क्या कार्टून से भी अदालत की अवमानना होती है?
१८ दिसम्बर २०२०कुणाल और रचिता दोनों ने ही रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ लगे आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप के मामले में सुप्रीम कोर्ट के रवैये की आलोचना की थी. कामरा ने कोर्ट द्वारा गोस्वामी की जमानत की अर्जी को तुरंत सुनने की आलोचना की थी. उन्होंने अदालत पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कई ट्वीट किए थे, जिन पर आपत्ति जताते हुए कुछ अधिवक्ताओं ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से अदालत की अवमानना की याचिका दायर करने की अनुमति मांगी थी.
वेणुगोपाल ने 12 नवम्बर को इसकी अनुमति दे दी थी जिसके बाद ये याचिकाएं अदालत में दायर कर दी गई थीं. कुणाल के ट्वीटों पर वेणुगोपाल ने कहा था कि वो भद्दे थे और "हास्य और अवमानना के बीच की रेखा को पार कर गए थे." कुणाल पहले ही कह चुके हैं कि ना तो वो माफी मांगेंगे, ना जुर्माना भरेंगे और ना किसी वकील से उनका केस लड़ने के लिए कहेंगे.
2018 में अन्वय नाइक नामक एक इंटीरियर डिजाइनर और उनकी मां मुंबई में अपने घर में मृत पाए गए थे, और नाइक द्वारा लिखे गए उनके आखिरी खत में लिखा था कि अर्नब गोस्वामी और दो और व्यक्तियों ने उनके भुगतान के बकाया पैसे उन्हें नहीं दिए थे. मुंबई पुलिस ने नवंबर 2020 में इस मामले में कार्रवाई करते हुए गोस्वामी नाइक आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.
गिरफ्तार होते ही गोस्वामी ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जी दे दी और कोर्ट ने भी उन्हें तुरंत ही सुनवाई की तारीख और अगले ही दिन जमानत भी दे दी. वहीं उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा अचानक गिरफ्तार कर लिए गए केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन की जमानत याचिका को कई दिनों तक नहीं सुना और जब सुना भी तो उनके वकील को पहले हाई कोर्ट जाने को कहा.
रचिता ट्विट्टर पर सैनेटरी पैनल्स नाम के हैंडल से कार्टून ट्वीट करती हैं और उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्नब गोस्वामी को तुरंत जमानत दे देने पर टिप्पणी करते हुए कार्टून ट्वीट किए थे. उनके खिलाफ अवमानना की याचिका दायर करने की अनुमति अटॉर्नी जनरल ने कुछ ही दिनों पहले दी थी. वेणुगोपाल ने कहा था कि रचिता के कार्टूनों ने देश की सर्वोच्च अदालत के खिलाफ "घोर आक्षेप" किया था.
इसी साल अगस्त में जाने माने अधिवक्ता और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण पर भी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला था. अदालत ने भूषण को दोषी तो ठहरा दिया था लेकिन उन्हें सिर्फ एक रूपया जुर्माने की सजा सुनाई थी. उस समय भी इस सवाल पर बहस छिड़ गई थी कि क्या एक परिपक्व लोकतंत्र में अदालत की अवमानना जैसे कानून की कोई जगह है भी? कुणाल और रचिता के खिलाफ नोटिस की वजह से वही बहस एक बार फिर छिड़ गई है.
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