कोरोना से कराहती दुनिया को 'मेड इन इंडिया' दवा का सहारा
१० अप्रैल २०२०भारत दुनिया में हाइड्रोक्सीक्लोरोकिन (एचसीक्यू) का सबसे बड़ा निर्माता है. सामान्य रूप से यह मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कोविड-19 के खिलाफ इसे "गेम चेंजर” करार दे दिया. दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ अब भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अभी तक एचसीक्यू समेत कोई ऐसी दवा नहीं है, जो कोविड-19 का इलाज कर दे या उससे बचाव करे. लेकिन इसके बावजूद कई देश भारत से इस दवा की खेप मांग रहे हैं.
दुनिया भर से आ रही ऊंची डिमांड के बीच मार्च में भारत के ट्रेड रेग्युलेटर ने इस दवा के एक्सपोर्ट पर कुछ पाबंदियां लगा दी. कहा गया कि निर्यात हर मामले की जांच के आधार पर होगा.
इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर भारत ने दवा नहीं भेजी तो जवाबी कार्रवाई हो सकती है. जिसके तुरंत बाद भारतीय अधिकारियों ने एचसीक्यू पर लगे आंशिक प्रतिबंध हटा दिए और कहा कि एचसीक्यू और पैरासिटामोल के निर्यात में कोई बाधा नहीं आएगी.
सीमित असर
एचसीक्यू को आम तौर पर मलेरिया, रुमेटॉएड आर्थराइटिस और लूपस के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है. यह दवा इम्यून सिस्टम के ओवर-रिएक्शन को कम करती है.
लेकिन भारत की प्रतिष्ठित मेडिकल रिसर्च संस्था, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों ने लोगों से अपील की है कि वे बिना डॉक्टरी परामर्श के इस दवा को न लें. दवा की गलत डोज जान भी ले सकती है.
आईसीएमआर के वैज्ञानिक रमण गंगाखेडकर कहते हैं, "आईसीएमआर ने कुछ मामलों में एचसीक्यू के इस्तेमाल की इजाजत दी है, लेकिन सिर्फ एक्सपेरिमेंट के स्तर पर. संदिग्ध या कोरोना वायरस के कंफर्म मरीजों के इलाज में जुटे ऐसे हेल्थकेयर वर्कर्स और लैब में कंफर्म मामलों के केस में उनके घरेलू संबंधियों को, जिनमें कोई लक्षण न दिखें, उन्हें ये लेने का सुझाव दिया गया है.” आईसीएमआर की एडवाइजरी के मुताबिक एचसीक्यू कई 'इन-वाइवो' और लैबोरेट्री शोधों में एचसीक्यू कोरोना वायरस से बचाव करने में असरदार पाई गई है.
लेकिन अभी तक कुछ ही क्लीनिकल ट्रायल हुए हैं जो इस दवा की सीमित सफलता को दिखाते हैं. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि कोविड-19 के खिलाफ इस दवा का अंधाधुंध इस्तेमाल न किया जाए.
यूरोप के रेग्युलेटर भी एचसीक्यू को कोविड-19 के खिलाफ सिर्फ क्लीनिकल ट्रायल में ही इस्तेमाल करना चाहते हैं. चीन और फ्रांस में दवा की शुरुआती सफलता के बावजूद यूरोपीय मेडिकल एजेंसी (ईएमए) इस बार पर जोर दे रही है कि कोविड-19 के इलाज को लेकर हो रहे शोधों में एचसीक्यू के असर को पहले पक्का करना होगा.
मार्च में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स में छपे एक शोध में बताया गया कि फ्रांस में एचसीक्यू के जरिए 20 रोगियों का इलाज किया गया और उसमें बिना इलाज वाले मरीजों की तुलना में काफी ज्यादा अंतर था.
लेकिन इस शोध को इतना छोटा बताया गया कि उसके नतीजों को "जल्दबाजी" कहा गया. फिलहाल एचसीक्यू और क्लोरोकिन को कोरोना वायरस पर टेस्ट करने के लिए दो शोध चल रहे हैं. एक शोध की अगुवाई विश्व स्वास्थ्य संगठन कर रहा है, जिसमें एचसीक्यू से इलाज का प्रोटोकॉल तैयार करने की कोशिश है.
दूसरा शोध वेलकम ट्रस्ट और बिल एंड मेलिंडा फाउंडेशन करवा रहे हैं, जिसका नाम क्लोरोकिन एक्सीलिरेटर ट्रायल है.
मेड इन इंडिया मेडिसिन
अमेरिका के ऑर्डर के साथ ही दुनिया के 30 और देशों ने भारत से एचसीक्यू मंगाई है. इनमें ब्राजील, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देश भी हैं.
भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं को सबसे बड़ा निर्माता और निर्यातक है. अमेरिका और यूरोप बहुत हद तक दवा की सप्लाई के लिए भारत पर निर्भर हैं. इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के मुताबिक 2019 में भारत ने दुनिया को 19 अरब डॉलर की दवाएं बेचीं. जेनेरिक दवाओं के ग्लोबल कारोबार में भारत की हिस्सेदारी 20 फीसदी है. दुनिया भर में एचसीक्यू की 70 फीसदी सप्लाई भारत से ही जाती है.
भारतीय दवा निर्माता कंपनियों के मुताबिक भारत के पास एचसीक्यू की पर्याप्त सप्लाई है. मांग बढ़ने पर कंपनियां अपना प्रोडक्शन बढ़ाने को भी तैयार हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय फैक्ट्रियां हर महीने 200 एमजी की 20 करोड़ एचसीक्यू टैबलेट्स तैयार कर सकती हैं.
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