कोरोना की दूसरी लहर देख आशंका से बिहार लौटने लगे प्रवासी
७ अप्रैल २०२१बिहार के प्रवासी मजदूर सालभर पहले कोरोना महामारी के कारण झेली गई जलालत व परेशानी भूले नहीं हैं. कई राज्यों में तो उनके नियोक्ताओं ने ही उन्हें अपने घर लौट जाने को कह दिया है. केंद्र व बिहार सरकार ने भी स्थिति को भांप तैयारी शुरू कर दी है. भारत में इस हफ्ते हर दिन कोरोना के रिकॉर्ड 1 लाख से ज्यादा मामले सामने आए. देशभर में सक्रिय मामलों (एक्टिव केस) की संख्या जहां आठ लाख को पार कर गई है, वहीं इस महामारी से प्रतिदिन होने वाली मौत का आंकड़ा भी पांच सौ के करीब पहुंच गया है. महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तामिलनाडु, मध्यप्रदेश व राजस्थान में कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं.
कोरोना के इस भयावह रूप को देखते हुए राज्य सरकारों ने संक्रमण की चेन को तोड़ने के उद्देश्य से कड़े कदम उठाए हैं. दिल्ली व गुजरात में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी उत्तर प्रदेश सरकार को रात्रि कर्फ्यू लगाने पर विचार करने को कहा है. महाराष्ट्र सरकार ने तो बीते रविवार को ही वीकेंड में अर्थात शुक्रवार की रात आठ बजे से सोमवार की सुबह सात बजे तक पूर्ण लॉकडाउन तथा अन्य कार्य दिवसों में नाइट कर्फ्यू का एलान कर दिया था.
लॉकडाउन के डर से सहमे प्रवासी कामगार
राज्य सरकारों द्वारा की जा रही इन घोषणाओं के बाद प्रभावित प्रांतों में रह रहे प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की आशंका से सहम गए हैं. इन मजदूरों का अपने-अपने घरों को लौटना शुरू हो गया है. कामगारों को यह डर सता रहा है कि पिछले साल की तरह एकबार फिर देश में लॉकडाउन लग जाएगा. जिन दस राज्यों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है, उनके प्रमुख शहरों में रेलवे स्टेशनों व बस स्टैंडों पर घर वापसी के लिए प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है. होली के बाद से ही उत्तर भारत आने वाली ट्रेनों में जगह नहीं मिल रही है. मुंबई, दिल्ली, पुणे, नागपुर, जालंधर, अंबाला, गुरुग्राम, जयपुर, नासिक, भोपाल, हैदराबाद, चेन्नई, कानपुर व लखनऊ जैसे ये वही शहर हैं जहां बिहार के प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में लॉकडाउन समाप्त होने के बाद रोजी-रोटी की जुगाड़ में लौट गए थे.
सालभर पहले की स्थिति की कल्पना कर वे सिहर उठते हैं. मुंबई के मलाड व पुणे के चिंचवाड में क्रमश: खिलौना व ऑटोमोबाइल फैक्ट्री में काम करने वाले अफरोज व रामेंद्र फोन पर कहते हैं, "इन सख्त नियमों का सबसे ज्यादा असर यहां रोज की कमाई कर जीवन-यापन करने वालों पर ही हो रहा है. हमारी आमदनी भी प्रभावित हो रही है और घरवाले भी चितिंत हो रहे हैं. पिछली बार किसी तरह घर पहुंच गया था. बस अब किसी तरह यहां से निकल जाना है." ये दोनों बिहार के जहानाबाद जिले के रहने वाले हैं. मुंबई के वसई में स्थित एक स्टील फैक्ट्री में सुपरवाइजर की नौकरी करने वाले शिवेश कुमार बताते हैं, "वसई में करीब चार हजार से अधिक स्टील फैक्ट्रियां हैं, जिनमें अनुमान के अनुसार पचास हजार से अधिक लोग काम करते हैं. यहां लॉकडाउन की स्थिति बनती देख श्रमिक लौटने का मन बनाने लगे हैं. मैं भी समस्तीपुर लौटने की तैयारी कर रहा हूं. डर लग रहा है, पता नहीं कब क्या होगा."
