नए कृषि कानूनों को अदालत में चुनौती
२९ सितम्बर २०२०तीनों कानून जब जून में तालाबंदी के बीच अध्यादेश के रूप में लागू किए गए थे, सड़कों पर विरोध तो तब से ही शुरू हो गया था. संसद के मानसून सत्र में जब सरकार अध्यादेशों को कानून में बदलने के लिए विधेयक ले कर आई तब विपक्षी दलों ने संसद में विधेयकों का पुरजोर विरोध किया. लेकिन इतने विरोध के बावजूद सरकार ने संसद के दोनों सदनों से तीनों विधेयकों को पारित करा लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिलों को अपनी मंजूरी भी दे दी.
राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद अब ये तीनों कानून लागू हो चुके हैं लेकिन अब इन्हें कानूनी रूप से चुनौती देने की तैयारी चल रही है. केरल के त्रिचूर से कांग्रेस पार्टी के सांसद टीएन प्रतापन ने इन तीन कानूनों में से एक कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून के कई प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. अपनी याचिका में प्रतापन ने कहा है कि इस कानून से संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन होता है, इसलिए इसे अवैध घोषित कर देना चाहिए.
अनुच्छेद 14 बराबरी का अधिकार देता है, 15 धर्म, नस्ल, जाती, लिंग और जन्म के स्थान के आधार पर भेदभाव प्रतिबंधित करता है और 21 आजादी के अधिकार को सुनिश्चित करता है. प्रतापन ने याचिका में कहा है कि यह कानून किसानों के लिए एक अनियंत्रित बाजार खोल देगा जो उनके लिए नुकसानदेह होगा क्योंकि उसमें ताकत सिर्फ "कुछ कॉर्पोरेटों, व्यक्तियों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और साहूकारों" के हाथ में होगी. प्रतापन ने यह भी कहा है कि इससे एक "समानांतर बाजार" को खुल जाने का मौका मिलेगा जिससे किसानों का शोषण होगा.
भारी संख्या में किसानों, किसान संगठनों, विशेषज्ञों और राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद तीनों बिलों को कानून बना कर केंद्र सरकार इनके पीछे अपनी पूरी राजनीतिक शक्ति लगा चुकी है. यहां तक कि इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ बीजेपी ने अकाली दल के रूप में अपने सबसे पुराने सहयोगी दल का साथ भी गंवा दिया. अब जब पहली कानूनी चुनौती सामने आई है, तो उम्मीद की जा रही है कि सरकार अदालत में भी अपना पक्ष मजबूती से रखेगी.
दूसरी तरफ जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं वहां इन कानूनों को बेअसर करने वाले राज्य स्तर के कानून पारित करने की तैयारी चल रही है. संविधान में कृषि राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों की सूची में है. राज्य सरकारें कृषि संबंधित विधेयक विधान सभाओं में ला सकती हैं और पारित होने पर उन्हें लागू कर सकती हैं. इसी को देखते हुए कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित सभी राज्यों की सरकारों से कहा है कि वे संविधान के अनुच्छेद 254(2) के तहत इन कानूनों को बेअसर करने वाले अपने कानून बनाएं.
इस अनुच्छेद के तहत राज्य सरकारों को कुछ विषयों पर केंद्रीय कानून को बेअसर करने वाले कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन राज्य स्तर के इन कानूनों को लागू करने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति अनिवार्य होती है. इसका मतलब अगर विपक्षी दलों की सरकारें विरोधी बिल बनाती हैं तो भी केंद्र और राज्यों में टकराव की स्थिति बने रहने की संभावना है.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore