कैसे अलग हैं भारत और जर्मनी के आम चुनाव
24 सितंबर को जर्मनी में आम चुनाव होने हैं जबकि भारत में 2019 में. दोनों देशों में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है लेकिन बहुत सारी समानताओं के बावजूद कई महत्वपूर्ण अंतर भी हैं.आइए देखें कुछ प्रमुख अंतर.
प्रधानमंत्री बनाम चांसलर
भारत में जो काम प्रधानमंत्री का है वैसी ही जिम्मेदारियां जर्मनी में चांसलर की होती हैं. बस इनका नाम अलग अलग है. नरेंद्र मोदी भारत के 14वें प्रधानमंत्री हैं जबकि जर्मनी में 1949 से अब तक सात चांसलर ही हुए हैं. 2005 से अंगेला मैर्केल ही चांसलर हैं और अब चौथी बार चांसलर बनने के लिए चुनावी मैदान में हैं.
संसद का कार्यकाल
भारत में नई संसद के लिए हर पांच साल में आम चुनाव होते हैं. जबकि जर्मनी के बुंडेसटाग के लिए हर चार साल में. यानि भारतीय प्रधानमंत्री भी कार्यकाल अधिकतम पांच साल का होता है जबकि जर्मन चांसलर का केवल चार साल का.
एक व्यक्ति के दो वोट
जहां भारत के आम चुनाव में हर मतदाता केवल एक वोट ही देता है, वहीं जर्मनी में हर नागरिक को दो वोट देने होते हैं. एक वोट भारत जैसे ही चुनाव क्षेत्र में अपनी पसंद के स्थानीय उम्मीदवार को दिया जाता है तो दूसरा वोट अपनी पसंद की पार्टी को.
पेपर या इलेक्ट्रॉनिक बैलट
भारत में 1999 से ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली लागू है. 2019 के चुनाव में एडवांस ईवीएम मशीनें एम3 लगायी जाएंगी. वहीं 2009 में जर्मनी की केंद्रीय संवैधानिक अदालत के वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को असंवैधानिक घोषित करने के बाद से जर्मनी में कागज के मतदान पत्र का इस्तेमाल होता है.
मतदान केवल संडे को
भारत में चुनाव आयोग मतदान की तारीखें घोषित करता है. यह तारीखें सप्ताह के किसी भी दिन पड़ सकती हैं और उस दिन मतदानस्थल बनाये गये स्कूलों और कार्यालयों में वोट दिया जाता है. वहीं जर्मनी में मतदान केवल रविवार की छुट्टी के दिन ही होता है.
कौन दिलाता है शपथ
भारत में लोकसभा चुनाव में बहुमत पाने वाली पार्टी या सबसे बड़े गठबंधन के नेता को राष्ट्रपति देश का प्रधानमंत्री नियुक्त करता है. जर्मनी में चांसलर का चुनाव संसद में होता है और शपथ ग्रहण भी संसद का अध्यक्ष ही कराता है.
लोकसभा बनाम बुंडेसटाग
भारत संसदीय व्यवस्था के निचले सदन लोकसभा में अधिकतम 545 सदस्य होते हैं, जिनमें से 543 को पांच साल के लिए चुना जाता है. वहीं जर्मन संसद में 598 सीटें होती है. पार्टियों को वोट के अनुपात में चुनाव क्षेत्रों की ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में संसद के सदस्यों की संख्या बढ़ भी सकती है.