क्या हुआ था पांच महीने पहले कश्मीर के शोपियां में
२५ दिसम्बर २०२०भारतीय सेना ने 18 जुलाई को एक बयान में कहा था कि आम्शीपूरा गांव में एक मुठभेड़ में तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया है. लेकिन घटना के लगभग एक महीने बाद जब मीडिया में मुठभेड़ में मारे गए तीनों व्यक्तियों की तस्वीरें आईं तो उन तस्वीरों को देख कर राजौरी के तीनों परिवारों ने बताया कि तस्वीर में दिख रहे तीनों लड़के उनके परिवारों के हैं और वो 17 जुलाई से लापता हैं.
परिवारों ने लड़कों के नाम मोहम्मद इबरार (उम्र 25 साल), इम्तियाज अहमद (20) और इबरार अहमद (16) बताए थे. परिवारों का कहना था कि तीनों 16 जुलाई को काम के सिलसिले में कश्मीर गए थे और उसके अगले दिन से उनकी कोई खबर नहीं मिली थी. परिवारों ने मांग की थी कि पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच हो, जिसके बाद सेना ने मुठभेड़ की जांच शुरू कर दी थी.
पहले तो सेना ने बड़े विस्तार से बताया था कि किस तरह उन तीनों युवकों ने सेना पर गोली चलाई थी और किस तरह उनके मारे जाने के बाद उनके पास गोलाबारूद और विस्फोटक पदार्थ मिले थे. लेकिन राजौरी के परिवारों के बयानों के बाद सेना की पूरी कहानी संदिग्ध लगने लगी. जांच के दौरान जब तीनों युवकों के दफनाए हुए शवों को बाहर निकाल कर उनकी डीएनए जांच कराई गई तो परिवारों के दावे सच साबित हुए.
गुरूवार 24 दिसंबर को सेना की चिनार कोर इकाई ने बताया कि जांच में सबूतों को दर्ज करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है और आगे की कार्रवाई के लिए सबूतों का निरीक्षण किया जा रहा है. चिनार कोर ने यह नहीं बताया कि जांच किस नतीजे पर पहुंची है लेकिन मीडिया में आई कई खबरों में यह दावा किया जा रहा है कि मुठभेड़ फर्जी पाई गई है और उसमें शामिल सेना के कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने दावा किया है कि मेजर रैंक के सेना के एक अधिकारी को फर्जी मुठभेड़ का दोषी पाया गया है और अब उनके कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू होगी. द ट्रिब्यून अखबार ने कहा है कि सेना के दो कर्मियों को दोषी पाया गया है और अब इनका कोर्ट मार्शल किया जा सकता है. अखबार ने सेना के अधिकारियों के हवाले से यह भी कहा है कि सेना को उन तीनों युवकों को संदिग्ध बताने वाले चार व्यक्तियों की भूमिका की जांच पुलिस को करनी चाहिए.
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