कोरोना और बाढ़ दोनों से कराह रहा है बिहार
२० जुलाई २०२०उत्तरी व पूर्वी बिहार में हर वर्ष की तरह इस साल भी बाढ़ एक बड़ी आबादी के लिए परेशानी का सबब बन गई है. सरकार की व्यवस्था को लेकर आंकड़ों का खेल जारी है लेकिन सच तो यही है कि कोरोना व बाढ़ से प्रभावित आबादी एक दूसरी हकीकत का सामना कर रही है. बिहार के 38 जिलों में से भागलपुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, सिवान, बिहारशरीफ व राजधानी पटना में कोरोना कहर बरपा रहा है तो वहीं सुपौल, मधेपुरा, मुंगेर, गोपालगंज, सारण, पश्चिमी चंपारण, मधुबनी, दरभंगा, खगड़िया, सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिलों में नदियां आफत बरसा रहीं हैं. इन इलाकों में बहने वाली कोसी, गंडक और बागमती नदियां रोज अपनी सीमाएं तोड़ लोगों के घर-बार को लील रही हैं. नेपाल के जल अधिग्रहण क्षेत्रों तथा बिहार में हो रही बारिश से भोजपुर से भागलपुर तक गंगा नदी का जलस्तर भी बढ़ता जा रहा है. कोरोना एवं बाढ़ से जूझने के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं.
भारत का सर्वाधिक संक्रमित दूसरा राज्य बना बिहार
कोविड-19 का संक्रमण बिहार में तेजी से फैल रहा है. प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट ग्लोबल हेल्थ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश के बाद बिहार भारत का सर्वाधिक संक्रमित दूसरा राज्य बन गया है. संक्रमण फैलने के खतरे की दर मध्यप्रदेश में जहां 1 है वहीं बिहार में यह 0.971 हो चुकी है. सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य प्रणाली, जनसंख्या, आवास, स्वच्छता व महामारी विज्ञान जैसे पहलुओं पर आधारित यह रिपोर्ट बताती है कि कोरोना की स्थिति बिहार सहित देश के नौ राज्यों में आनेवाले दिनों में काफी खतरनाक हो सकती है. कोविड-19 के शुरुआती दिनों में यहां संक्रमण फैलने की रफ्तार काफी कम रही लेकिन बाद में प्रशासन व लोगों की लापरवाही भारी पड़ गई. वरीय चिकित्सक डॉ. शैलेंद्र कहते हैं, "लॉकडाउन के बाद सोशल डिस्टेंशिंग मेंटेन करने एवं मास्क लगाने में लोगों ने लापरवाही की. हालांकि सरकार इस संबंध में बार-बार लोगों को जागरूक कर रही थी."
शायद यही वजह है कि प्रदेश में संक्रमितों की संख्या 27000 को पार कर गई है. तेजी से बदल रही परिस्थिति से निपटने की राज्य सरकार भरपूर कोशिश कर रही है लेकिन अभी भी अन्य राज्यों की तुलना में यहां जांच की रफ्तार धीमी है. स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में निचले पायदान पर खड़े बिहार जैसे राज्यों में सरकार के फैसलों को अमली जामा पहनाना बहुत आसान काम नहीं है. छोटे जगहों की बात तो दूर राजधानी पटना में भी सरकारी अस्पतालों में कोरोना जांच कराना जंग जीतने के बराबर ही है. जिन निजी डायग्नोस्टिक सेंटर को कोविड जांच की इजाजत दी गई है वहां किसी चिकित्सक से जांच के लिए लिखा पर्चा लाने को कहा जाता है जिसे हासिल करना भी टेढ़ी खीर है. मुंबई में काम करने वाले एक निजी बैंक के अधिकारी अवनीत कुमार कहते हैं, "प्राइवेट लैब में भी जांच कराना आसान नहीं है. मैंने पटना में रहने वाले बुजुर्ग रिश्तेदार की जांच के लिए संपर्क किया तो वहां भी दो-तीन दिन की वेटिंग का पता चला. पैसा तो अलग से देना ही है."
