क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड
१७ जुलाई २०१९भारत सरकार के वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने पिछले सप्ताह देश के कारोबारियों को बताया था कि विदेशों से ऋण लेने का कदम भारतीय कंपनियों के लिए ब्याज दरों को नीचे लाने के प्रयासों का हिस्सा है ताकि अर्थव्यवस्था में तेजी लाई जा सके. उन्होंने कहा, "हम खुले तौर पर विदेशी निवेश और बचत का स्वागत करेंगे क्योंकि हमें इसकी जरूरत होगी."
गर्ग ने कहा कि घरेलू कर्ज पर निर्भरता के साथ समस्या यह थी कि सरकार ने अर्थव्यवस्था में कुल बचत का लगभग 80% का उपयोग किया. काफी कम हिस्सा निजी कंपनियों के लिए छोड़ा गया. इसका नतीजा ये हुआ कि व्यवसायियों को बैंक ऋण पर 12-13% ब्याज देने के लिए बाध्य किया जाता है. सरकार ने पहले भी विदेशी बाजारों से धन जुटाने पर विचार किया था, लेकिन योजना की व्यावहारिकता तय करने वालों ने इसका विरोध किया था.
क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड
विदेशी मुद्रा बॉन्ड विदेशी मुद्रा में जारी किए जाते हैं. बाद में ये मूल और ब्याज के साथ विदेशी मुद्रा में चुकाए जाते हैं. उदाहरण के तौर पर यदि भारत सरकार अभी विदेशी मुद्रा बॉन्ड के जरिए कर्ज लेती है और बाद में चुकता करने के समय यदि रुपये की कीमत कम होती है तो तब जो रकम चुकानी होगी, वह काफी ज्यादा हो जाएगी. ऐसी स्थिति में विदेशी मुद्रा बॉन्ड के जरिए कर्ज लेना काफी महंगा पड़ सकता है.
एक चिंता यह भी है कि इससे रुपये के मूल्य में तेजी से गिरावट हो सकती है. यह वास्तव में जारी किए जा रहे विदेशी मुद्रा बॉन्ड की मात्रा पर निर्भर करता है. सरकार को पता होता है कि वह कितने बॉन्ड जारी करने जा रही है. देश की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग के आधार पर विश्लेषकों का कहना है कि भारत वर्तमान बाजार दर यानी 3.2% ब्याज पर अमेरिकी डॉलर में फंड जुटाने में सक्षम होगा. बाद में यह आंकड़ा बढ़ सकता है. हालांकि विदेशी उधार, मुद्रा के उतार-चढ़ाव के लिए सरकार की देनदारियों को उजागर करता है. इससे घरेलू ब्याज दर प्रभावित हो सकती है.
पहली बार ऐसा कर रही भारत सरकार
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन कहते हैं कि भारत ने पहले रुपये में बॉन्ड जारी किए थे. अब तक सिर्फ विदेशी विनिमय में विश्व बैंक से ही कर्ज लिए हैं. यह पहला मौका होगा जब भारत विदेशी मुद्रा बॉन्ड बेचकर धन जुटाएगा. भारत का सॉवरेन विदेशी ऋण कम है क्योंकि पिछले नीति निर्धारक विदेशी मुद्रा में बॉन्ड जारी होने के जोखिमों के बारे में चिंतित थे. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एक लेख में लिखा है कि भारत को उन कम अवधि के सनकी निवेशकों के बारे में चिंता करनी चाहिए जो बाजार तेज रहने पर निवेश करते हैं और ठंडा पड़ते ही दूर हो जाते हैं.
बीजेपी के वैचारिक संगठन आरएसएस की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच ने इस योजना का विरोध किया है. उनका कहना है कि यह एक राष्ट्रविरोधी कदम है क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था के लिए दूरगामी खतरा पैदा हो सकता है. संगठन ने संभावना जताई कि इससे समृद्ध विदेशी राष्ट्रों और उनके वित्तीय संस्थानों को देश की नीतियों को निर्धारित करने की अनुमति मिल सकती है. स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने कहा, "हम इसकी इजाजत नहीं दे सकते हैं."
भाजपा प्रवक्ता ने बताया सबसे अच्छा विकल्प
आर्थिक मामलों पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का कहना है आलोचना के बावजूद बड़े पैमाने पर निवेश योजनाओं को देखते हुए बॉन्ड बेचकर धन जुटाने की योजना "सबसे अच्छा विकल्प" है. वे कहते हैं, "सरकार का लक्ष्य वास्तविक ब्याज दरों को कम रखने का है. इस वजह से घरेलू बाजार में उचित दरों पर धन जुटाना मुश्किल हो रहा है."
गोपाल कृष्ण अग्नवाल ने आगाह किया कि सरकार को अगले साल मार्च में समाप्त होने वाले चालू वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 3.3% के अपने वित्तीय घाटे के लक्ष्य पर बने रहना होगा. इसके साथ ही सुनिश्चित करना होगा कि विदेशी ऋण लेने से अधिक घाटा ना हो.
रिपोर्ट: रवि रंजन (एएफपी)
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