करियरः बदलती ख़्वाहिशें, बदलते रास्ते
३१ अक्टूबर २००९18 साल का तुषार रतूड़ी चेन्नई गया तो था इंजीनियरिंग करने लेकिन, आज ए आर रहमान के म्यूज़िक इंस्टिट्यूट में सुरों के साथ अठखेलियां कर रहा है. एक तरफ़ इंजीनयरिंग को छोड़, संगीत की दुनिया में कैसे हुआ आना और कब पैदा हुआ यह शौक. वह बताते हैं, "बस जब स्कूल में था और 12-13 साल की उम्र थी, तभी से यह शौक़ पैदा हुआ. कानों में गाने पड़ते रहते थे. लगता था कि ऐसा ही कुछ करना चाहिए." ख़ैर फिर इंजीनियरिंग में दाख़िला ले लिया, लेकिन एक साल पढ़ाई करने के बाद ही उन्हें समझ आ गया कि यह उनके मतलब की चीज़ नहीं है.
भूगोल से प्रबंधन
कुछ इसी तरह नवीन ने भी अपने लिए अलग रास्ता चुना. भूगोल में एमए किया, लेक्चरर बनने के लिए जेआरएफ़ का इम्तिहान भी क्लियर कर लिया, लेकिन फिर चुना मैनेजमेंट करियर का रास्ता और आजकल एचआर मैनेजर हैं. अपने बारे में वह बताते हैं, "मैंने जेआरएफ़ क्लियर करने के बाद एक अस्थाई लेक्चरर के तौर पर पढ़ाया भी. लेकिन मज़ा नहीं आया. इस बीच सिविल सर्विसेज़ का मेरा क्रेज़ भी ख़त्म होने लगा, तो फिर सोचा मेरे लिए बस मैनेजमेंट की सही लाइन है."
संभावनाओं पर नज़र
मामला मन की संतुष्टि का है, साथ ही नौजवानों को करियर के बेहतर मौक़ों की हमेशा तलाश रहती है. इसलिए वे कई बार बिल्कुल नया प्रफेशन चुनते हैं, तो कई बार मिलते जुलते फील्ड में हाथ आज़मा लेना चाहते हैं. नवीन कहते हैं, "ग्रेजुएशन करने के बाद आप अपने सामने मौजूद तमाम संभावनाओं को तलाशते हैं और तय करते हैं कौन का फ़ील्ड ऐसा है जो पैसे के साथ साथ आपको मन की संतुष्टि भी देगा."
आत्मविश्वास की दरकार
करियर के बेहतर मौक़ों का फ़ायदा उठाने और अपनी क़ाबलियत को अलग अलग तरीके से साबित करने वालों में मोहित भी शामिल हैं. उन्होंने पहले टीवी पत्रकारिता की, फिर एड एजेंसी में काम करने लगे और अब फ़िल्म राइटिंग में हाथ आज़माना चाहते हैं और कोशिश शुरू भी कर दी है. वह कहते हैं कि मल्टीटैलेंटेड होना आज के समय की मांग है.
मल्टीटैलेंटेड लोग शायद ज़्यादा समय तक किसी एक ही काम को कर भी नहीं सकते. लेकिन एक फ़ील्ड को छोड़ दूसरे में जाना थोड़ा मुश्किल तो होता ही होगा. नवीन कहते हैं कि जब उन्होंने मैनेजमेंट की पढ़ाई शुरू की, तो मानों उनकी दुनिया ही बदल गई. वह बताते हैं, "कहां ह्यूमेनिटि की पढ़ाई और कहां मैनेजमेंट. दो बिल्कुल अलग अलग चीज़ें. ख़ैर मैंने मेहनत की और आत्मविश्वास बनाए रखा, तो सब कुछ मुमकिन हो गया."
वैसे कई बार ऐसा भी होता है कि मां बाप जो ख़ुद नहीं कर पाते, वह अपने बच्चों से करवाना चाहते हैं. तुषार की बात करें, तो उनके घर में संगीत से किसी को कोई ख़ास लेना देना नहीं था. उनके माता पिता, दोनों ही बैंक में अधिकारी हैं. ऐसे में बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए क्या घरवालों ने ही तो नहीं भेजा. तुषार कहते हैं, "नहीं ऐसी बात नहीं है. मैं अपनी मर्ज़ी से गया था. साइंस की पढ़ाई करके ज़्यादातर लोग इंजीनीयरिंग ही तो करना चाहते हैं." तुषार कहते हैं कि इंजीयरिंग उन्हें बोरिंग लगी और चेन्नई में ही ए आर रहमान इंस्टिट्यूट है तो फिर वहां दाख़िला लेने का मौक़ा वह हाथ से भला क्यों जाने देते.
सीखा हुआ ख़ाली नहीं जाता
वैसे आप किसी भी पेशे में रहें, लेकिन जो आपने एक बार सीख लिया, वह कहीं न कहीं आगे काम ही आता है. तुषार को साइंस का बैकग्राउंड साउंड इंजीनियरिंग को समझने में मदद करता है तो नवीन को एचआर मैनेजर के तौर पर कॉलेज के ज़माने में पब्लिक स्पीकर होने का बहुत फ़ायदा मिलता है. लेकिन मोहित की मानें तो हर फ़ील्ड में जाने के लिए आजकल बाक़ायदा ख़ास कोर्स की बाध्यता कई बार आपके क़दमों को रोकती है. वह कहते हैं, "मान लीजिए किसी एड एजेंसी में वैकेंसी निकली तो कहा जाता है कि आपको इंग्लिश ऑनर्स होने चाहिए. साथ ही आपने एडवरटाइज़िंग का डिप्लोमा किया हो. सिर्फ़ इस बुनियाद आपको शायद ही कोई नौकरी दे कि आप क्रिएटिव हो."
बहरहाल जहां चाह होती है, वहां आप राह भी बना लेते हैं. मोहित कहते हैं कि चाहे टीवी पत्रकारिता रही हो, एड फ़िल्म मेकिंग या फिर फ़िल्म राइटिंग, ये सभी उन्हें अपनी क्रिएटिविटी को ज़ाहिर करने का मौक़ा देते हैं. वह अब दो स्क्रिप्ट लिख चुके हैं, जो शायद हमें जल्द ही सिनेमा के पर्दे पर साकार होती दिखाई दें. मोहित ठीक वैसे ही कुछ दिलचस्प आईडियाज़ पर्दे पर पेश करने की ख़्वाहिश रखते हैं, जैसी दिलचस्प ज़िंदगी है.
तो ज़िंदगी के साथ चलते जाइए, देखें कहां तक ले जाती है.
रिपोर्टः अशोक कुमार
संपादनः एस जोशी