क्या कहती है जर्मनी की न्यू चाइना पॉलिसी
१३ जुलाई २०२३यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी ने एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन को "साझेदार, प्रतिस्पर्धी और ढांचागत प्रतिद्वंद्वी" करार दिया है. नई चीनी नीति के बारे जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने ट्वीट किया, "हमारा लक्ष्य अलग (बीजिंग से) होना नहीं है. लेकिन हम भविष्य में उस पर अपनी नाजुक निर्भरताएं घटाना चाहते हैं." शॉल्त्स के मुताबिक, बर्लिन "बदल चुके और ज्यादा हठी हो चुके चीन पर प्रतिक्रिया" दे रहा है.
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न्यू चाइना पॉलिसी कहा जाने वाला जर्मन सरकार का ये दस्तावेज 64 पन्नों का है. जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक के मुताबिक इसे चीन के प्रति यूरोपीय संघ के रुख को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. रणनीतिक दस्तावेज कहता है कि "किन क्षेत्रों में चीन पर यूरोप की निर्भरता लगातार कम हो रही है, चीन पर जर्मनी की निर्भरता हाल के बरसों में बहुत ज्यादा अहम हो चुकी है."
चीन पर जर्मनी की निर्भरता
जर्मन अर्थव्यवस्था बुरी तरह चीन पर निर्भर है. बीते दो दशकों में जर्मन कंपनियों ने चीन में भारी निवेश किया है. निर्यात आधारित जर्मन इकोनॉमी के लिए बीजिंग एक चुंबक की तरह है. इसी कारोबारी निर्भरता की वजह से जर्मनी चीन को लेकर भारी असमंजस में है. जर्मन की गठबंधन सरकार में चीन के प्रति नीति को लेकर मतभेद हैं. विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक की ग्रीन पार्टी, चीन पर कड़ा रुख अपनाते हुए मानवाधिकारों को नीति के केंद्र में रखने की हिमायती रही है. वहीं चांसलर शॉल्त्स की पार्टी, एसपीडी कारोबार संबंधी दोस्ती के पक्ष में रहती है.
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न्यू चाइना पॉलिसी दोनों पार्टियों के रुख में संतुलन साधने की कोशिश दिखती है. विदेशमंत्री बेयरबॉक इसे "समझौते खोजना....लोकतंत्रों का जीवित रक्त है" भी कहती हैं.
चिंता और चित्रहार का संगम
जर्मन सरकार के मुताबिक वह "चीन की आर्थिक तरक्की और उसके विकास में बाधा नहीं डालना चाहती है. लेकिन तुरंत जोखिम कम करना भी जरूरी हो गया है." दस्तावेज में इस बात चिंता जताई गई है कि चीन किस तरह अपने एक पार्टी सिस्टम के हितों के ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है. इसका असर मानवाधिकारों जैसे मुद्दों पर नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर पड़ रहा है.
इन सब चिंताओं के बावजूद जर्मनी ने चीन के साथ बड़े सहयोग की संभावना को भी सामने रखा है. जर्मन सरकार का डॉक्यूमेंट कहता है, "चीन के बिना जलवायु संकट से निपटना संभव नहीं होगा."
जर्मनी रूसी गैस पर बहुत ज्यादा निर्भर था. यूक्रेन युद्ध ने इस निर्भरता के नतीजे जर्मनी को दिखा दिए. अब इन सबकों को ध्यान में रखते हुए जर्मनी चीन से भी अपनी निर्भरता कम करने की योजना बना रहा है.
ओएसजे/एसबी (डीपीए, एएफपी)