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कितनी चौकसी करते हैं सीसीटीवी?

२१ दिसम्बर २०१२

हर सार्वजनिक जगह पर सीसीटीवी कैमरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. सरकारें इन पर लाखों का खर्च भी कर रही हैं. पर क्या ये वाकई निगरानी कर पाते हैं या केवल मनोवैज्ञानिक रूप से लोगों में भय पैदा करने का एक जरिया हैं?

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तस्वीर: Fotolia/laytatius

जर्मनी में हाल ही में दो ऐसे मामले सामने आए जिनमें सीसीटीवी कैमरे की अहमियत समझ आई. एक मामला राजधानी बर्लिन का है जहां बीच बाजार एक व्यक्ति की पीट पीटकर हत्या कर दी गई. दूसरा बॉन का है, जहां रेलवे स्टेशन पर कोई व्यक्ति थैले में बम रख गया. दोनों ही मामलों में सीसीटीवी कैमरे मौजूद थे, लेकिन संदिग्धों की पहचान नहीं हो सकी है. किसी भी कैमरे की तस्वीरें रिकॉर्ड ही नहीं हुईं.

कहां जाए डाटा

जर्मनी में कुल कितने क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन कैमरा लगे हैं, इसके आंकड़े मौजूद नहीं हैं. लेकिन हर सार्वजनिक स्थान पर इन्हें देखा जा सकता है. सड़क, बाजार, स्टेशन, यहां तक की खेल के मैदान, स्वीमिंग पूल, स्कूल और म्यूजियम तक इनसे भरे हुए हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि जिस काम के लिए इन्हें लगाया गया है उस काम को ये पूरा ही नहीं कर पा रहे हैं. पुलिस का कहना है कि कई जगह कैमरे खराब हैं और जहां वे काम कर भी रहे हैं वहां की रिकॉर्डिंग नहीं संभाली जा सकती. हर मिनट की लगातार रिकॉर्डिंग को संभालने के लिए बहुत बड़े मेमोरी सिस्टम की जरूरत पड़ेगी.

Überwachungskamera London
तस्वीर: Getty Images

ब्रिटेन में बीस लाख कैमरे

दुनिया में अगर किसी देश में सब से ज्यादा सीसीटीवी कैमरा लगे हैं तो वह है ब्रिटेन. हालांकि सही आंकड़े तो यहां के भी उपलब्ध नहीं हैं, पर एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश में करीब 20 लाख कैमरे लगे हुए हैं. यानी हर 32 व्यक्तियों पर एक कैमरा है. इन कैमरों को हटाने के लिए लड़ रहे संगठन नो-सीसीटीवी के अनुसार हर आदमी एक दिन में कम से कम 300 कैमरों के सामने से गुजरता है. मतलब आपकी हर हरकत पर नजर रखी जाती है. लेकिन इससे देश में अपराध दर कम नहीं हुई. ब्रिटेन के बिग ब्रदर वॉच के अध्यक्ष निक पिकल्स का कहना है, "लाखों कैमरे होने के बाद भी ब्रिटेन में अपराध दर उन देशों से कम नहीं है जहां इतनी बड़ी संख्या में इनका इस्तेमाल नहीं किया जाता."

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तस्वीर: Alexander Kataytsev/Fotolia

डर का खेल

कैमरा लगाने का मकसद है लोगों में इस बात का मनोवैज्ञानिक डर पैदा करना कि अगर उन्होंने गड़बड़ की तो उनकी पहचान आसानी से हो जाएगी. मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति चलती ट्रेन में तोड़ फोड़ करता है तो कैमरे पर यह सब रिकॉर्ड हो जाता है. बाद में वीडियो से उसकी पहचान कर पुलिस अहम जानकारी निकाल सकती है. लेकिन लंदन पुलिस के उच्च अधिकारी मिक नेविल का कहना है कि सच्चाई कुछ और ही है, "इन पर अरबों का खर्च किया जा चुका है, लेकिन अब तक इस बारे में कोई सफाई नहीं है कि पुलिस इन तस्वीरों का अदालत में किस तरह से इस्तेमाल कर सकती है." साथ ही वह यह भी मानते हैं कि लोगों में इनका खौफ भी नहीं है, "यह एक बहुत बड़ी असफलता है. लोग सीसीटीवी से डरते ही नहीं है. और ऐसा क्यों है, क्योंकि उन्हें लगता है कि कैमरा काम ही नहीं कर रहे हैं."

Symbolbild Gedächtnis Merken Gedächtnistraining
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बड़ा नुकसान

जर्मनी में हुई घटनायें बताती हैं कि लोगों का यह मानना पूरी तरह गलत नहीं है. कई बार इन कैमरों की मदद से लोगों को पकड़ा गया है. लेकिन किस कीमत पर. हाल ही में जब कैम्ब्रिज में आंकड़े निकाले गए तो पता चला कि जिन मामलों में सीसीटीवी की मदद से अपराधी पकड़े गए उनमें कैमरे लगाने और उनके रख रखाव पर ही 7,000 यूरो यानी करीब पचास हजार रुपये का खर्च आया. बिग ब्रदर वॉच के निक पिकल्स का कहना है कि इसी पैसे को अगर पुलिस की ट्रेनिंग पर खर्च किया जाए तो ज्यादा फायदा मिल सकता है.

बहस का एक मुद्दा यह भी है कि इतनी चौकसी रखना लोगों की आजादी के खिलाफ है. ऐसे में जानकार मानते हैं कि बेहतर होगा अगर खराब कैमरों पर लाखों खर्चने के बजाए सड़कों पर पुलिसकर्मियों की संख्या में इजाफा कर चौकसी बढ़ाई जाए. 

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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