क्या भाषा में बदलाव से आ सकती है लैंगिक समानता?
२३ जनवरी २०१९अंग्रेजी में "बॉल" ना "होती" है और ना "होता" है. ना तो उसके लिए "ही" का इस्तेमाल किया जाता है और ना ही "शी" का. यानी वस्तुओं को लिंग के अनुसार बांटा नहीं जाता. इसी कारण अकसर लोगों को अंग्रेजी सीखना आसान भी लगता है. लेकिन हिंदी में ऐसा नहीं होता. हिंदी में गेंद "होती" है और बल्ला "होता" है. यानी हर वस्तु का लिंग निर्धारित होता है. ऐसा ही जर्मन भाषा में भी है.
भाषा विद्वानों का मानना है कि समाज से लैंगिक भेदभाव हटाने के लिए जरूरी है कि पहले उसे भाषा से हटाया जाए. इसी दिशा में पहला कदम उठाते हुए जर्मनी के शहर हनोवर ने औपचारिक दस्तावेजों में "जेंडर न्यूट्रल" भाषा के इस्तेमाल की शुरुआत की है. हनोवर नगर पालिका ने दिशा निर्देश जारी किए हैं कि अब से सभी औपचारिक ईमेल, प्रेस के लिए जारी बयान, ब्रोशर, फॉर्म और चिट्ठियों में जेंडर न्यूट्रल भाषा का ही इस्तेमाल किया जाए.
हनोवर के मेयर श्टेफान शॉश्टॉक ने इस अवसर पर कहा कहा, "विविधता ही हमारी ताकत है. यह एक महत्वपूर्ण संकेत और एक बड़ा कदम है जो सुनिश्चित करेगा कि सभी लोगों को - फिर चाहे उनका लिंग कुछ भी हो - हमारे शहर के मूल्यों के आधार पर ही संबोधित किया जाएगा और हमारी आधाकारिक भाषा में भी उसे लागू किया जाएगा."
लेकिन ये भाषा होगी कैसी? ऐसा नहीं है कि इसमें वस्तुओं के लिंग हटा कर उन्हें "न्यूट्रल" बना दिया जाएगा, बल्कि यहां बात सिर्फ महिला और पुरुष के संबोधन की है. चिट्ठियों में उनके नाम के आगे ना मिस्टर होगा और ना मिस. ऐसा इसलिए भी किया गया है ताकि ट्रांसजेंडर यानी तीसरे लिंग के लोगों को भी शामिल किया जा सके. इसी तरह अगर नौकरी के लिए कोई विज्ञापन जारी होगा तो उसमें भी पेशे को लिंग से निर्धारित नहीं किया जाएगा.
अंग्रेजी में सोचने वालों के लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि उसमें "टीचर" टीचर ही रहता है, फिर चाहे महिला हो या पुरुष. लेकिन हिंदी में सोचें तो पुरुष अध्यापक होता है और महिला अध्यापिका. इसी तरह जर्मन में Lehrer और Lehrerin. पिछले कुछ वक्त से विज्ञापनों में बहुवचन का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि महिला और पुरुष दोनों को बराबरी से शामिल किया जा सके. इस तरह से LehrerInnen शब्द का इस्तेमाल होने लगा. लेकिन क्योंकि इसमें तीसरे लिंग के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए शब्द में और बदलाव लाया गया और यह Lehrer*innen बन गया. हनोवर ने अब इन सब अलग अलग शब्दों के इस्तेमाल की जगह हर जगह एक ही तरह के शब्द का फैसला लिया है.
हालांकि भाषा और व्याकरण के जानकार इससे बहुत खुश नहीं हैं. आलोचकों का कहना है कि लैंगिक समानता के चक्कर में पहले ही भाषा के साथ काफी खिलवाड़ किया जा चुका है. उनका कहना है कि इससे समाज में बराबरी आए ना आए, लेकिन वक्त के साथ लोगों की ऐसी मांग जरूर आने लगेगी कि अंग्रेजी की ही तरह सभी वस्तुओं को लिंग भी न्यूट्रल बना दिए जाएं और इस तरह भाषा के अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगेंगे.
रिपोर्ट: जॉन शेल्टन/ईशा भाटिया
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