किसकी जासूसी निगाहें हैं चुनावी उम्मीदवारों पर
१९ मई २०१९जासूसी उपन्यासों की चैंपियन अगाथा क्रिस्टी के रचे अमर किरदार "मिस मार्पल" के जैसी एक जीती जागती भारतीय शख्सियत है, रजनी पंडित. भारत की रजनी पंडित जैसी कई जासूसों की भारत के चुनावी माहौल में भारी मांग देखने को मिली है. राजनीतिक दल विपक्षी नेता के बारे में कुछ बुरा पता लगाने का काम इन्हें देते हैं. पार्टियां अपने उम्मीदवारों के बारे में भी जासूसी करवाती हैं कि उनका रिकॉर्ड कितना साफ सुथरा है.
मुंबई में रहने वाली पंडित ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "यह गोपनीय होता है. जब भी किसी पार्टी को लगता है कि उस के किसी उम्मीदवार या विपक्ष के उम्मीदवार के बारे में कुछ संदेहास्पद है तो वे हमें उसकी जांच करने को बोलते हैं." 57 साल की पंडित कहती हैं कि उम्मीदवारों के बारे में उन्हें कई बार यह पता करना होता है कि वे अपने अभियान में खर्च के लिए धन कहां से लाए हैं या उनके पास कितना धन है. इन चुनावों में अकूत पैसा बहाया जा रहा है. कुछ विशेषज्ञों ने तो चुनाव में खर्च होने वाली रकम का अनुमान 10 अरब डॉलर से भी ऊपर का लगाया है.
पंडित बताती हैं कि उनकी टीम को जनवरी 2019 से ही राजनीतिक दलों के लिए इस तरह की जानकारी जुटा रही है. इसके लिए उन्होंने खुद को पार्टियों की गतिविधियों से जोड़ा और तभी से रैलियों में शामिल होने के अलावा उनके वित्तीय मामलों की जानकारियां भी अपने ग्राहक को देती आ रही हैं. वे कहती हैं, "चुनाव के पहले अचानक से केस ही केस आ जाते हैं. हमें बहुत भारी मांग देखने को मिली और उनमें से बहुत कम ही केस हम ले पाए."
भारत में एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट डिटेक्टिव्स एंड इन्वेस्टिगेटर्स के अध्यक्ष कुंवर विक्रम सिंह बताते हैं कि बहुत सारी बातों का पता करना पड़ता है, जैसे, "(उम्मीदवार की) स्थानीय साख कैसी है, कितना प्रभाव है, उसकी अपनी जाति बिरादरी में कैसी धारणा है वगैरह. ऐसी बहुत सी बातें देखनी पड़ती हैं."
भारत में जासूसी करने वाली एजेंसियों की सेवा छोटी मोटी चोरी का पता लगवाने से लेकर बिजनेस डील करने से पहले तक ली जाती है. कभी जासूसों ने फंसी हुई मर्डर मिस्ट्री सुलझाई है तो कभी शादी से पहले लड़के या लड़की वालों का चिट्ठा खोला है.
इस समय भारत में कई जासूसी एजेंसियां चल रही हैं जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं. मिसाल के तौर पर दिल्ली में मुख्यालय वाली 'लेडी डिटेक्टिव्स इंडिया' और 'वीनस डिटेक्टिव' को ही लें. 'लेडी डिटेक्टिव्स इंडिया' की सीईओ तान्या पुरी बताती है, "ग्राहक एक महिला जांचकर्ता को तरजीह देते हैं. उन्हें लगता है कि हम ज्यादा सहानुभूति रखते हैं और वे हमसे ज्यादा खुल कर बात कर सकते हैं."
खुद पंडित को यह काम करते 30 साल से ज्यादा हो गए हैं. इन्हें भारत की पहली महिला प्राइवेट डिटेक्टिव के रूप में जाना जाता है. सन 1980 के दशक में ही कितने ही अखबारों और पत्रिकाओं में उन्हें भारत की "मिस मार्पल" या "नैन्सी ड्रू" जैसा कहा गया. उनसे प्रभावित होकर कई महिलाएं पुरूषों से भरी जासूसी की दुनिया में आईं. कॉलेज में पढ़ने के दौरान केवल 22 साल की पंडित ने जासूसी का काम शुरु किया. तब एक सहपाठी के माता पिता पता लगवाना चाहते थे कि कहीं उनकी बेटी शरीब या सिगरेट तो नहीं पीती या लड़कों के साथ उसका उठना बैठना तो नहीं है. तब से शुरु हुआ सफर शानदार रहा है. पंडित ने तमाम एवार्ड जीते, दो किताबें लिखीं और अब तक 80,000 से भी अधिक केस सुलझा चुकी हैं. कभी जासूसी के लिए कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं लेने वाली रजनी पंडित कहती हैं, "जासूस पैदा होते हैं, बनाए नहीं जा सकते. मरते दम तक मैं यही करती रहूंगी."
आरपी/एनआर (एएफपी)
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