क्या यह टीम जीत सकती है वर्ल्ड कप
१८ जनवरी २०११श्रीसंत के न चुने जाने पर हाय तौबा मच रही है. अगर वह चुने भी जाते, तो भी इतनी ही बात होती. श्रीसंत सिर्फ अपनी गेंदबाजी नहीं, दूसरी वजहों से भी सुर्खियों में रहे हैं और वर्ल्ड कप जैसे मामलों में दूसरी वजहें कई बार भारी पड़ जाती हैं.
क्रिकेट के ग्राउंड पर कभी डिस्को डांस करने, कभी चांटा खाकर विवाद में आ जाने और कभी दक्षिण अफ्रीकी कप्तान ग्रेम स्मिथ को भला बुरा कह देने वाले श्रीसंत कभी कभी अच्छी गेंदबाजी भी कर लेते हैं. यह सही है कि वह इन दिनों अच्छे फॉर्म में हैं लेकिन उनका फॉर्म कितने दिन चलेगा, बताना मुश्किल है.
स्पिनरों की दरकार
भारत के लिए तेज गेंदबाजों को चुनना बहुत मुश्किल नहीं. जहीर खान का नाम तय था और उनके तीन साथी चाहिए थे. ये कोई भी हो सकते थे. आशीष नेहरा को उनके अनुभव पर तो मुनाफ को उनकी तेजी पर ले लिया गया. बची आखिरी जगह, जहां प्रवीण कुमार को अटका दिया गया क्योंकि वह कप्तान धोनी के भरोसेमंद भी हैं और बल्ला भी अच्छा चला लेते हैं.
इसी वजह से ईशांत की भी छुट्टी हो गई और श्रीसंत की भी. अगर उस नजर से देखा जाए, तो ईशांत अगर श्रीसंत से बेहतर गेंदबाज न समझे जाएं, तो उनसे कमतर भी नहीं. ऐसे में नाइंसाफी उनके साथ भी हुई.
वर्ल्ड कप भारतीय उप महाद्वीप में हो रहा है, जहां तेज से ज्यादा अहम स्पिन गेंदबाज हैं और इसलिए उनके नाम पर भी विवाद जरूरी था. यहां भी वही बात थी, हरभजन सिंह के दो साथी चाहिए थे. पीयूष चावला को लेग स्पिनर होने की वजह से जगह मिल गई लेकिन ढाई साल से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट न खेलने वाले पीयूष के नाम पर विवाद चल पड़ा.
अगर बारीकी से देखें तो भारत के पास दो विकल्प बचे थे, प्रज्ञान ओझा और अमित मिश्रा. प्रज्ञान बाएं हाथ के हैं, जिसका फायदा उन्हें पहुंच सकता था लेकिन फिर तीनों ऑफ स्पिनर हो जाते. रही बात अश्चिन की, तो उनका नाम जरूर चौंकाता है.
बल्लेबाजी का बल
भले ही 15 सदस्यों वाली टीम में आठ बल्लेबाज और सात गेंदबाज रखे गए हों लेकिन टीम तो दो तेज गेंदबाज और दो स्पिनर के साथ ही खेलेगी. पांचवें गेंदबाज के तौर पर कभी सुरेश रैना, कभी युवराज, कभी सहवाग और कभी सचिन भी इस्तेमाल किए जाएंगे. यूसुफ खेले तो उन्हें भी कुछ ओवर फेंकने होंगे.
टीम चुनने वालों पर जो दबाव रहा होगा, उसके बारे में भी जरा सोचना चाहिए. मिसाल के तौर पर रोहित शर्मा. शानदार बल्लेबाज शर्मा को कभी पूरी जगह नहीं मिली. और इसके जिम्मेदार भी वह खुद हैं. सेलेक्टर्स के सामने युवराज को अनुभव और फील्डिंग के आधार पर लेना जरूरी था, जिसके बाद मध्य क्रम में भी दो जगह बचती थी.
कोहली के रिकॉर्ड और आक्रामकता ने उन्हें जगह दिला दी. रैना और रोहित में अच्छे बल्लेबाज जरूर रोहित रहे होंगे लेकिन रैना के जुझारूपन और उनका खब्बू होना उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ. वैसे रैना और कोहली में कोई एक ही खेलेगा, दूसरे को दूसरे मैच का इंतजार करना होगा.
फॉर्म नहीं, साख
टीम चुनते वक्त खिलाड़ियों की मौजूदा फॉर्म से ज्यादा उनकी साख पर ध्यान दिया गया है. अगर ऐसा न होता, तो युवराज, यूसुफ और हरभजन की जगह नहीं बनती. लेकिन शायद सेलेक्टर्स इतना बड़ा जोखिम उठाने को तैयार नहीं थे कि ऐसे किसी नाम को खराब फॉर्म के नाम पर ड्रॉप कर दें.
भज्जी ने भी हाल के दिनों में कुछ बड़ा नहीं किया. यूसुफ तुक्के के बादशाह हैं. लेकिन उन्हें सिर्फ रवींद्र जडेजा की चुनौती थी, जो कहने को तो ऑलराउंडर हैं लेकिन न काम के बल्लेबाज हैं न काम के बॉलर. यानी जो उपलब्धता थी, उसमें यूसुफ सबसे फिट थे. यह बात अलग है कि वह खुद वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी नहीं हैं.
कितनी दमदार है टीम
तो चुनी गई टीम में ज्यादा नुस्ख निकालना संभव नहीं. हां, एक सवाल यह पूछा जा सकता है कि क्या यह टीम लगातार नौ मैच जीत सकती है, जिससे कि वर्ल्ड कप भारत में आ जाए. जवाब है, नहीं.
इन सब विवादों के बीच एक बिंदु जो छूट गया, वह है विकेटकीपर का. कप्तान धोनी के अलावा टीम में कोई विकेटकीपर नहीं. अगर धोनी को चोट लग गई तो. पिछले वर्ल्ड कप तक राहुल द्रविड़ के रूप में एक रिजर्व विकेटकीपर खुद ब खुद टीम में होता था.
इस बार वह बात नहीं. हालांकि ऋद्धिमान साहा, पार्थिव पटेल और दिनेश कार्तिक को शुरुआती 30 खिलाड़ियों में रखा गया लेकिन आखिरी 15 में नहीं. ऐसे में दुआ करनी होगी कि धोनी को 40 दिनों तक चोट न लगे. आखिर वर्ल्ड कप के बाद आईपीएल भी तो खेलना है.
वर्ल्ड कप 2011 के लिए चुनी गई टीम के 15 खिलाड़ी इस प्रकार हैं:
महेंद्र सिंह धोनी (कप्तान), वीरेंद्र सहवाग (उप कप्तान), सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह, गौतम गंभीर, सुरेश रैना, विराट कोहली, यूसुफ पठान, जहीर खान, आशीष नेहरा, प्रवीण कुमार, मुनाफ पटेल, हरभजन सिंह, आर अश्विन और पीयूष चावला.
समीक्षाः अनवर जे अशरफ
संपादनः एस गौड़