कुछ ऐसी ही मन:स्थिति से ही लगभग सभी प्रवासी कामगार गुजर रहे हैं. इन्हें महसूस हो रहा था कि जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है, लेकिन इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर ने उन्हें फिर से घर वापसी के लिए विवश कर दिया. नतीजा यह हुआ कि बड़ी संख्या में खौफजदा प्रवासी मजदूर बिहार वापसी में जुट गए. एक अनुमान के मुताबिक केवल मुंबई से होली के बाद रोजाना करीब 20 ट्रेनों से करीब बीस हजार से ज्यादा लोग बिहार व उत्तर प्रदेश लौट रहे हैं. लंबी दूरी की अन्य ट्रेनों व बसों से आ रहे प्रवासियों के जत्थे को कमोबेश पूरे बिहार में देखा जा सकता है. कानपुर से परिवार सहित लौटे पटना जंक्शन पर गया जाने वाली पैसेंजर ट्रेन का इंतजार कर रहे मसौढ़ी निवासी गणेशी साह कहते हैं, "मैं क्या बाहर रह कर कमाने-खाने वाला हर व्यक्ति लॉकडाउन की आशंका से सहमा हुआ है. पिछली दफा जिस स्थिति में घर पहुंचा था, उसे याद भी नहीं करना चाहता. इसलिए कुछ और हो, इसके पहले मैं लौट आया हूं."
घर के लोग भी डाल रहे हैं लौटने का दबाव
दिल्ली से लौटे पूर्णिया के रूपौली निवासी दिनेश मांझी कहते हैं, "कौन जानता है कि आगे स्थिति कितनी खराब होगी. अभी नाइट कर्फ्यू लगाया है. पता नहीं कब पूरे देश में ही लॉकडाउन लग जाए. अब पिछली जलालत नहीं झेलना चाहता. बस किसी तरह अपने घर पहुंच जाऊं." पटना के मीठापुर बस अड्डे पर सीतामढ़ी जाने के लिए बस में बैठे राजस्थान के किशनगढ़ में संगमरमर का काम कने वाले रत्नेश कहते हैं, "पिछली दफा सात दिन में आठ हजार खर्च कर न जाने किस तरह भिट्ठा मोड़ के पास अपने गांव पहुंचा था. सोचा था, वापस नहीं जाऊंगा लेकिन मन लायक काम नहीं मिला तो काम पर चला गया था पर अब नहीं जाऊंगा. जो करूंगा, अपने गांव-घर या अपने जिले में ही करूंगा. जो स्थिति है, उसमें पता नहीं कब क्या हो जाए."
कोरोना ने जब दोबारा पांव पसारना शुरू किया तो इन प्रवासी कामगारों के घरवालों ने भी जल्द वापसी का दबाव बनाना शुरू कर दिया तो वहीं कई अन्य को उनके मालिकों ने आमदनी घट जाने या फिर काम बंद हो जाने से या तो गांव लौट जाने को कह दिया या फिर निकाल दिया. लुधियाना व दिल्ली से लौटे रामसेवक शर्मा समेत कई श्रमिक ऐसे मिले जिन्हें कंपनी ने निकाल दिया. वे सभी वहां रेडीमेड गारमेंट बनाने वाली फैक्ट्री में काम कर रहे थे. आरा जा रहे किशोर मंडल कहते हैं, "जैसे भी होगा, अब घर पर रहकर ही गुजारा कर लेंगे." बुधवार को मुंबई से भागलपुर जा रही ट्रेन में बैठे बांका के अजय पटना जंक्शन पर लौटने का कारण पूछने पर कहते हैं, "लॉकडाउन के डर से गांव जा रहे हैं. आधा लॉकडाउन तो लग ही गया है. जहां काम करते थे वहां सेठ ने कहा, अपने गांव लौट जाओ." वहीं नासिक में एक रेस्टोरेंट में काम करने पप्पू मंडल ने कहा, "सेठ ने पगार आधी कर दी थी. पता नहीं कब निकाल देता. इसलिए लौटने का निर्णय किया." लॉकडाउन नहीं होने के बावजूद डर से ही पलायन फिर शुरू हो गया.