जांच को लेकर असमंजस की स्थिति
हालत सिर्फ प्राइवेट लैब की खराब नहीं है. नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर राजधानी पटना के कंकड़बाग इलाके के एक रिटायर्ड अधिकारी के पुत्र कहते हैं, "मेरे पिताजी के एक मित्र कोविड पॉजिटिव पाए गए. इसके बाद मैंने पिताजी की जांच करवाई तो उन्हें निगेटिव बताया गया. किंतु तीन-चार दिन बाद सिविल सर्जन कार्यालय से सूचित किया गया कि उनकी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. आप समझ सकते हैं इसे लेकर कैसी मानसिक त्रासदी मैंने झेली होगी. अजीब स्थिति है." गार्डिनर रोड स्थित अस्पताल में जांच के लिए कतार में खड़ी राजीव नगर की श्यामा देवी कहती हैं, "जांच कराने आए थे. सुबह से लाइन में हैं. चार घंटे बाद अब सुनने में आ रहा कि फिर कल आना होगा. पता नहीं कब जांच हो सकेगा." राजीव नगर में कई लोगों के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद अपनी खराब तबियत के कारण श्यामा जांच कराना चाह रही थीं.
जांच केंद्रों पर लंबी कतारों की वजह केवल सरकारी व्यवस्था ही है, ऐसा भी नहीं है. दरअसल बड़ी संख्या में चिकित्सकों व स्वास्थ्यकर्मियों का संक्रमित होने के कारण ड्यूटी पर न आना पाना भी अफरातफरी का एक प्रमुख कारण है. वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बिहार चैप्टर के सीनियर वाइस प्रेसिंडेट डॉ अजय कुमार कहते हैं, "बिहार में हेल्थकेयर सबसे पिछड़ा सेक्टर है. कई रिपोर्टों से यह साफ है कि यहां स्वास्थ्य सुविधाओं व इस सेक्टर में मानव संसाधन का घोर अभाव है. लेकिन खराब स्थिति के लिए केवल राज्य सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, स्वास्थ्यकर्मी भी यहां काम नहीं करना चाहते. वे ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवा देना नहीं देना चाहते. जैसे ही कोई बेहतर मौका मिलता है, वे राज्य से बाहर चले जाते हैं." स्वास्थ्यकर्मियों का खुद संक्रमित होना भी बड़ी समस्या है. पीपीई किट न मिलने पर भी हेल्थकेयर स्टाफ जांच से इनकार कर देते हैं. परेशानी उन्हें होती है जो घंटों कतार में खड़े रह कर इंतजार करते हैं. फिर बीच-बीच में वीआइपी कल्चर का प्रकोप भी उन्हें झेलना पड़ता है.
अस्पतालों पर भरोसा नहीं कर रहे लोग
सरकारी व्यवस्था के अकेले स्थिति का मुकाबला नहीं कर पाने के कारण प्राइवेट लैब में भी सरकार के खर्च पर कोरोना जांच की मांग की जा रही है. सरकार द्वारा तय कोविड अस्पतालों की स्थिति कैसी है इसे भागलपुर के जिलाधिकारी के इलाज के लिए पटना जाने के फैसले से समझा जा सकता है, जबकि भागलपुर में पूर्वी बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल है. जब जिलाधिकारी ने वहां इलाज कराना वाजिब नहीं समझा तो आमलोगों की क्या स्थिति होगी? पटना एम्स को भी शायद वीआइपी के लिए ही सुरक्षित कर लिया गया है. वहां सिर्फ पटना और नालंदा मेडिल कॉलेज से रेफर किए गए मरीजों की ही भर्ती होती है. किस गरीब को पीएमसीएच या एनएमसीएच से वहां रेफर किया जाएगा, यह तो समय ही बताएगा.
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के नेतृत्व में बिहार में कोरोना की स्थिति का जायजा लेने आई टीम ने भी जांच को लेकर सवाल उठाए हैं. संयुक्त सचिव ने सरकार को कोविड जांच का दायरा बढ़ाने व समय पर रिपोर्ट मुहैया कराने की व्यवस्था सुदृढ़ करने का निर्देश दिया है. टीम ने अस्पतालों में ऑक्सीजनयुक्त बेड की संख्या बढ़ाने को भी कहा है. शायद इसलिए राज्य सरकार के निर्देश पर एंटीजन टेस्ट को अब ऑन डिमांड कर दिया गया है ताकि अधिकतम जांच हो सके. इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा. अब राज्य के सभी अनुमंडल अस्पतालों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच कराने की सुविधा बहाल करने की कोशिश की जा रही है.
