क्या बन पाएगा इंसानी क्लोन
१६ मई २०१३वैज्ञानिक एक दशक से भी ज्यादा से मानव के क्लोन किए गए भ्रूण से स्टेम सेल निकालने की कोशिश कर रहे थे. पहले माना जा रहा था कि इलाज के लिए बनाए जाने वाले कृत्रिम भ्रूण का विकास कोशिकाएं बनने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही रुक जाता है.
मूल कोशिकाएं यानी स्टेम सेल खुद को शरीर की किसी भी कोशिका में ढाल सकते हैं. वैज्ञानिक काफी समय से कोशिश कर रहे हैं कि पार्किंसन, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, रीढ़ में चोट और आंखों में रोशनी के इलाज में इनका इस्तेमाल हो सके. चूंकि प्रत्यारोपण में शरीर के बाहरी अंग को स्वीकार नहीं करने की आशंका बहुत ज्यादा होती है इसलिए वैज्ञानिकों ने मरीज के खुद के डीएनए क्लोनिंग करके स्टेम सेल बनाने का फैसला किया.
अमेरिका के ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी ने इस तकनीक को सेल नाम के एक जर्नल में विस्तार से बताया है. सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर तकनीक के जरिए मरीज का डीएनए खाली अंडाणु में डाला जाता है. भारत में बायोटेक्नोलॉजी में रिसर्च कर रही अंजलि गंजीवाले ने बताया, "महिलाओं के अंडे से सारा जेनेटिक मटेरियल निकाल लिया जाता है, इसके बाद मरीज की त्वचा की कोशिका से डीएनए इस अंडे में डाला जाता है. फिर यह एक भ्रूण के रूप में विकसित होता है, इससे बच्चा नहीं बनता लेकिन मूल कोशिकाएं जरूर बनती हैं."
वहीं ओरेगॉन नेशनल प्राइमेट रिसर्च सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक शौकरात मितालिपोव ने बताया, "इस तकनीक से मिले स्टेम सेल के विस्तृत परीक्षण से पता चलता है कि उनमें खुद को सामान्य भ्रूण कोशिका की तरह बना लेने की क्षमता है. ये खुद को मस्तिष्क, लीवर, हृदय की कोशिकाओं में भी ढाल सकती हैं."
मितालिपोव का कहना है कि चूंकि इस तरह से बनाई गई कोशिकाओं में मरीज के ही जीन्स का इस्तेमाल किया जाएगा इसलिए ट्रांसप्लाट में नए आंतरिक अंग लगाने की जटिलताएं कम हो जाएंगी.
विवादास्पद तकनीक
इसी तकनीक से 1996 में डॉली भेड़ का क्लोन बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था. डॉली पहली भेड़ यानी स्तनपायी प्राणी थी, जो क्लोन करके बनाई गई थी. इसका व्यापक विरोध हुआ. मितालिपोव के मुताबिक, "चूंकि सुरक्षित और प्रभावी स्टेम सेल इलाज को विकसित करने में काफी काम करना होगा. हमें हालांकि उम्मीद है कि रिजनरेटिव मेडिसिन को आगे ले जाने के लिए यह सफलता बहुत काम आएगी."
भारत में स्टेम सेल रिसर्च पर काफी काम हो रहा है. वहां बाकायदा एग बैंक भी हैं. लेकिन यह उन्हीं लोगों के लिए है, जिन्हें सामान्य रूप से बच्चा पैदा करने में मुश्किल होती है और जो आईवीएफ जैसी तकनीकों का सहारा लेते हैं. जर्मनी में भ्रूण स्टेम सेल रिसर्च काफी विवादास्पद रहा है और इस पर प्रतिबंध है. यानी एम्ब्रियॉनिक स्टेम सेल से जुड़ा कोई शोध जर्मनी में प्रतिबंधित है.
अमेरिका में इस पर काफी रिसर्च चल रही है. मितालिपोव ने बताया कि शोध के दौरान मानवीय कोशिकाएं काफी नाजुक लगी. जबकि बंदरों की कोशिकाएं इसी तकनीक से बनाए जाने के बावजूद इतनी नाजुक नहीं थीं. उससे बंदरों के क्लोन भ्रूण भी नहीं बनाए जा सके. मितालिपोव का दावा है कि इस प्रक्रिया से इंसानी क्लोन बनाए जाने की आशंका कम है, "अक्सर न्यूक्लियर ट्रांसफर के साथ जनता में इंसानी क्लोन के बारे में बहस शुरू हो जाती है. यह हमारा फोकस नहीं है. न ही हमें लगता है कि हमारे शोध का इस्तेमाल दूसरे इंसान का क्लोन बनाने के लिए कर सकेंगे."
रिपोर्टः आभा मोंढे (एएफपी, डीपीए)
संपादनः ए जमाल