कीटाणुओं से होगा कंप्यूटर तेज
१३ मई २०१२जापान और ब्रिटेन के वैज्ञानिक नैनो तकनीक के इलेक्ट्रो उपकरणों के लिए बैक्टीरिया का सहारा ले रहे हैं. अजीब लगता है न सुनने में लेकिन फिलहाल यही प्रयोग चल रहा है. इस प्रयोग का केंद्र हैं चुंबकीय कीटाणु जो बेहतर हार्ड ड्राइव और तेज इंटरनेट कनेक्शन बना सकते हैं.
ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी और जापान की टोक्यो यूनिवर्सिटी में कृषि और तकनीक विभाग के वैज्ञानिकों ने ऐसे कीटाणुओं को पकड़ा है जो अपने अंदर चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए लोहा खा जाते है. इसी तरह का लोहा पारंपरिक हार्ड ड्राइव में भी मिलता है. वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तरह से तेज, ज्यादा घनत्व वाली हार्ड ड्राइव, और इस तरह के अच्छी गुणवत्ता वाले इको फ्रेंडली इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाए जा सकेंगे. डॉयचे वेले से बातचीत में लीड्स यूनिवर्सिटी में भौतिकी और खगोल विज्ञान विभाग की सैरा स्टेनिलैंड ने कहा, पारंपरिक तकनीक से हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हिस्से छोटे बना रहे हैं लेकिन जल्द ही हमारी सीमा खत्म हो जाती है. तो हम इसके लिए प्रकृति की मदद ले सकते हैं.
मैग्नेटसोपिरिलम मैग्नेटिकम
शोध के लिए स्टैनिलैंड की टीम ने चुंबकीय कीटाणु मैग्नेटसोपिरिलम मैग्नेटिकम का इस्तेमाल किया. ये प्राकृतिक चुंबक हैं, जो तालाब और झील में मिलते हैं. येर धरती की चुंबकीय रेखाओं की दिशा में चलते हैं और कंपास की सुइयों की तरह सीध में रहते हैं, ये कीटाणु स्टोरेज की क्षमता को बढ़ा सकते हैं. जब वह लोहा खाते हैं तो प्रोटीन मैग्नेटाइट बनाने का काम शुरू करते हैं. यह पदार्थ धरती पर पाए जाने वाले प्राकृतिक धातुओं में सबसे ज्यादा चुंबकीय गुणों वाला है.
रिसर्चर इस बात का पता लगा रहे हैं कि कैसे इन कीटाणुओं के अंदर प्रोटीन काम करते हैं कि यह नैनोमैग्नेट बन जाए. वैज्ञानिक इसी प्रक्रिया का इस्तेमाल बाहर करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर ये नैनोमैग्नेट सूचना सेव करने लगें तो यह भविष्य की हार्ड ड्राइव बन जाएगी.
डाटा स्टोरेज के जानकार लंदन के साइमन रॉबिन्सन कहते हैं, "बढ़ते डाटा को संभालना आईटी उद्योग की बड़ी चुनौती है." डॉयचे वेले के सवालों के जवाब में रॉबिन्सन ने लिखा, "हार्ड ड्राइव उद्योग ने इस चुनौती का सामना ड्राइव का घनत्व बढ़ा कर किया है. लेकिन आने वाले किसी दिन हम इसकी भी सीमा तक पहुंच जाएंगे. हालांकि कुछ उत्पादकों का मानना है कि 50 टेराबाइट की हार्ड ड्राइव बनाना संभव है. एक टेरा बाइट में एक हजार अरब बाइट्स होती हैं. दूसरी तकनीक में आने वाले समय के लिए जीव विज्ञान एक विकल्प हो सकता है. हालांकि अभी ये प्रयोग बहुत ही शुरुआती दौर में हैं."
जैविक वायर
लीड्स यूनिवर्सिटी के साथ चल रहे प्रोजेक्ट में मासायोशी तनाका ने छोटे जैविक वायर बनाने के लिए अलग अलग प्रोटीन का इस्तेमाल किया. ये नैनो वायर सूचना का लेन देन कर सकते हैं. इन वायरों को विद्युत प्रतिरोध बनाने के लिए जैविक प्रटीन की मदद से उगाया जा सकता है. इन्हें दूसरे उपकरणों के साथ अगर जोड़ दें तो एक जैविक कंप्यूटर बन सकता है.
लीड्स यूनिवर्सिटी की सैरा स्टैनिलैंड ने जानकारी दी कि रिसर्चर ऐसे प्रोटीन कैमिकल ढूंढ रहे हैं ताकि कंप्यूटर के पार्ट्स उगाए जा सकें.
वहीं कई अन्य शोधकर्ता भी नैनोमैग्नेट पर शोध कर रहे हैं. इनमें लंदन के इंपिरियल कॉलेज में विल ब्रैंडफर्ड के नेतृत्व में कुछ रिसर्चर, म्यूनिख में माक्सिमिलियान यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट क्रिस्टियान जोगलर और डिर्क शूलर भी हैं. यह लोग माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के मॉलीक्यूलर जेनेटिक्स और ब्रेमन की समुद्री माइक्रोबायोलॉजी विभाग के साथ मिल कर काम कर रहे हैं.
रिपोर्टः जॉन ब्लाऊ/एएम
संपादनः महेश झा