कोरोना से लड़ने के लिए वेंटिलेटर बनाने में जुटा कार उद्योग
१ अप्रैल २०२०संकट की इस घड़ी में अस्पतालों को जरूरी उपकरण मुहैया कराने के लिए कार बनाने वाली अमेरिकी कंपनी जनरल मोटर्स, फ्रांस की पीएसए और रेनॉ, जर्मनी की फोल्क्सवागेन और फॉर्मूला वन के इंजीनियर सामने आए हैं. दुनिया भर के अस्पतालों में कोविड-19 से पीड़ित ऐसे मरीजों का तांता लगा हुआ है जिन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है. कई बार वेंटिलेटरों की कमी के चलते डॉक्टरों को जिंदगी और मौत के बीच किसी एक को चुनने पर मजबूर होना पड़ा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा स्थिति में बेहद जरूरी हो चुके वेंटिलेटरों को बनाना आमतौर पर कार उद्योग में इस्तेमाल होने वाली तकनीक और प्रक्रिया से काफी अलग है. इस वक्त कार कंपनियों ने जिस तरह से आपात स्थिति में अपनी उत्पादन क्षमता और विशेषता का ध्यान मेडिकल उपकरणों की तरफ लगाया है उसे देख कर दूसरे विश्वयुद्ध की याद ताजा हो गई है. उस वक्त ऐसी कंपनियों का इस्तेमाल टैंक और युद्धक जहाजों को बनाने में हो रहा था.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अर्थव्यवस्था के लिए युद्ध जैसी स्थिति का हवाला दे कर उद्योग जगत से की गई अपनी अपील को जायज ठहराया है. आखिरकार उन्होंने 1950 के रक्षा उत्पादन से जुड़े एक कानून का इस्तेमाल कर जनरल मोटर्स को वेंटिलेटर बनाने पर मजबूर किया. फ्रांस में पीएसए और कार के उपकरण की सप्लाई देने वाली कंपनी वालेयो समेत कुछ और कंपनियों को मिला कर एक समूह बनाया गया है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने मंगलवार को एलान किया कि यह समूह मई के मध्य तक 10 हजार वेंटिलेटर बना लेगा. इसी तरह स्पेन में फोल्क्सवागेन की सीएट ब्रांड ने बार्सिलोना के पास मार्टोरेल में वेंटिलेटर बनाना शुरू किया है.
प्रस्तावित मॉडल विंडस्क्रीन के मोटर को संशोधित कर बनाया गया है और इसका परीक्षण शुरू हो चुका है. सीट का कहना है कि उसे स्वास्थ्य प्रशासन से इसकी मंजूरी मिल जाने की उम्मीद है. इसी तरह जर्मन कंपनी मर्सिडीज का कहना है कि उसने अपनी फॉर्मूला वन टीम को इस पर काम करने के लिए कहा है. ग्रां प्री के मुकाबले रद्द होने या टल जाने के कारण यह टीम अभी खाली ही बैठी थी. इस टीम ने एक वेंटिलेटर बनाया है जो ज्यादा गंभीर मरीजों के लिए उपयोगी है. टीम का कहना है कि वह ब्रिटेन की छह दूसरी फॉर्मूला वन टीमों के साथ मिल कर हर दिन ऐसे 1000 वेंटिलेटर बना सकती है. इन टीमों ने भी मदद करने का भरोसा दिया है.
यह उपकरण फेफड़ों में ऑक्सीजन और वायु का संचार बढ़ा देता है. इसका एक संस्करण पहले ही इटली और चीन के अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों के इलाज में इस्तेमाल हो रहा है. हालांकि बहुत से लोग मेडिकल उपकरणों की दुनिया में कार कंपनियों के प्रवेश को आशंकित नजरों से देख रहे हैं. परमाणु बम के निर्माण के बाद बने गैरलाभकारी संगठन बुलेटिन ऑफ एटोमिक साइंटिस्ट्स ने हाल में एक आर्टिकल में कहा कि मेडिकल उपकरणों को बनाने के लिए कार कंपनियां बेहतरीन जगह नहीं हैं. संगठन का कहना है, "वेंटिलेटर पंप और एयरकंडिशनर की तरह दिखते हैं जिनका इस्तेमाल ऑटोमोबाइल में होता है लेकिन बहुत कम ही कार कंपनियां इसे खुद बनाती हैं. ज्यादातर कंपनियां इनको विशेषज्ञ निर्माताओँ से खरीदती हैं.”
कार कंपनियों के पास इस वक्त निर्माण की क्षमता है जिसका फिलहाल उपयोग नहीं हो रहा है लेकिन वो फिर भी सप्लायरों पर निर्भर हैं और उनमें से बहुत सारे दूसरे देशों में हैं. इस वक्त सप्लाई चेन लगभग बंद पड़ने की स्थिति में है. हालांकि कार बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि वो इस काम को कर सकती हैं. रेनॉ ने फ्रांस में अपने सबसे बड़े रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर, "टेक्नोसेंटर” को इसका प्रोटोटाइप बनाने में लगा दिया है. इसके लिए 3डी प्रिंटर जैसी शानदार तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है.
इस वक्त दुनिया के सामने एक रेस है और उसके पास कोरोना से मुकाबले के लिए वक्त बहुत कम है. फॉर्मूला 1 और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के इंजीनियरों को पहली मुलाकात के बाद से पहला उपकरण तैयार करने में 100 घंटे से भी कम समय लगा. शायद यह कार उद्योग के लिए रेस में बढ़त लेने का समय है लेकिन जरूरी नहीं कि बाकी उद्योगों के लिए भी ऐसा ही हो.
एनआर/एमजे (एएफपी)
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