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खुले दिमाग तो खुला दिमाग

२९ मार्च २०१२

हमारी अंगुलियां कैसे हिलती हैं, हम सोचते कैसे हैं, सपने क्यों आते हैं, हमारा शरीर कौन चलाता है. जब इन बातों पर विचार जब किया जाता है तो एक ही जवाब सामने आता है, दिमाग.

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तस्वीर: Fotolia/Andrea Danti

लंदन में चल रही प्रदर्शनी में दिमाग से जुड़ी हर बात, हर तथ्य को रखा गया है. मिस्र की ममी के दिमाग से लेकर आइंस्टीन के मस्तिष्क के हिस्से तक ताकि पता चले कि हमारी खोपड़ी के अंदर है क्या.

लंदन के वेलकम कलेक्शन में ये नहीं दिखाया जा रहा कि दिमागों ने हमारे लिए क्या किया है बल्कि यह दिखाया जा रहा है कि हमने दिमाग का क्या किया है. म्यूजियम के सार्वजनिक कार्यक्रमों के प्रमुख केन अर्नाल्ड कहते हैं, "मस्तिष्क तैयार किए गए, उनका वजन किया गया उन्हें काटा गया. यह प्रदर्शनी सिर्फ दिमाग की बनावट के बारे में है, बुद्धि के बारे में नहीं. यहां आप देख सकते हैं कि मस्तिष्क कैसा है यह नहीं कि यह कैसे काम करता है."

अंदर की बात

खोपड़ी के अंदर पाया जाने वाला ग्रे मैटर हमारे शरीर का खास हिस्सा है जिसे ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता. याददाश्त से लेकर सुनने, देखने और जज्बातों का अहसास इसी ग्रे मैटर से होता है. यही हमारी धमनियों को संचालित करता है. यह बुद्धि और व्यक्तित्व को बनाता है. यह हमारा हिस्सा है और हमारा सार भी. इसलिए मस्तिष्क हमें इतना आकर्षित करता है. और इसलिए दिमाग को एक बरनी में रखा हुआ देखना शायद व्यक्ति को हिला देता है.

ब्रेन्सः द माइंड ऐज मैटर नाम की इस प्रदर्शनी में कई ऐसे झटके लगते हैं. यहां आप मस्तिष्क को माइक्रोस्कोप के नीचे देख सकते हैं. कई शताब्दियों से वैज्ञानिक दिमाग के राज जानने की कोशिश में हैं. खास तौर पर मध्ययुग के बाद से जब ईसाई और इस्लामी जानकारों ने इसे विचार और याददाश्त का केंद्र बताया. यहां संरक्षित दिमाग, डाइसेक्ट किए हुए और खारे पानी में रखे हुए मस्तिष्क सब यहां देखे जा सकते हैं.

दिमाग पर रिसर्च

वैज्ञानिकों की कई पीढ़ियों ने मानव मस्तिष्क पर काम किया है. उन्हें निकाल कर उनके बारे में आंकड़े जमा किए हैं ताकि वह आकार में छिपे राज पता लगा सकें.

इस प्रदर्शनी में कई मशहूर लोगों के दिमाग भी रखे हैं जिसमें 19वीं सदी के हत्यारे विलियम बर्के का मस्तिष्क रखा है तो साथ ही गणितज्ञ चार्ल्स बैबेज के मस्तिष्क का बायां हिस्सा और आइंस्टीन के दिमाग की दो स्लाइड रखी हुई है, जिन पर कई प्रयोग किए जा चुके हैं.

हालांकि राज अभी भी बना हुआ है. वैज्ञानिकों ने 19वीं सदी की उस विचारधारा को खारिज कर दिया है कि दिमाग के ढांचे से किसी व्यक्ति का चरित्र बताया जा सकता हो. साथ ही यह तथ्य भी समय के साथ खारिज हो गया है कि स्मार्ट लोगों का दिमाग बड़ा होता है.

दिमाग से शरीर की ओर सूचना भेजने वाली कोषिकाओं न्यूरॉन्स की खोज ने दिमाग के बारे में कई बातें साफ की हैं. इसके बावजूद भी मस्तिष्क बेहद जटिल बना हुआ है. अति आधुनिक तकनीक के बावजूद दिमाग का ऑपरेशन सबसे मुश्किल समझा जाता है.

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ड्रिल से छेद

सदियों पहले लोग खोपड़ी में छेद किया करते थे, वह अब नहीं होता. प्रदर्शनी में दिमाग में छेद करने वाले औजार रखे गए हैं. यहां खोपड़ी काटने की आरी, ड्रिल और ब्रेन सर्जन के औजार भी हैं. साथ ही 1930 की एक फिल्म भी है जिसमें क्रेनियोटोमी (दिमाग का ऑपरेशन) के बारे में सूचना दी गई है.

इस शो की क्यूरेटर मारियस क्विंट कहती हैं, "जब आप असली मस्तिष्क अपने सामने रखा हुआ पाते हैं तो आप चौंक जाते हैं. चाहे उसका एक हिस्सा हो, वह मर्तबान में रखा हो या एक टुकड़ा हो. यह बहुत कुछ नहीं कहता. लेकिन यह आपको समझने और सोचने पर मजबूर करता है कि आपके दिमाग में चल क्या रहा है. यह निश्चित ही दिलचस्प है."

प्रदर्शनी से साफ है कि दिमाग को कई सालों से इकट्ठा किया जा रहा है. और यह वैज्ञानिक खोज की अद्भुत वस्तु बन गई है.

19वीं सदी में वैज्ञानिक अपराधियों से लेकर नाजियों तक के मस्तिष्क इकट्ठा करते थे. अकसर ये व्यक्ति की सहमति के बगैर लिए जाते थे. आज भी वैज्ञानिक मस्तिष्क जमा करते हैं लेकिन दाता की सहमति से. ताकि अल्जाइमर जैसी बीमारियों पर रिसर्च में आसानी हो.

प्रदर्शनी के आखिर में उन लोगों की गवाही है, जिन्होंने अपना मस्तिष्क शोध के लिए दान दिया है. एक ऐसे व्यक्ति अलबर्ट वेब ने अपनी आवाज रिकॉर्ड की है और उसमें कहा है कि मुझे दफनाया जाएगा और मुझे थोड़ा सा भला करना चाहिए किसी दूसरे का.

बहरहाल वैज्ञानिक अभी भी दिमाग की 100 अरब कोषिकाओं और एक लाख अरब न्यूरल कनेक्शन को जोड़ने में लगे हैं.

रिपोर्टः रॉयटर्स/डीपीए/आभा एम

संपादनः ए जमाल

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