गंगा को साफ करेगा इस्राएल
५ अगस्त २०१२गंगा की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपये डूब गए, 26 साल बीत गए. एक पीढ़ी जवान हो गई. जवान बूढ़े हो गए. लेकिन गंगा की हालत अब भी वैसी ही है. पश्चिमी हिमालय की गंगोत्री से निकलती गंगा की कल कल धारा पश्चिम बंगाल पहुंचने तक एक गंदे नाले में बदल जाती है.
2,500 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा करने वाली इस नदी पर 40 करोड़ से ज्यादा लोग निर्भर हैं. हिंदू धर्म की मान्यता में इसे दुनिया की एक मात्र मुक्तिदायनी नदी कहा जाता है. यह दुनिया की सबसे बड़ी 20 नदियों में से एक है. लेकिन साथ ही विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में से भी एक है. औद्योगिक कचरे, नालों की गंदगी और अध जले शवों ने नदी को बेइंतहा दूषित कर दिया है.
गंगा को साफ करने की फिर एक पहल की जा रही है. इस बार यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ है. विश्व बैंक से तीन अरब डॉलर मिले हैं. लेकिन सिर्फ पैसे से कुछ नहीं होगा. भारत को नदी को साफ करने की तकनीक चाहिए. इसके लिए भारत मध्य पूर्व के छोटे से देश इस्राएल की ओर ताक रहा है. इस्राएल के पास पानी साफ करने की बेहतरीन तकनीक है. वहां की इस्राएल न्यू टेक कंपनी भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर गंगा की सफाई की योजना चला रही है.
भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2020 तक, यानी आठ साल के भीतर गंगा में शहरी और औद्योगिक नाले न गिरें. लेकिन इस्राएल न्यू टेक के प्रमुख ओडेड डिस्टेल कहते हैं कि गंगा की सफाई में 20 से ज्यादा साल लगेंगे. वह कहते हैं, "यह एक बड़ी योजना है. इसमें तकनीक का मामला है, दूषित पानी को साफ करने, पानी का प्रबंधन और सिंचाई का विषय भी है."
गंगा की मौजूदा हालत के बारे में इस्राएली अधिकारी ने कहा कि फिलहाल गर्मियों में, "यह एक जिंदा नदी के बजाए एक गंदे पानी की नहर लगती है."
विश्व बैंक एक अरब डॉलर का कर्ज दे रहा है. इस रकम से गंगा रिवर क्लीन अप योजना का पहला चरण चलाया जाएगा. पहला लक्ष्य टिकाऊ ढंग से प्रदूषण को कम करना है. इसके लिए भारत में सालों से चली आ रही कृषि की तकनीक को भी बदलना होगा. भारत में किसान सिंचाई के लिए मॉनसून पर निर्भर रहते हैं. बरसात में पानी के साथ साथ खेतों में डाली गई रासायनिक खाद के तत्व भी बहते हुए नदी में चले जाते हैं. इस्राएल और भारत की साझा कंपनी नानदन जैन सिंचाई का नया तरीका गांव गांव तक पहुंचाना चाहती है. इस्राएल में पानी की कमी है लेकिन वहां सिंचाई के उन्नत तरीके अपनाये जाते हैं. माइक्रो इरिगेशन तकनीक में पानी बूंद बूंद कर पौधे जड़ों तक पहुंचता है. इस तकनीक से पौधे भी जिंदा रहते हैं और पानी भी बचता है. इसके लिए पतले पाइप, वाल्व, ट्यूब और फव्वारों को जोड़ एक ढांचा बनाया जाता है.
नानदनजैन के निदेशक अमनोन ओफेन कहते हैं कि भारत में भी सिंचाई का यह तरीका शुरू कर दिया गया है. वह दावा करते हैं कि यह भारतीय कृषि का चेहरा बदल देगा, "भारत का सिंचाई बाजार अभी आधे अरब डॉलर प्रतिवर्ष से थोड़ा ज्यादा है. अगले दो या तीन साल में ही यह 1.5 अरब डॉलर हो जाएगा, माइक्रो इरिगेशन." सिंचाई का तेजी से बढ़ता बाजार कई देशों को भारत की तरफ आकर्षित कर रहा है.
गंगा के लिए बाईपास
वाटर रिवाइव नाम की एक और इस्राएली बायो इंजीनियरिंग कंपनी भी गंगा सफाई योजना में शामिल है. कंपनी के पानी विशेषज्ञ लिमोर ग्रुबेर कहते हैं कि गंगा को बचाने के लिए कई बाईपास भी बनाने होंगे. इन बाइपासों के जरिए घरेलू और औद्योगिक कचरे को नदी में गिरने से रोका जाएगा. गंदा पानी नदी में नहीं गिरेगा तो नदी खुद भी साफ होने लगेगी. उसका पानी पीने लायक हो जाएगा. बाईपास सिस्टम की मदद से इस्राएल की यारकोन नदी को साफ करने में कामयाबी मिली. यारकोन नदी के लिए 80 बाईपास बनाए गए.
ग्रुबेर कहते हैं, "एक तरफ यह उन्नत तरीका है और दूसरी तरफ यह प्राकृतिक और बिना रख रखाव वाली तकनीक है. जब आप तीसरी दुनिया के देशों में जाते हैं और पंप लगाते हैं तो आपको बिजली की जरूरत पड़ती है और आपको बहुत उन्नत तंत्र की जरूरत पड़ती है. बाद में लोगों को यह पता ही नहीं चलता कि इसका रख रखाव कैसे करें."
2003 में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक भारत में सिर्फ 27 फीसदी गंदा पानी ही साफ किया जाता है. इस्राएल की सरकारी जल कंपनी मेकोरोट के मुताबिक उनके देश में 92 फीसदी गंदा पानी साफ किया जाता है. इसी में से 75 फीसदी पानी का इस्तेमाल सिंचाई में होता है.
इस्राएली तकनीक इतनी आगे पहुंच चुकी है कि वे पानी की सफाई के दौरान छंटी गंदगी को कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. गंदगी को ऊर्जा का स्त्रोत माना जा रहा है. इस्राएल में पानी की 45 फीसदी कमी है. लेकिन नई नई तकनीकों के सहारे देश अपनी पानी की जरूरतें पूरी कर रहा है.
रिपोर्टः वैनेसा ओ ब्रायन, तेल अवीव (ओ सिंह)
संपादनः एन रंजन