इंसान के साथ-साथ इकोसिस्टम को भी बदल रहा है ध्वनि प्रदूषण
३० अप्रैल २०२२तड़के तक चलने वाली पार्टियों में ऊंची आवाज में बजने वाला संगीत कुछ लोगों की रात को दिन में बदल सकता है. कुछ लोगों की नींद बर्बाद कर सकता है. हालांकि, एक तय सीमा से ज्यादा आवाज को बर्दाश्त करना किसी के लिए भी मुश्किल हो जाता है.
सड़क पर चलने वाली गाड़ियों का शोर, पास से गुजरने वाली ट्रेनों की गड़गड़ाहट, बार में शराब पीने वाले ग्राहकों की धमाचौकड़ी, विमान के उड़ान भरने के दौरान निकलने वाली तेज गर्जना जैसी आवाजों से लगता है कि हमारे शरीर पर किसी तरह का दबाव पड़ रहा है.
दुनिया में कोलाहल बढ़ता जा रहा है और इसी के साथ बढ़ रहा है ध्वनि प्रदूषण. इसकी वजह से इंसानों, जानवरों और यहां तक कि पौधों को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है. बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाके तक ध्वनि प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं.
सिर्फ यूरोप में, सड़कों पर होने वाले शोर की वजह से 5 में से 1 व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है. बहुत ज्यादा शोर की वजह से मेटाबोलिज्म से जुड़े रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है. यहां तक कि दिल का दौरा भी पड़ सकता है. तेज और लगातार होने वाले शोर की वजह से यूरोप में हर साल 48,000 लोग हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं और करीब 12,000 लोगों की असमय मौत हो रही है.
लंदन से लेकर ढाका तक और बार्सिलोना से लेकर बर्लिन तक, ज्यादातर बड़े शहरों में काफी ज्यादा शोर हो रहा है. उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क में सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने वाले 90 फीसदी लोग सामान्य सीमा से काफी ज्यादा शोर का सामना कर रहे हैं. इससे उनकी सुनने की क्षमता खत्म हो सकती है.
कम आय मतलब ज्यादा शोर के बीच रहना
दुनिया भर में, ज्यादातर गरीब लोगों का बसेरा औद्योगिक संयंत्रों, लैंडफिल, रेलवे लाइन या सड़क किनारे होता है. इससे वे उन्हीं शहरों में रहने वाले अमीर लोगों की तुलना में काफी ज्यादा शोर का सामना करते हैं.
जर्मन संघीय पर्यावरण एजेंसी (यूबीए) के शोर विशेषज्ञ थॉमस माइक कहते हैं, "अगर कोई फ्लैट या घर मुख्य सड़क पर है, तो कम किराया देना पड़ता है. इसका मतलब यह है कि जिन लोगों की आय कम है उनके शोर-शराबे वाली जगहों पर रहने की संभावना अधिक है.” संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार, नस्ली समूह के आधार पर यह भेदभाव होता है.
खाद्य श्रृंखला भी हो रही प्रभावित
शोर का असर सिर्फ मनुष्यों पर नहीं हो रहा है, बल्कि जानवर भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. अध्ययन में पाया गया है कि शोर की वजह से सभी जानवरों की प्रजातियों के व्यवहार में बदलाव आ रहे हैं.
ध्वनि प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा समस्या पक्षियों को हो रही है. पक्षी ऊंची आवाज में गा रहे हैं या ऊंची आवाज निकाल रहे हैं, ताकि अपने साथियों से बातचीत कर सकें. यूरोप, जापान या ब्रिटेन के शहरों में रहने वाले टिट पक्षी, जंगलों में रहने वाले टिट की तुलना में तेज आवाज में गाते हैं. सड़कों के किनारे रहने वाले कीड़ों, टिड्डों, और मेढकों की आवाज में भी बदलाव देखे गए हैं.
इस वजह से कई बार पक्षियों के बीच गलतफहमियां पैदा होती हैं. नर पक्षी को मादा पक्षी खोजने में परेशानी होती है. ज्यादा आवाज की वजह से कभी-कभी मादा पक्षी नर के पास नहीं आना चाहती और इससे उनके प्रजनन पर नकारात्मक असर पड़ता है. कोलंबिया के बोगोटा में मेंढकों की झंकार अब कर्कश आवाज में बदलती जा रही है.
माइक कहते हैं, "ध्वनि प्रदूषण की वजह से पक्षियों को संभोग करने, बच्चों का पालन-पोषण करने और भोजन ढूंढने में समस्या हो रही है. शोर की वजह से पक्षियों के रहने की जगह और उनके रहने का तरीका बुरी तरह प्रभावित हुआ है.”
संयुक्त राज्य अमेरिका में, हाल के वर्षों में आधे से ज्यादा राष्ट्रीय उद्यानों में ध्वनि प्रदूषण दोगुना हो गया है. सड़कों के अलावा तेल और गैस के उत्पादन, खनन परियोजनाओं और लकड़ी उद्योग से होने वाले शोर ध्वनि प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं. इस शोर की वजह से पक्षी अपने मूल स्थान को छोड़कर दूसरी जगहों पर जाने के लिए विवश हो रहे हैं. इससे स्थानीय पेड़-पौधों के विकास पर भी असर पर रहा है, क्योंकि पक्षी इनके बीज को फैला नहीं पा रहे हैं.
दुनिया में शोर कैसे कम किया जाए
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में ज्यादा से ज्यादा पेड़, झाड़ियां और जंगल लगाकर ध्वनि प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सकता है. इससे शहर की जलवायु बेहतर होती है. साथ ही, शहर की सुंदरता बढ़ती है और शोर कम होता है.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों को इन उपायों पर संदेह है. माइक कहते हैं, "वास्तव में, शोर इनसे होकर गुजरते हैं. ऐसे में साउंडप्रूफिंग ही एकमात्र उपाय बचता है. यह सबसे ज्यादा प्रभावी उपाय होगा.” उन्होंने आगे कहा, "शहरों में ट्रैफिक को जितना हो सके उतना कम करना चाहिए. सड़कों पर गति सीमा को 30 किलोमीटर प्रति घंटे पर निर्धारित करना चाहिए. सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. कुछ इलाकों में यातायात के साधनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. साथ ही, ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन और साइकिल वाले रास्तों का निर्माण करना चाहिए.”
फ्रांस में अधिकारी "नॉइस” स्पीड कैमरा का परीक्षण कर रहे हैं. यह डिवाइस अवैध रूप से तेज आवाज निकालने वाले वाहनों की पहचान करता है. शहरों में ही नहीं, बल्कि पर्यटन वाले क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों में भी शोर को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. शोर की सीमा का उल्लंघन करने वाले वाहनों पर जुर्माना लगाने की योजना बनाई जा रही है.
शहरों में कार के लेन और ट्रैफिक को कम करने के साथ-साथ जलवायु के अनुकूल आधारभूत ढांचे बनाए जा सकते हैं, ताकि साइकिल के लिए ज्यादा रास्ते और ज्यादा से ज्यादा पार्क बनाए जा सकें. इससे शहरों की जलवायु बेहतर होगी. साथ ही, वन्य जीवों और इंसानों के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा. वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के जरिए दिखाया है कि पक्षियों के चहचहाने, पानी के गिरने और पेड़ की पत्तियों की सरसराहट जैसी प्राकृतिक आवाजों से इंसानों का तनाव कम होता है.