क्या लादेन को “शहीद” कहना इमरान खान की भूल है
२६ जून २०२०यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के मन में उन इस्लामी लड़ाकों तक के लिए खास जगह है, जो अफगानिस्तान और यहां तक की खुद पाकिस्तान में हिंसक हमले करते आए हैं. वह इसका आरोप अमेरिका पर जड़ते हैं कि उसने अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र में अस्थिरता पैदा की और जिसके जवाब में तालिबान का उग्रवाद फैला. लेकिन फिर भी पूर्व अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को शहीद कह जाना उनकी इस तरह की सोच के लिहाज से भी काफी निम्न स्तर का है.
कुछ लोग कह रहे हैं कि ऐसा उनकी जबान से गलती से निकल गया. मैं कहता हूं कि अगर ऐसा है भी तो यह "फ्रायडियन स्लिप" था और इससे खान के अवचेतन में छुपे विचार ही सामने आए हैं.
25 जून को अपने संसदीय भाषण में खान विपक्ष के उन आरोपों का जवाब दे रहे थे कि उनकी सरकार ने पाकिस्तान में कोरोना महामारी को ठीक से नियंत्रित नहीं किया. उन्होंने इस आरोप को गलत बताते हुए एक लंबा चौड़ा भाषण दिया, जिसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और उससे पाकिस्तान को हुए नुकसान का भी जिक्र किया. पिछले 19 सालों की राजनीति में वह अपनी इसी सोच को दोहराते आए हैं.
पाकिस्तानी सरकार की सोच
सन 2011 में अमेरिकी सेना ने विशेष अभियान चलाकर पाकिस्तान के एबटाबाद में बिन लादेन को मारा था. माना जाता है कि उस समय पाकिस्तानी सरकार ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की बिन लादेन ऑपरेशन में मदद की थी. शायद उस समय पाकिस्तान के पास मदद करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था. लेकिन पूर्व अल कायदा सरगना के पाकिस्तान में पाए जाने के कारण उसके आतंकवाद-विरोधी होने के दावों की पोल तो खुल ही गई थी. आखिर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के नाम पर ही तो पाकिस्तान अरबों डॉलर अमेरिका से लेता आया था.
पश्चिमी देशों के लिए पाकिस्तान का आतंक के खिलाफ ऐसा संदेहास्पद रवैया ही हमेशा से परेशानी का कारण रहा है. पश्चिम को इस क्षेत्र में संकटों को सुलझाने के लिए पाकिस्तान की मदद तो चाहिए लेकिन सरकार का खुद अपनी घरेलू और विदेशी नीतियों पर नियंत्रण नहीं है. पाकिस्तान में सरकार और समाज दोनों ही स्तरों पर इस्लामिक लड़ाकों से सहानुभूति रखने वालों की भी कोई कमी नहीं है. इसी का सहारा लेकर भारत के खिलाफ भावनाएं भड़काई जाती हैं और इसी की मदद से सेना के जनरलों के हाथों में इतनी ताकत बनी रहती है.
खान के सेना के साथ गहरे संबंध होना भी जगजाहिर है. इसलिए खान की जबान से बिन लादेन के लिए जो निकला, उसे ही देश की नीति का प्रतिबिंब माना जाना चाहिए. फर्क बस इतना है कि जो बात सत्ता के गलियारों में ज्यादातर लोग मानते हैं, बस उसे ही खान ने खुलेआम और वो भी संसद में कह दिया.
क्या सच में लड़ी आतंक के खिलाफ जंग
जाहिर है कि इमरान खान को भी अपनी सोच रखने का अधिकार है. अगर उनका वाकई मानना है कि लादेन एक "शहीद" था तो वह अपनी सोच रखें. लेकिन साथ ही पाकिस्तान सरकार को अमेरिका से साफ कह देना चाहिए कि वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसका साथ नहीं देगी. यह बेकार का मुखौटा हटा लेना चाहिए. असल में पाकिस्तान ने कभी भी आतंक के खिलाफ जंग की ही नहीं.
इसके अलावा, पाकिस्तान को खुद को पीड़ित के रूप में दिखाना भी बंद कर देना चाहिए. खान हमेशा बाकी दुनिया को याद दिलाते रहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ जंग का हिस्सा बनने के कारण पाकिस्तान को कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ी है. सन 2001 से ही हजारों आम शहरियों और सैनिकों की जान इसकी भेंट चढ़ चुकी है. अगर मासूमों की जान लेने वालों को वह "शहीद" मानते हैं तो अपने देश की "कुर्बानियों” के बारे में बात करने का उन्हें कोई हक नहीं बनता.
प्रिय प्रधानमंत्री जी, पाकिस्तान के लोगों को वाकई आतंकवाद के कारण बहुत कुछ झेलना पड़ा है. जिन उदारवादी सोच वाले नेताओं ने इसके खिलाफ आवाज उठाई, उन्हें आतंकियों ने मार डाला. दूसरी ओर आप जैसे नेता हैं जिन्होंने तालिबान से भी दोस्ताना संबंध बनाए हुए हैं. उग्रवाद और कट्टरवाद को चुनौती देने के लिए आपको कभी कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ी है. लेकिन प्रगतिवादी और सेकुलर लोग सरकार की सोच और आपकी नीतियों पर ऐसे ही सवाल खड़े करते रहेंगे. अब तक भी इसमें कोई संदेह नहीं था कि आप इस्लामी लड़ाकों से सहानुभूति रखते हैं लेकिन अब तो आपने अपनी सोच को काफी उजागर कर दिया है. फिर भी, पाकिस्तान में कट्टरवाद के खिलाफ जंग चलती रहेगी. लादेन का महिमामंडन कर आपने दिखा दिया है कि आप इसमें किसके साथ खड़े हैं.
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