क्या है गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील
१४ सितम्बर २०१८पारंपरिक रूप से रक्षा सौदे की प्रक्रिया कुछ इस तरह से है कि सेना पहले अपनी जरूरत का ब्यौरा रक्षा मंत्री को देती है. रक्षा मंत्री संबंधित विभागों से मशविरे का बाद इसकी मंजूरी देते हैं. इसके बाद कैबिनेट की कमेटी में इस पर फैसला लिया जाता है जिस पर अंतिम मुहर प्रधानमंत्री लगाते हैं. जिसके बाद सेना हथियारों या फिर दूसरे साजो सामान का परीक्षण शुरू करती है. परीक्षण के बाद कंपनियों की आखिरी सूची तैयार होती है और उन्हें टेंडर भरने के लिए कहा जाता है. इस टेंडर में जिसकी कीमत कम होती है आमतौर पर उसे आपूर्ति के लिए मंजूरी मिल जाती है. इस पूरी प्रक्रिया में एक लंबा समय लगता है और सेना को मिलने वाले सामान में काफी देरी होती है.
शायद इसी देर से बचने के लिए इस पूरी प्रक्रिया को दरकिनार कर मोदी सरकार ने सीधे दोनों देशों की सरकारों के बीच समझौते के तहत विमानों का सौदा किया. पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री ने इसका एलान किया और 17 महीने बाद दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने इस करार पर दस्तखत किए. इस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के पास यह अधिकार है कि सेना की खास जरूरत को देखते हुए बिना पूरी प्रक्रिया से गुजरे करार कर लिया जाए और फिर भारत की संसद को इस बारे में जानकारी देकर बाकी की औपचारिकताएं पूरी कर ली जाएं.
यह पहली बार नहीं है कि सरकार ने इस तरह से सौदा किया हो. भारत और दुनिया के दूसरे देश भी सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस तरह के सौदों को अंजाम देते हैं. खासतौर से अमेरिका इसमें काफी दिलचस्पी दिखाता है और उसने कई देशों के साथ इस तरह के समझौते किए हैं. अमेरिका ने इसे विदेशी सैन्य बिक्री (फॉरेन मिलिट्री सेल यानी एफएमएस) नाम दिया है. सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक सी उदय भास्कर बताते हैं, "भारत ने अमेरिका से एफएमएस के जरिए बीते सालों में सरकार से सरकार के बीच कई सौदे किए हैं. इनमें पी 8 मैरीटाइम रिकॉनेसेंस एयरक्राफ्ट, सी 130 जे हेवी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट प्रमुख हैं, फिलहाल इसी रास्ते से कुछ हेलिकॉप्टर खरीदने पर भी बात हो रही है."
वास्तव में यह सौदा सीधे सरकारों के बीच बातचीत होने के कारण तुलनात्मक रूप से आसान होता है और इसमें लगने वाला समय भी कम है. कोई बिचौलिया नहीं होने की वजह से भ्रष्टाचार की आशंका भी कम रहती है. सी उदय भास्कर बताते हैं, "भारत ने अमेरिका से जी टू जी सौदा करके एफएमएस के तहत करीब 15 अरब अमेरिकी डॉलर की कीमत के साजोसामान खरीदे हैं. 10 साल पहले अमेरिका से इस तरह का कोई सामान नहीं खरीदा जाता था."
यह एक तरीका है काम को तेजी से निपटाने का खासतौर से उन मामलों में जहां सरकार और सरकारी तंत्र काफी वक्त लगाते हैं. अब इस पर सवाल उठे हैं तो सरकारों को भी सोचना होगा कि इसे फुलप्रूफ कैसे बनाया जाए.