क्या वेस्ट बैंक को लेकर इस्राएल पर प्रतिबंध लगाएगा ईयू
१५ मई २०२०अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने इस्राएल की स्थापना दिवस के मौके पर वहां जाकर प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू से मुलाकात की और वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों को काट कर अलग करने की उनकी योजना पर चर्चा की. यह ऐसे माहौल में हुआ जब वेस्ट बैंक के इलाके में इस्राएली सेना के छापे के दौरान हिंसा की खबरें आई थीं.
नवंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को चुनावों का सामना करना है जबकि इस्राएल में नेतन्याहू इसे पार कर अपना आधार मजबूत करने में कामयाब रहे हैं. इधर नेतन्याहू का राष्ट्रवादी खेमा वेस्ट बैंक के कब्जे की योजना को अमली जामा पहनाने के लिए बेकरार है ही, उधर इससे ट्रंप के इस्राएल-समर्थक वोटर भी खुश हो जाएंगे.
किसे है इस योजना पर आपत्ति
लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इस योजना की काफी आलोचना हुई है. उन फलस्तीनी लोगों की कमजोर पड़ती उम्मीदें इससे टूट जाएंगी जो इस्राएल के साथ साथ फलस्तीन को भी एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित होते देखना चाहते हैं. सन 1967 में छह दिन चले मध्यपूर्व के युद्ध में इस्राएल ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था. फिलहाल यहां करीब 30 लाख फलस्तीनी और करीब 400 इस्राएली रहते हैं.
मध्यपूर्व में शांति की ट्रंप की योजना को फलस्तीन नकारता आया है और जॉर्डन के विदेश मंत्री आयमान सफादी ने हाल ही में कहा है कि यहूदी बस्तियों और मृत सागर के उत्तर वाले वेस्ट बैंक के इलाके को काट कर अलग करना "एक विनाशकारी कदम होगा." येरुशलम को इस्राएल की अविभाजित राजधानी बनाना और फलस्तीन के इलाके को आर्थिक सहायता मुहैया कराना इस योजना का हिस्सा है.
पिछले महीने अरब लीग ने कहा था कि अमेरिका के समर्थन से इस्राएली कब्जे की योजना को अमली जामा पहनाना फलस्तीनी लोगों के खिलाफ "नए युद्ध अपराध" माने जाएंगे. यूरोपीय संघ और उसके सदस्य देश चेतावनी दे चुके हैं कि इस्राएल अपनी योजना को लेकर आगे बढ़ा तो उसके बुरे नतीजे होंगे.
कितना कड़ा विरोध जता सकता है यूरोपीय संघ
दो-राष्ट्र वाले मॉडल के अहम समर्थकों में यूरोपीय संघ भी है. संयुक्त राष्ट्र और अरब लीग के साथ मिलकर ईयू वेस्ट बैंक को इस्राएल में मिलाने के कदम का विरोध कर रहा है. हालांकि अब तक ईयू की चेतावनियां इतनी सख्त और एकजुट नहीं रही हैं जिससे कब्जे का विरोध करने वाला खेमा मजबूत बने. ईयू के भीतर हंगरी जैसे भी कुछ सदस्य देश हैं जो इस्राएल को नाराज करने वाले हर कदम का विरोध करते हैं.
अगर अपनी योजना के अनुसार वाकई 1 जुलाई से इस्राएल वेस्ट बैंक के अधिग्रहण को लेकर आगे बढ़ता है तो उस स्थिति में यूरोपीय संघ के देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी उसके साथ अपने संबंधों को नए सिरे से तय करना होगा. इसके अलावा दो राष्ट्रों वाले ओस्लो समझौते को नकार कर आगे बढ़ने की इस्राएल को क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है, इस पर भी यूरोपीय संघ के देश चर्चा कर रहे हैं.
फिलहाल ईयू के सामने जो ठोस विकल्प हैं उनमें से एक है, यूएन सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2334 पर अमल करना - जिसके अंतर्गत इस्राएली बस्तियों के खिलाफ सख्ती से पेश आना और वहां से बन कर आने वाले उत्पादों के अलावा दूसरी इस्राएली चीजों पर प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं. इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा, टैक्स के कानून और कॉन्सुलर सेवाओं पर रोक लगाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं. ऐसे कई विकल्पों पर चर्चा करने के लिए यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों का सम्मेलन हो रहा है जिससे संदेश जाएगा कि इस्राएल के इस कदम को लेकर उसे किस तरह के और कितने कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है.
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