से कम नहीं लगती क्योंकि अमेरिका में बच्चे की पैदाइश के बाद कानूनी रूप से माता पिता को छुट्टी का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में अंडाणु फ्रीज करने की बात से पुरुष प्रधान आईटी इंडस्ट्री को महिलाओं के लिए आकर्षक बनाने का सपना दिखाया जा रहा है, कुछ ऐसे कि एक ही छत के नीचे बच्चे और करियर दोनों ही आ सकें.
लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है. बच्चों और करियर को एक साथ ले कर चलने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि पारिवारिक सुख को आगे के लिए टाल दिया जाए. बजाए इसके कि युवा महिला कर्मचारियों को एक से दूसरे साल तक मझदार में छोड़ा जाए, जरूरी है कि पक्के कॉन्ट्रैक्ट हों और नौकरी में इतना लचीलापन हो कि वे बेहतर रूप से परिवार नियोजन कर सकें. यहां जरूरत ऐसा माहौल बनाने की है जो सुनिश्चित कर सके कि नौकरी में ना ही ओवरटाइम की जरूरत पड़े और ना ही दफ्तर के बाद मीटिंग की. बच्चों के लिए डे केयर सेंटर बनें और ऐसा सिस्टम भी जिनमें पति घर के काम और बच्चों की परवरिश में महिलाओं का हाथ बटा सकें.
ऐसा ना हो कि कंपनियां अपनी कर्मचारियों का परिवार नियोजन करने लगें. बच्चे "बाद में" करने का मतलब क्या हुआ? यानि तब जब महिलाओं की उम्र इतनी हो जाए कि वे काम का ज्यादा बोझ ना उठा सकें और वे इस चकाचौंध भरी आईटी इंडस्ट्री के लिए ज्यादा आकर्षक ना बचें? तब तो वे यूं भी घर पर रह कर बच्चों की देखभाल कर सकती हैं, शायद हमेशा के लिए ही!