कैसे निपट रहे हैं भारत के मुस्लिम संगठन कोरोना संकट से
१ अप्रैल २०२०जुमे की नमाज सामूहिक तौर पर अदा की जाती है और मुस्लिम धर्म में इसका बड़ा महत्व है. बावजूद इसके, ना सिर्फ लोगों ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल किया बल्कि बड़ी संख्या में और देश की तमाम बड़ी मस्जिदों में ताला लगा रहा. ये अलग बात है कि कई जगहों से इसके उल्लंघन और फिर उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की भी खबरें आईं लेकिन आमतौर पर लोगों ने उस पर अमल किया.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और धर्मगुरु खालिद रशीद फिरंगीमहली कहते हैं, "मुसलमान जुमे की नमाज को मस्जिदों में ही अदा करता है लेकिन जब पूरे देश पर कोई संकट आया हो और हर आदमी उसकी जद में हो तो ऐसे में एहतियात बरती जानी चाहिए. किसी भी धर्म में सबसे बड़ी बात जो कही गई है वो है इंसानियत और इस बीमारी से तो इंसान ही खतरे में है. ऐसे में इंसानियत को बचाने के लिए जरूरी है कि इन नियमों पर अमल किया जाए. इंसान रहेगा तभी इंसानियत रहेगी. घर में नमाज पढ़ने पर भी अल्लाह उसे कबूल करेगा.”
यही नहीं, तमाम मुस्लिम संगठनों ने कोरोना संकट से निपटने में ना सिर्फ सरकार को सहयोग देने की अपील की है बल्कि तमाम लोग व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं. एक दिन पहले ही एशिया के सबसे बड़े मदरसे के तौर पर पहचान रखने वाले दारुल उलूम देवबंद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर जरूरत पड़ने पर अपने हॉस्टल को आइसोलेशन सेंटर में तब्दील करने की पेशकश की है.
दारुल उलूम के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी के मुताबिक, "हम लोगों ने एक पत्र मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी को भेजा है और कहा है कि यदि सरकार को जरूरत पड़े तो सौ कमरों वाले हॉस्टल को खाली कराकर सरकार उसे आइसोलेशन सेंटर बना सकती है. उस हॉस्टल में रहने वाले छात्रों को दूसरी जगह शिफ्ट कराकर उसे खाली करा दिया गया है और जब भी जरूरत होगी, सरकार उसका इस्तेमाल कर सकती है.”
यही नहीं, कई मुस्लिम संगठन और उनसे जुड़े लोग व्यक्तिगत तौर पर भी लॉकडाउन की वजह से परेशानी में आए लोगों की मदद कर रहे हैं और सोशल मीडिया के जरिए मदद की पेशकश की जा रही है. इन सबके बावजूद, कई जगहों पर इन अपीलों को दरकिनार करने या फिर इनकी अनदेखी करने की मिसालें हैं. तमाम मुस्लिम इलाकों में ना सिर्फ लोगों की आवाजाही बनी हुई है बल्कि कुछ छोटी मस्जिदों में अभी भी लोग सामूहिक तौर पर नमाज पढ़ते देखे जा सकते हैं.
गाजियाबाद में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं, "पिछले हफ्ते गुरुवार को हम देर रात तक मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ बैठकें करते रहे जिसमें शहर के कई जाने-माने मौलाना भी रहे. मुस्लिम धर्मगुरुओं ने खुद लोगों से दूर रहने और शुक्रवार को सामूहिक तौर पर नमाज ना पढ़ने की अपील की. बावजूद इसके कुछ लोग इस बात पर बहस करते रहे कि पांच-छह लोग तो एक साथ पढ़ ही सकते हैं. बाद में उन लोगों को बहुत ही सख्ती से समझाया गया और चेतावनी दी गई कि यदि कोई लॉकडाउन का उल्लंघन करता हुआ पाया गया तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.”