सरकार ने क्वारंटीन सेंटर खोलने का दिया निर्देश
ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार को इस स्थिति का भान नहीं है. इसे ध्यान में रखते हुए ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को आला अफसरों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की. भारी संख्या में प्रवासी कामगारों के वापस लौटने के क्रम को देखते हुए मुख्यमंत्री ने सभी प्रखंडों में क्वारंटीन सेंटर चालू करने का निर्देश दिया है. साथ ही कहा है कि इस बात की भी जांच की जाए कि जिन इलाकों में संक्रमण बढ़ रहा है, वहां बाहर से कौन-कौन लोग आए हैं. उनके संपर्क में आने वाले लोगों पर भी नजर रखी जाए. जहां संक्रमित लोग मिलें वहां कटेंमेंट जोन बनाए जाएं तथा हर आवश्यक कदम उठाना तय किया जाए. साथ ही उन्होंने अधिक से अधिक कोरोना जांच की भी हिदायत भी दी.
बिहार में भी पांच महीने बाद मंगलवार को कोरोना के एक हजार से ज्यादा मामले सामने आए. प्रदेश में एक्टिव मरीजों की संख्या भी पांच हजार हो गई है. यही वजह है कि प्रवासी कामगारों की वापसी को देखते हुए सरकार पूरी तरह सतर्क हो गई है और अधिक से अधिक जांच व वैक्सीनेशन पर जोर दे रही है. सरकार ने बुधवार से रोजाना एक लाख कोरोना जांच का लक्ष्य रखा है. इसके साथ ही प्रदेशभर में टीकाकरण के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है. प्रवासी कामगारों के मद्देनजर यह व्यवस्था की जा रही है कि जिन स्टेशनों पर वे उतरेंगे, वहीं उनकी कोरोना जांच सुनिश्चित की जाए तथा संक्रमित पाए जाने पर उन्हें आवश्यकतानुसार होम आइसोलेशन में या फिर क्वारंटीन सेंटरों पर भेजा जाए.
प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष ट्रेन
पटना एयरपोर्ट पर भी बाहर से आने वालों की जांच की जा रही है. वहीं प्रवासी मजदूरों की वापसी को देखते हुए पुणे व मुंबई से कई अतिरिक्त आरक्षित ट्रेनें गोरखपुर, पटना, दानापुर व दरभंगा के लिए चलाने का निर्णय भी लिया गया है. रेल मंत्रालय ने लोगों को बिहार पहुंचाने के लिए केवल मुंबई व पुणे से सात आरक्षित ट्रेनें चलाने का फैसला किया है. 10 अप्रैल से ये ट्रेनें बिहार पहुंचने लगेंगी. पटना के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने बताया, "स्पेशल ट्रेन से आने वाले यात्रियों का नाम-पता व फोन नंबर नोट कर संबंधित जिलों को भेजा जाएगा, ताकि उनकी मॉनीटरिंग की जा सके. जांच में जो पॉजिटिव पाए जाएंगे उन्हें आइसोलेशन सेंटर भेज दिया जाएगा. सभी यात्रियों की जांच की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है."
बिहार में तेजी से बढ़ रहे कोविड संक्रमण को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने कहा है कि पिछले साल की तुलना में इस बार का संक्रमण ज्यादा खतरनाक है. अगर इसी तरह से कोरोना का फैलाव हुआ तो आने वाले दिनों में स्थिति बिगड़ सकती है. राज्य के आठ जिले पटना, सारण, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, समस्तीपुर, जहानाबाद, सीवान व गया में कोविड के एक्टिव मामलों की संख्या ज्यादा है. इधर, कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार के आदेश से भ्रम की स्थिति बनी हुई है. कैट की बिहार शाखा के अध्यक्ष अशोक कुमार व चेयरमैन कमल नोपानी ने कहा है कि श्रमिकों को वहां से लौट जाने को कहा जा रहा है, यह उचित नहीं है. उन्होंने इस संबंध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र भी भेजा है.
कामगारों की वापसी पर पत्रकार मोहित शेखर कहते हैं, "याद कीजिए, सालभर पहले काफी ना-नुकूर के बाद राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन कर बिहार सरकार ने प्रवासियों को लौटने की अनुमति दी थी. इन कामगारों की लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा दुर्गति हुई थी. जिस शहर को वे अपना समझ रहे थे वहां भी उन्हें अपमान ही मिला था. यही वजह है कि ये कामगार समय रहते अपनों के पास लौट जाना चाहते हैं." जाहिर है, जबतक बिहार में पर्याप्त मात्रा में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होंगे तब तक सस्ते दरों पर अपना श्रम बेचकर दूसरों की थैली भरने वाले ये कामगार परिस्थिति के अधीन विवश होकर इधर-उधर भटकने को मजबूर होते रहेंगे.