तस्करी, शोषण और फिरौती का दर्द झेलते भारतीय मजदूर
३० सितम्बर २०१९रफीक रावुथेर लंबे समय से टेलीविजन शो के माध्यम से खाड़ी में काम करने वाले भारतीयों की समस्याओं को उजागर कर रहे हैं. वे ऐसे कई भारतीयों के शोषण की कहानियां सामने लाते रहे हैं. लेकिन कुछ साल पहले उन्होंने कुछ नया होते देखा. नई बात ये हुई है कि खाड़ी देशों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों को बंधक बना कर फिरौती मांगी जाने लगी है. इन प्रवासी मजदूरों में से कई सारी महिलाएं भी हैं. इन सब घटनाओं को अंजाम देने का तरीका एक समान है. पहले भर्ती करने वाले दलाल मजदूरों को बंधक बनाते हैं और रिहाई के बदले में उनके परिजनों से मोटी रकम की मांग करते हैं. रफीक बताते हैं, "इन प्रवासियों के लिए दलालों द्वारा फिरौती मांगने की वजह से वापस लौटना काफी मुश्किल हो जाता है. परिजनों द्वारा फिरौती की रकम न दिए जाने की वजह से कई सारे लोग वहां फंस गए हैं. अकसर उन्हें घरों में बंधक बना लिया जाता है."
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार खाड़ी देशों में करीब 90 लाख भारतीय मजदूर हैं. मजदूरों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों का कहना है कि खाड़ी देशों में मजदूरों को बंधक बना फिरौती वसूलना शोषण का एक नया तरीका बन गया है, जो दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात से रफीक के दावों को और बल मिलता है. पिछले महीने तीन पीड़ितों के परिजनों ने भारत की सर्वोच्च अदालत में आधिकारिक शिकायत प्रणाली की आलोचना करते हुए याचिका दायर की थी. यह पहली बार था जब कथित निष्क्रियता के चलते सरकार को कोर्ट में घसीटा गया.
ज्यादातर पीड़ित अप्रशिक्षित या कम-प्रशिक्षित मजदूर हैं. इन मजदूरों को दलालों ने अच्छे वेतन और आसान काम का झांसा देकर फंसाया. पीड़ितों ने बताया कि उन्हें काफी कम पैसे दिए जाते हैं और 15-15 घंटे तक काम करवाया जाता है. गाली-गलौज के साथ-साथ मारपीट भी की जाती है. राष्ट्रीय घरेलू कामगार आंदोलन की जोसेफिन वेलारामथी कहती हैं कि उनके पास हर महीने कम से कम दो ऐसे मामले आते हैं जिनमें खाड़ी देशों में काम कर रही महिला मजदूर को बंधक बना घर लौटने के बदले पैसों की मांग की जाती है. आमतौर पर दलाल महिला मजदूरों का पासपोर्ट अपने पास रख लेते हैं और उन्हें बंधक बना लेते हैं. वे कहती हैं, "फिरौती की वजह से परिजन कर्ज के दलदल में फंस जाते हैं. जब तक पैसों का इंतजाम नहीं हो जाता है, मजदूर के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है."
शोषण की कहानी
यह कहानी है सादिक बाशा की. सादिक तमिलनाडु में टैक्सी चलाते हैं. सादिक की पत्नी एक घरेलू नौकरानी के तौर पर काम करने कुवैत गई थी. बाद में दलाल ने उसकी पत्नी को बंधक बना लिया और वापस भेजने के लिए फिरौती की मांग की. सादिक ने अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए कई सप्ताह तक कोशिश की. फिर सरकारी सहायता न मिलने से क्षुब्ध होकर सादिक दो अन्य पीड़ितों के परिजनों के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे.
यहां उन्होंने गुहार लगाई कि कोर्ट उनकी पत्नी को आजाद करवाने और वापस लाने के लिए सरकार पर दबाव बनाए. सादिक कहते हैं, "वह हमेशा फोन करती और रोती रहती. वह हर बार यही कहती, 'मुझे यहां से बचा लो. अब और दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर सकती.' उसे खाना तक नहीं दिया जाता था. उसकी तबीयत दिनों दिन खराब रही थी. मैं खुद को काफी असहाय महसूस करता था."