एक जगह इकट्ठा होने के खतरे का सबसे बड़ा उदाहरण तो तब देखने को मिला जब नई दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात के जमावड़े के कुछ दिन बाद तमाम लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबरें भी आने लगीं. इस धार्मिक जलसे में भारत के कई राज्यों के अलावा इंडोनेशिया और मलेशिया से आए करीब छह सौ लोगों ने शिरकत की थी. ये लोग यहां एक मार्च से 15 मार्च के बीच इकट्ठा हुए थे लेकिन दिल्ली में उस समय भी पचास से ज्यादा लोगों के जुटने पर पाबंदी थी.
इस जलसे में तेलंगाना के भी कई लोग शामिल हुए थे और दो दिन पहले तेलंगाना सरकार ने इस बात की पुष्टि की कि वहां कोरोना संक्रमित जिन लोगों की मौत हुई है उनमें छह लोगों ने इस जलसे में शिरकत की थी. जलसे में शामिल करीब सौ लोगों का अब तक कोरोना टेस्ट हो चुका है जिनमें कई लोगों की रिपोर्ट अभी आनी बाकी हैं.
कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने के बाद इस इलाके को पूरी तरह सील कर दिया गया है. यह वही इलाका है जहां सूफी संत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है और तबलीग-ए-जमात का मुख्यालय भी यहीं है. तबलीग-ए-जमात के जलसे में आए बड़ी संख्या में लोगों की वजह से देश के कई हिस्सों में कोरोना संक्रमण की आशंका बढ़ गई है. यह बात भी सामने आ रही है कि सहारनपुर जिले के देवबंद में भी कई लोग इस जलसे में ना सिर्फ शामिल हुए बल्कि दूसरे देशों से आए कई लोग देवबंद भी गए. जाहिर है, ऐसे में संक्रमण की ये आशंका और बढ़ गई है.
वरिष्ठ पत्रकार अशफाक अहमद कहते हैं, "धर्मगुरुओं की अपील का असर तो होता है लेकिन दिक्कत यह है कि मुस्लिम समुदाय में बड़े पैमाने पर अशिक्षित लोगों के होने की वजह से उन्हें आसानी से लोग दिग्भ्रमित कर लेते हैं. स्थानीय स्तर पर भी तमाम तथाकथित धर्मगुरु होते हैं जो लोगों को इस तरह की हरकतों के लिए उकसाते हैं. ऐसे में बहुत से लोग इनके बहकावे में आ जाते हैं. आप देखिए, तमाम बड़ी मस्जिदों में लोग नमाज पढ़ने नहीं गए लेकिन गली-मोहल्लों की मस्जिदों में सोशल डिस्टेंसिंग का जमकर उल्लंघन हुआ.”
निजामुद्दीन में हुए धार्मिक आयोजन के बाद अब पूरे देश में अचानक कोरोना संक्रमण की आशंका बढ़ गई है, देवबंद के तमाम छात्रों को निगरानी में रखा गया है क्योंकि ये छात्र मलेशिया और इंडोनेशिया से आने वाले करीब चालीस इस्लामिक उपदेशकों के एक ग्रुप के सम्पर्क में आए थे. माना जा रहा है कि इस्लामिक उपदेशकों के इस ग्रुप ने 9 मार्च और 11 मार्च के बीच देवबंद की यात्रा की थी.
सहारनपुर के मंडलायुक्त संजय कुमार का कहना है कि देवबंद की उस मस्जिद को सील कर दिया गया है जिसमें रहने वाले छात्र इस्लामिक धर्मगुरुओं के संपर्क में आए थे. इसके अलावा मस्जिद के आसपास के एक किलोमीटर में मौजूद सभी मकानों, दुकानों और स्कूलों को भी निगरानी में ले लिया गया है. आयुक्त के मुताबिक, शुरुआती जांच में सभी लोग निगेटिव पाए गए हैं लेकिन जिन दस घरों में ये समूह गया था, उन्हें भी क्वारंटीन कर दिया गया है.
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