क्या जापान और चीन में कम होगी कड़वाहट?
अमेरिकी दबाव में चीन और जापान अपने रिश्ते बेहतर बनाने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने में लगे हैं. लेकिन यह कहना आसान है और करना बहुत मुश्किल. दोनों देशों के बीच राजनीतिक और क्षेत्रीय सीमाओं से जुड़े मुद्दों पर तीखे मतभेद हैं.
संबंधों पर जोर
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अक्टूबर 2018 में चीन की यात्रा की. साल 2011 के बाद किसी जापानी प्रधानमंत्री की यह पहली चीन यात्रा है. 1972 में राजनयिक संबंध बहाल होने के बाद से ही दोनों देशों के रिश्ते सहज नहीं रहे हैं. अब भी ऐसे तमाम मुद्दे हैं जिन्हें सुलझाना बाकी है. लेकिन अब रिश्ते 'ऐतिहासिक मोड़' पर बताए जा रहे हैं.
अमेरिका का दबाव
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सिर्फ अमेरिकी कंपनियों के हितों की बात करने वाले राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण चीन और जापान करीब आ रहे हैं. चीन और अमेरिका के बीच तो कारोबारी जंग चल रही है. दोनों ही देश एक-दूसरे के सामानों पर अरबों डॉलर के आयात शुल्क लगा रहे हैं. इसके अलावा ट्रंप प्रशासन अपने देश के व्यापार घाटे को कम करने के लिए जापान के निर्यात को भी निशाना बना रहा है.
आर्थिक लाभ
चीन, जापान का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और कई जापानी कंपनियां चीन में भारी निवेश भी कर रही हैं. जापान चीन के बड़े बाजार तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है, तो चीन की दिलचस्पी जापान की टेक्नोलॉजी और कॉरपोरेट विशेषज्ञता में है. चीन और जापान, दुनिया की दूसरी और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. दोनों मानते हैं कि उनके बीच अधिक आपसी आर्थिक सहयोग अमेरिकी दबाव को कम करने में मदद करेगा.
आपसी अविश्वास
आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों के नेताओं को राजनीतिक और क्षेत्रीय विवाद निपटाने होंगे. जापान एशिया महाद्वीप में चीन के बढ़ते दखल से परेशान है. पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में चीन का आक्रामक रवैया भी जपान के लिए सिर दर्द है. वहीं चीन अमेरिका के साथ जापान की सैन्य साझेदारी को अपने हितों के खिलाफ एक रणनीतिक कदम मानता है.
विवादित द्वीप
चीन और जापान के बीच कई निर्जन द्वीपों को लेकर भी विवाद रहा है जिन्हें जापान में सेंकाकू और चीन में दिआओयू कहा जाता है. वर्तमान में इन पर जापान का नियंत्रण है, लेकिन चीन भी अपना हक जमाता है. इस विवाद ने चीन-जापान संबंधों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद से ही उनके रिश्ते अस्थिर रहे हैं. युद्ध के दौरान जापान ने चीन के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था.
नानजिंग का नरसंहार
नानजिंग के नरसंहार पर जापान का रुख भी दोनों देशों के संबंधों में बड़ी बाधा रहा है. जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने वाला था तो जापान की शाही सेना ने चीन के नानजिंग शहर में छह हफ्तों तक बड़े पैमाने पर हत्याओं और बलात्कारों को अंजाम दिया. अब जापान "बड़ी संख्या में गैर लड़ाका (आम) लोगों की हत्या की बात तो मानता है", लेकिन इस घटना की वीभत्सता को उसने हमेशा कम करके ही बताया है.
उत्तर कोरिया भी कड़ी
कोरिया और चीन की नजदीकियां हमेशा ही जापान के लिए सिर दर्द रही है. जापान जहां उत्तर कोरिया के पूरी तरह परमाणु निशस्त्रीकरण की बात करता है तो वहीं चीन इस क्षेत्र में किम जोंग उन की सरकार का सबसे बड़ा हिमायती है. जापान ने कहा है कि वह उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते सामान्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन जापानी नागरिकों का उत्तर कोरिया द्वारा अपहरण जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें पहले सुलझाना जरूरी है.