सादिक ने अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए कर्ज लेकर पैसों का इंतजाम तो कर लिया लेकिन ये नहीं पता कि इस कर्ज को चुकाएंगे कैसे. वे कहते हैं, "मुझे पैसों की तत्काल जरुरत थी. मैंने उन्हें पैसे दे दिए. अदालत में जाना मेरे लिए ही नहीं, बल्कि सभी के लिए आखिरी रास्ता था, जिनकी स्थिति एक जैसी थी."
विदेशी रोजगार और भारत के विदेश मंत्रालय में प्रवासियों के कार्यालय के निदेशक राहुल दत्त कहते हैं कि जहां लोग कानूनी रूप से काम करने के लिए जाते हैं, वहां के मामलों को सुलझाना अधिकारियों के लिए आसान होता है. लेकिन जहां अवैध तरीके से दलालों के माध्यम से जाते हैं, परेशानी कई गुना बढ़ जाती है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर किसी तरह की टिप्पणी करने के इनकार कर दिया लेकिन कहा कि जो लोग अवैध तरीके से बहरीन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात चले जाते हैं उनके बारे में पता लगाना काफी मुश्किल होता है. ऐसे लोगों को वापस लाना किसी भूसे के ढेर से सुई खोजने जैसा कठिन होता है.
गुलामों जैसा व्यवहार
भारतीय विदेश मंत्रालय को इस साल जनवरी से जून महीने के बीच खाड़ी देश में काम कर रहे लोगों की 9,500 से ज्यादा शिकायतें मिली है. इनमें सबसे ज्यादा शिकायतें वेतन न मिलने, छुट्टी न मिलने, मेडिकल बीमा और एक्जिट या रि-इंट्री वीजा देने से इनकार करने से जुड़ी हुई हैं. विकास अध्ययन केंद्र के शोधार्थी आरोकियाराज हेलर कहते हैं, "मजदूर अक्सर भारतीय दूतावास से संपर्क करने की कोशिश करते हैं लेकिन सरकार की कार्यप्रणाली की वजह से उन्हें आसानी से न्याय नहीं मिल पाता है."
रफीक का एक शो केरल में प्रसारित होता है जिसका नाम है प्रवासलोकम. केरल के रहने वाले काफी सारे लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं. रफीक कहते हैं कि भारत सरकार ने जब से ई-माइग्रेंट सिस्टम को लागू किया है तब से फिरौती के मामले आने शुरू हुए हैं. ई-माइग्रेंट सिस्टम पंजीकृत एजेंटों, नियोक्ताओं और मजदूरों के लिए उन्मुखीकरण कार्यक्रमों और एक अंतर्निहित शिकायत तंत्र का मंच है. इसका उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना था. लेकिन इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है. वजह ये है कि इसके तहत खाड़ी देश के नियोक्ताओं को स्थानीय भारतीय दूतावास में सिक्योरिटी मनी जमा करवाना होता है.
रफीक कहते हैं, "ऐसा होने के वजह से कई सारे नियोक्ता अवैध तरीके से काम करने वाले दलालों का सहायता लेने लगे ताकि उन्हें कम पैसे में काम करने वाली नौकरानियां मिल सके. इस परिस्थिति में दलाल महिलाओं का शोषण करते हैं. उनसे जबरन काम करवाया जाता है और रिहाई के बदले परिजनों से फिरौती मांगी जाती है."
रफीक का कार्यक्रम तीन स्थानीय चैनलों पर सप्ताह में सात दिन प्रसारित किया जाता है. उनके हॉटलाइन नंबर पर हर हफ्ते तकरीबन 20 ऐसे लोगों के फोन आते हैं जिनमें से कई मामलों को सरकार के पास पहुंचाया जाता है. पीड़ितों के परिजनों को स्टूडियो में बैठाकर बातचीत की जाती है. साथ ही खाड़ी देशों में बंधक महिलाओं द्वारा चोरी-छिपे बनाए गए वीडियो दिखाए जाते हैं, जो क्रूरता की कई कहानी बयां करते हैं.
आरआर/आरपी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
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