क्या सफल रहे ओबामा?
२० जनवरी २०१०रविवार से शुरू हए होप नाम के इस म्यूज़िकल ड्रामा में ओबामा की ज़िंदगी के हर पेहलू को बाखूबी दर्शाया गया है. ओबामा का एक कम्यूनिटी ऑर्गनाइज़र से अमेरिकी राष्ट्रपति बनने तक का सफर है ये. इस ड्रामे को रैंचल हचिंस ने लिखा है. हचिंस जर्मनी में रहने वाले अमेरिकी मूल के नाटककार हैं. उनका कहना है कि वो दुनिया को दिखाना चाहते थे कि किस तरह ओबामा ने निराश अमेरिकी जनता में उम्मीद फूंकी.
हचिंस कहते हैं, बराक ओबामा का चुनाव आंदोलन बेहतरीन था. अगर आपको याद हो तो वो समय अमेरिकी लोगों के लिए ख़ास लेकिन निराशा से भरा था. मुझे ये नाटक लिखने की प्रेरणा उस समय अमेरिका में पनप रही भावनाओं से मिली.
ड्रामा की शुरुआत होती है ओबामा की राजनीति में बढ़ती रुचि से. आगे बात होती है उनके राष्ट्रपति पद के प्रचार वाले दिनों की. नेताओं और उनके भाषणों की. और म्यूज़िकल का अंत होता है चुनाव प्रचार में ओबामा के दिए नारे येस वी कैन से. इस मयूज़िकल को तो हचिंस ने एक हैपी एंडिंग दे दी. लेकिन क्या ओबामा पिछले एक साल में पूरे कर सके हैं अपने सभी वादे. गुआंतानामो का शिविर अब भी बना हुआ है, इराक के बदले अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई चल रही है, और अमेरिकी अर्थनीति एक पतले धागे से लटक रही है.
राष्ट्रपति भवन में आने के बाद ओबामा को तुरंत अमेरिकी इतिहास के सबसे बड़े वित्तीय संकट से जूझना पड़ा. अरबों की धनराशि झोंकते हुए अमेरिका को आर्थिक सर्वनाश के गड्ढे में गिरने से बचाया गया. और इसी के साथ सुधारों की योजनाएं पीछे रह गईं.
ओबामा की चुनौतियां बरकरार हैं. स्वास्थ्य सेवा के बाद बैंकों के लिए नियम बनाने हैं, जलवायु को बचाने की पहल ज़रूरी है. इतना ही नहीं आर्थिक हालत संगीन बनी हुई है, बेरोज़गारी की दर ऊंची है. कांग्रेस के चुनाव में स्थिति उनके लिए और जटिल होगी. लेकिन ओबामा के लिए कोई दूसरा चारा नहीं है. मज़बूत हाथों में उन्हें लगाम संभाले रखना है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/तनुश्री सचदेव
संपादन: राम यादव