बाढ़ ने स्थिति को बनाया विकराल
उत्तर व पूर्वी बिहार में कोरोना के साथ ही बाढ़ की दोहरी मार पड़ रही है. कोसी, बागमती, गंडक, बूढ़ीगंडक, कमला व भुतही बलान के साथ-साथ मसान, बंगरी, पसाह, मरधर, दुधौरा, गागन, कराह एवं लालबकेया जैसी बरसाती नदियां उफान पर हैं. इन नदियों ने हजारों लोगों का घर-बार लील लिया है. पश्चिमोत्तर बिहार के जिलों में इन नदियों का कहर जारी है. दरअसल नेपाल के जलअधिग्रहण वाले इलाकों में होने वाली बारिश इलाके के लोगों के लिए बरसों से जान-माल व फसलों की क्षति का सबब बनती रही हैं. सैकड़ों गांवों का प्रखंड मुख्यालय से सड़क संपर्क टूट गया है. वाल्मीकिनगर बराज से रविवार को 1.70 लाख क्यूसेक पानी के डिस्चार्ज से पश्चिम चंपारण जिले के पिपरासी, भितहा, ठकराहा और बगहा जैसे कई इलाकों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है.
लगातार हो रही बारिश से खगड़िया जिले में कोसी, बागमती व गंगा नदी ने सड़क मार्ग व फसलों को खासा नुकसान पहुंचाया है. जबकि दरभंगा जिले के हायाघाट, केवटी, घनश्यामपुर, कीरतपुर और कुशेश्वरस्थान के सौ से अधिक गांवों के करीब डेढ़ लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. सात नदियों की मार झेलने को अभिशप्त खगड़िया जिले के पसराहा के गौरव कहते हैं, "पहले बाढ़ से बचने की सोचें या कोरोना से. कोविड तो थोड़ा समय भी दे देगा लेकिन बाढ़ का पानी तो इंस्टेंट फैसला कर देता है. इसलिए सब भूल हमलोग बाढ़ से बचाव में जुटे हैं." इस बीच वज्रपात से भी राज्य में काफी लोगों की मौत हो चुकी है. रविवार को भी बारह से ज्यादा लोग आकाशी बिजली के शिकार हो गए.
सरकार ने तेज की राहत सेवाएं
राज्य में बाढ़ की स्थिति पर जल संसाधन विभाग के सचिव संजीव हंस कहते हैं, "बूढ़ीगंडक नदी को छोड़कर सभी नदियों का जलस्तर नीचे जा रहा है. मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार अगले 72 घंटे में राज्य की सभी प्रमुख नदियों के कैचमेंट इलाके में बिहार व नेपाल के इलाके में बारिश की संभावना है. इसे देखते हुए संबंधित जिलों को अलर्ट कर दिया गया है." वहीं राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव रामचंद्र का कहना है, "आठ जिलों के कुल 31 प्रखंडों की 153 पंचायतें बाढ़ से आंशिक रूप से प्रभावित हैं. यहां आवश्यकतानुसार राहत कार्य चलाए जा रहे हैं. इन इलाकों में चल रहे 27 कम्युनिटी किचेन में प्रतिदिन लगभग 21000 लोग भोजन कर रहे हैं."
सरकारी दावों के बीच विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव का आरोप है, "नीतीश सरकार को लोगों की नहीं, वोट की चिंता है. पूरा प्रदेश बाढ़ व कोरोना से परेशान हैं किंतु पूरी सरकार वर्चुअल रैली में व्यस्त है." हर वर्ष बाढ़ की मार झेलने को अभिशप्त बिहार को इस साल कोरोना से भी जूझना पड़ रहा है. और उस पर से इस साल चुनाव भी होने वाले हैं. संक्रमितों के तेजी से बढ़ते आंकड़े कम्युनिटी स्प्रेड की ओर इशारा कर रहे हैं. हालांकि इसको लेकर सबके अपने दावे-प्रतिदावे हैं. राजनीतिक पार्टियां चुनावी होड़ में भी दिख रही हैं. लोकतंत्र में आंकड़ों का बड़ा महत्व है अतएव यह खेल तो चलता रहेगा. लेकिन इतना तय है कि इन दोनों विपदाओं की मार तो आम जनता ही झेल रही है.
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