कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन सबसे ऊंचे स्तर पर
३१ मई २०११वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर तापमान को दो डिग्री तक कम करने की कोशिशें कामयाब नहीं हो पाती हैं तो मौसम बदलाव के भयानक नतीजे झेलने होंगे. इनमें बाढ़, तूफान, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना और कई प्रजातियों का नष्ट हो जाना शामिल है. पैरिस से एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, "2010 में ऊर्जा से जुड़े कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन इतिहास के सबसे ऊंचे स्तर पर था."
2009 में ग्रीन हाउस गैंसों का उत्सर्जन कम हुआ था. हालांकि इसकी वजह आर्थिक मंदी थी. लेकिन 2008 के मुकाबले 2010 में पांच फीसदी बढ़ गया.
उत्सर्जन का बढ़ना तय
एजेंसी ने कहा है कि 2020 तक अनुमानित कार्बन उत्सर्जन का 80 फीसदी तो होना तय है क्योंकि यह उन परियोजनाओं से आना है जो बन रही हैं या बनने वाली हैं. एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री फतीह बरोल ने कहा, "कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में इतनी बड़ी बढो़तरी और भविष्य परियोजनाओं में निवेश की वजह से और बढ़ना तय हो जाना हमारी उम्मीदों को बड़ा धक्का है. हम चाहते थे कि 2020 तक धरती का तापमान दो डिग्री से ज्यादा न बढ़े."
मौसम परिवर्तन पर हो रही संयुक्त राष्ट्र की बातचीत में इस बात पर सहमति बनी है कि 2020 तक धरती का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़ने देने के लिए प्रयास किए जाएं. इस मकसद को हासिल करने के लिए ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कार्बन डाई ऑक्साइड के प्रति दस लाख हिस्सों का सिर्फ 450 तक पहुंचना चाहिए. यानी साल 2000 के उत्सर्जन से सिर्फ पांच फीसदी ज्यादा. लेकिन आईईए की गणना के मुताबिक अगर 2020 तक ऊर्जा से जुड़ा उत्सर्जन 32 गीगाटन तक पहुंचता है तो यह लक्ष्य हासिल करना नामुमकिन है. एजेंसी ने चेताया है कि उत्सर्जन में जितनी बढ़ोतरी 2009 और 2010 के बीच हुई है, अगले एक दशक का उत्सर्जन उससे कम होना चाहिए.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ईशा भाटिया