कोरोना से पाकिस्तान में करोड़ों हुए बेरोजगार
२० अगस्त २०२०पाकिस्तान में कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद सरकार ने देश के ज्यादातर हिस्सों में आंशिक रूप से लॉकडाउन लगाया था. सभी व्यापारिक और सार्वजनिक स्थलों को बंद कर दिया गया. लेकिन मई से लॉकडाउन में ढील देनी शुरू की गई और जुलाई के आखिर तक लॉकडाउन को लगभग पूरी तरह हटा लिया गया.
बुधवार तक पाकिस्तान में कोरोना वायरस के 2.90 लाख केस सामने आए जबकि इसकी वजह से छह हजार लोग मारे गए हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार कोरोना वायरस के मामलों में कमी की वजह टेस्ट में कमी है.
अब प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार के सामने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती है. महीनों तक आर्थिक गतिविधियां ठप रहने की वजह से लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं. अनौपचारिक सेक्टर में काम करने वाले लोगों पर इस महामारी की सबसे ज्यादा मार पड़ी है.
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आर्थिक महामारी
सिंध प्रांत के एक गांव से संबंध रखने वाले 27 साल के अवैस अहमद साल भर पहले देश की आर्थिक राजधानी कराची पहुंचे. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा कि कोरोना वायरस फैलने से पहले वह हर महीने 27 हजार रुपये कमा रहे थे, जिससे वह खुद, अपनी पत्नी और बच्चे का पेट आराम से भर पा रहे थे.
अहमद कहते हैं, "महामारी ने सब कुछ बदल दिया. मैं एक गारमेंट फैक्ट्री में काम कर रहा था. लेकिन 27 मार्च को मालिक ने लॉकडाउन की वजह से मुझे और 700 अन्य कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया. तब से मेरी आर्थिक हालत लगातार खराब हो रही है. दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार लेना पड़ा है." वह कहते हैं, "आखिरकार मुझे गांव लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा. सरकार ने कोई मदद नहीं दी. अब लारकाना शहर में घर बनाने वाले मिस्त्री के साथ मजदूर के तौर पर काम करता हूं. लेकिन नियमित तौर पर काम नहीं मिलता."
वहीं 42 साल की अंबर शाहिद टेलीकम्युनिकेशन कंपनी में काम करती थी. उनकी नौकरी भी महामारी के कारण चली गई. वह बताती हैं, "फरवरी में मेरे साथ सैकड़ों अन्य कर्मचारियों को बिना नोटिस निकाल दिया गया. तब से मेरे पास कोई नौकरी नहीं है. आर्थिक तौर पर बहुत दिक्कतें हो रही हैं. कर्मचारियों को नहीं निकालने के सरकारी आदेश के बावजूद महामारी के दौरान हजारों लोगो को निकाला गया है."
कराची में एक ट्रेड यूनियन से जुड़े नासिर मंसूर कहते हैं कि फैक्ट्री मालिकों ने सरकार से कम ब्याज पर लोन लिए हैं, लेकिन कर्मचारियों को सहारा देने की बजाय वे उन्हें बिना नोटिस निकाल रहे हैं. वह बताते हैं, "अनौपचारिक सेक्टर में काम करने वाले बहुत से लोगों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार कर्मचारियों को निकालने वाले फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रही है."
वहीं सरकार का दावा है कि वह मजदूरों की मदद करने की अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रही है. सत्ताधारी पार्टी के एक सांसद मोहम्मद इकबाल खान कहते हैं, "हमने लगभग दस लाख मजदूरों को नकद राशि दी है. हमने विरोध के बावजूद भवन निर्माण क्षेत्र को खोल दिया है और अब चीजों को आसान बनाने के लिए औद्योगिक और व्यापारिक सेक्टर को भी पूरी तरह खोला जा रहा है. मुझे लगता है कि आने वाले महीनों में हालात बेहतर होंगे और अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौटेगी."
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गिरावट का अंदेशा
पाकिस्तानी सरकार की तरफ से 2.3 प्रतिशत जीडीपी विकास दर के अनुमान के विपरीत विश्व बैंक ने 2020-21 के लिए जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट का अंदेशा जाहिर किया है.
जाने-माने पाकिस्तानी उद्योगपति और संसद की वित्तीय समिति के सदस्य कैसर अहमद शेख कहते हैं, "मुझे सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखती." उनके मुताबिक विश्व अर्थव्यवस्था भी कोरोना वायरस के कारण मंदी झेल रही है. वह कहते हैं, "हमें कोरोना वायरस की वैक्सीन आने और दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियां बहाल होने का इंतजार करना चाहिए."
पूर्व वित्त मंत्री और फिलहाल पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री के वित्तीय सलाहकार सलमान शाह कहते हैं कि कोरोना महामारी के कारण दो करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी हैं. उनका मानना है, "जीडीपी का सिर्फ 2.5 प्रतिशत कामगारों को सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने पर खर्च किय जा रहा है. इसे बढ़ाकर कम से कम 10 प्रतिशत किया जाना चाहिए. हम इसे बढ़ाना चाहते हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की कड़ी शर्तें हमें ऐसा नहीं करने दे रही हैं."
मई में योजना और विकास मंत्री असद उमर ने कहा था कि पाकिस्तान में कोरोना महामारी की वजह से 1.8 करोड़ लोगों को नौकरियां खोनी पड़ सकती हैं जबकि दो से सात करोड़ इस साल गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं.
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